तुलनात्मक राजनीति के आधुनिक उपागम की विशेषताएँ

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तुलनात्मक राजनीति के आधुनिक उपागम की विशेषताएँ

आधुनिक उपागम:-

परंपरागत उपागम की कमियों को देखते हुए आधुनिक उपागमों का विकास किया गया क्योंकि बदलती परिस्थितियों का अध्ययन करने में परम्परागत उपागम उपयुक्त साबित नहीं हो रहे थे। अतः नई राजनीतिक व्यवस्थाओं, प्रक्रियाओं तथा संस्थाओं की वास्तविकताओं को समझने के लिए नई- नई खोज शुरू की गई। इस दिशा में विशेष रूप से कार्य द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद हुआ, जब विश्व पटल पर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देश अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने लगे।

इन देशों की विशेषता यह थी कि इन देशों की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ पश्चिमी समाज के देशों से अलग थीं। अतः ये विधियाँ (परंपरागत) इन बदली हुई परिस्थितियों में सही साबित नहीं हो सकी जिस कारण विचारकों का ध्यान नए उपागमों की ओर गया। इस संबंध में एक राजनीतिक व्यवस्था नामक नवीन अवधारणा का विकास हुआ, जो निवेश-निर्गत विश्लेषण की पद्धति पर आधारित है। इसके साथ ही राजनीतिक व्यवस्थाओं की संरचनाओं तथा उनके कार्यों को समझने के लिए एक और उपागम जिसे संरचनात्मक-कार्यात्मक विश्लेषण के नाम से जाना जाता है, का विकास किया गया। इनका विस्तृत विश्लेषण आगे है।

 

आधुनिक उपागमों की विशेषताएँ

1. विश्लेषणात्मक अध्ययन:-आधुनिक विद्वानों ने विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण को अपनाया है। वे औपचारिक संस्थाओं के सामान्य वर्णन से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि वे राजनीतिक वास्तविकताओं को समझना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने व्यक्ति व संस्थाओं के वास्तविक व्यवहार को समझने के लिए अनौपचारिक संरचनाओं, राजनीतिक प्रक्रियाओं व व्यवहारों के विश्लेषण पर बल दिया ईस्टन,आमंड, डहल तथा वेबर आदि विद्वानों ने व्यक्ति के कार्यों पर व उसके व्यवहार पर अधिक बल दिया क्योंकि इनके विश्लेषण से राजनीतिक व्यवस्था को समझना संभव था।

2. आनुभविक अध्ययन:-आधुनिक विद्वानों ने वैज्ञानिक विश्लेषण पर बल दिया है। आदर्शवादी तथा मानकीय (Normative) परंपरागत अध्ययन की अपेक्षा उन्होंने अनुभव सिद्ध विश्लेषण को इस कारण प्राथमिकता दी क्योंकि इससे राजनीतिक वास्तविकताओं को समझना आसान है। यह तथ्य प्रधान अध्ययन है। आधुनिक विद्वान लोकतंत्र के आदर्श के अध्ययन में रुचि न रखकर लोकतंत्र के व्यवहारिक स्वरूप का अनुभववादी अध्ययन करते हैं।

इसी कारण उन्होंने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि लोकतंत्र अथवा गैर लोकतंत्र सभी प्रकार के शासनों में एक वर्ग ही शासन करता है। आधुनिक विद्वानों की दृष्टि में परंपरागत लोकतंत्र की यह मान्यता कि उसमें जनता स्वयं शासन करती है भ्रममूलक है, वास्तव में लोकतंत्रीय शासन में भी एक छोटा-सा विशिष्ट वर्ग ही शासन करता है। यह दृष्टिकोण लोकतंत्र के आनुभविक अध्ययन का ही परिणाम है।

3. अनौपचारिक कारकों का अध्ययन:-आधुनिक विद्वानों की दृष्टि में परंपरागत औपचारिक संस्थाओं (Formal institutions) जैसे शासन, राज्य व दल आदि का अध्ययन पर्याप्त नहीं है। वे राजनीतिक वास्तविकताओं को समझने के लिए उन सभी अनौपचारिक कारकों व संरचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक समझते हैं, जो राजनीतिक संगठन के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। इतना ही नहीं वे सामाजिक, आर्थिक व जातीय संगठनों के उन राजनीतिक व्यवहारों का भी अध्ययन करते हैं जो व्यवस्था को प्रभावित करते हैं।

आधुनिक विद्वान प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था के सामाजिक व आर्थिक पर्यावरण का अध्ययन करना आवश्यक समझते हैं क्योंकि कोई भी राजनीतिक व्यवस्था अपने पर्यावरण के अंदर ही काम करती है और यह पर्यावरण व्यवस्था के स्वरूप को निर्धारित करती है।

4.विषय-क्षेत्र का विस्तार:-आधुनिक तुलनात्मक अध्ययन की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसका विषय-क्षेत्र अत्यंत व्यापक हो गया है क्योंकि प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था का अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था के संदर्भ में अध्ययन किया जाता है।

5.विकासशील देशों के अध्ययन पर बल:-वर्तमान युग में एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमरीका के देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं का अध्ययन किए बिना न तो वास्तव में तुलनात्मक अध्ययन संभव है और न ही सामान्य सिद्धांतों का निर्माण संभव है। आधुनिक दिद्वानों ने विकासशील देशों की व्यवस्थाओं का विस्तृत तुलनात्मक अध्ययन किया और ऐसे सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जो सामान्य रूप से संसार की सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं पर लागू हो सकें।

6.अंतअर्ननुशासनीय अध्ययन:- आधुनिक तुलनात्मक अध्ययन की एक विशेषता इसका अंतअर्ननुशासकीय होना है। आधुनिक विद्वानों की मान्यता है कि राजनीतिक व्यवस्था समाज व्यवस्था की अनेक उप-व्यवस्थाओं (Sub -System) में से एक है। इन सभी व्यवस्थाओं का अध्ययन एकांकी रूप में नहीं किया जा सकता। प्रत्येक उप-व्यवस्था अन्य उप-व्यवस्थाओं के व्यवहार को प्रभावित करती है।

अतः किसी एक उप-व्यवस्था का अध्ययन अन्य उप-व्यवस्थाओं के संदर्भ में ही किया जा सकता है। राजनीतिक व्यवस्था पर समाज की आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व शैक्षिक आदि व्यवस्थाओं का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। अत: हमें किसी समाज की राजनीतिक व्यवस्था के समुचित अध्ययन के लिए उस समाज की आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व शैक्षिक आदि व्यवस्थाओं का अध्ययन करना आवश्यक है।

7. व्यवस्था विश्लेषण:- आधुनिक अध्ययन में संपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था का विश्लेषण किया जाता है अर्थात्‌ औपचारिक संस्थाओं के साथ अनौपचारिक, संरचनाओं पर विशेष बल दिया जाता है जिससे राजनीतिक व्यवस्था की वास्तविक समस्याओं समझा जा सके और उनका हल निकाला जा सके | अब यह मान्यता सामान्यतः स्वीकार कर ली गई है कि प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में एक बाध्यकारी शक्ति तथा उसके प्रयोग के साधनों का होना आवश्यक है।

8. मूल्य विहीन अध्ययन:- मूल्य विहीन अध्ययन का तात्पर्य यह है कि आधुनिक अध्ययन मुख्यतः आनुभविक तथा वस्तुनिष्ठ है। इसमें आदर्श व मानकीय विचारों की उपेक्षा कर दी जाती है। क्या होना चाहिए जैसे प्रश्नों के स्थान पर क्या है जैसे प्रश्नों के उत्तर खोजे जाते हैं। आधुनिक विद्वान अपने विचारों व दृष्टिकोणों को अपने अध्ययन से दूर रखते हैं और उनसे उसे प्रभावित नहीं होने देते क्योंकि व्यक्ति के विचार, भावनाएँ व दृष्टिकोण अध्ययन को भी व्यक्तिनिष्ठ (Subjective) बना देते हैं। व्यवहारवादी विद्वान मूल्य विहीन अध्ययत पर बल देते हैं जिससे मुक्त वातावरण मे वास्तविकताओं का अध्ययन किया जा सके।

निष्कर्ष

दोस्तों हम लोगों ने आज ऊपर तुलनात्मक राजनीति के आधुनिक उपागम की विशेषताएँ के बारे में जाना है तो दोस्तों आपको तुलनात्मक राजनीति के आधुनिक उपागम के बारे में ऊपर के आर्टिकल में पढ़कर कैसा लगा आप हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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