तुलना की पद्धतियाँ क्या है?
नमस्कार दोस्तों आप सभी लोगों का Hindi-khabri.in में आप सभी लोगों का स्वागत है। दोस्तों आज के इस एक नए आर्टिकल में हम जानेंगे कि तुलना की पद्धतियाँ क्या है? और तुलना की पत्तियां कितने प्रकार के हैं, और आदि के बारे में इस आर्टिकल में हम जानेंगे तो दोस्तों आइए हम बिना देर किए जानते हैं कि तुलना की पद्धतियाँ क्या है–
तुलना की पद्धतियाँ क्या है?
तुलना की पद्धतियाँ क्या है-राजनीति शास्त्र के अध्ययन में विद्वानों ने अनेक प्रकार की तुलनात्मक पद्धतियों का प्रयोग किया है व्यापक रूप से प्रयोग की जाने वाली तुलना की कुछ पद्धतियाँ निम्न प्रकार से हैं जो नीचे दी गई हैं-
प्रयोगात्मक पद्धति
प्रयोगात्मक पद्धति का समाजशास्त्र में सीमित उपयोग है, फिर भी यह वह मॉडल या प्रतिमान उपलब्ध करती है जिस प्रकार अनेक तुलना वादी अपने अध्ययनों को अधारित करने की अभिलाषा करते हैं। सरल शब्दों में, प्रयोगात्मक पद्धति दो स्थितियों के बीच एक कारणात्मक संबंध स्थापित करना चाहती है। दूसरे शब्दों में, परीक्षण का लक्ष्य सिद्ध करना है कि एक स्थिति दूसरी स्थिति को उत्पन्न करती है या दूसरी स्थिति को एक निश्चित तरीके से प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए यदि कोई इसका अध्ययन या व्याख्या करना चाहे की एक विशाल समूह समायोजन में बच्चों में अंग्रेजी में उनकी अभिव्यक्ति की योग्यता की दृष्टि से अंतर क्यों है, टॉनिक कार्पू को इस क्षमता को प्रभावित करते हुए देखा जा सकता है अर्थात सामाजिक पृष्ठभूमि भाषा में निपुणता प्रवेश से सुपरिचय इत्यादि।अन्वेषक इन सभी कारकों के प्रभाव का अध्ययन कर सकता है या इनमें से किसी एक का या कारको के एक भी स सम्मिश्रण का भी। या फिर उन स्थितियों या कारकों को अलग करता है जिनके प्रभाव का अध्ययन करना चाहता है और इसके परिणाम स्वरूप प्रत्येक स्थिति की भूमिका को सुनिश्चित करता है जिस स्थिति के प्रभाव को मापना है और जो अन्वेषक द्वारा संचालित किया जाता है वह स्वतंत्र चर है उदाहरण के लिए सामाजिक पृष्ठभूमि इत्यादि वही स्थिति जिस पर प्रभाव का अध्ययन किया जाना है वह इस प्रकार आश्रित चर है। अतः अभिव्यक्ति की योग्यता पर सामाजिक पृष्ठभूमि के प्रभाव के अध्ययन के लिए रूपांकित एक प्रयोग में,सामाजिक पृष्ठभूमि स्वतंत्र चर होगा और अभिव्यक्ति की योग्यता आश्रित चर। अन्वेषक एक परिकल्पना तैयार करता है जिसे जो स्थितयों के बीच संबंध के रूप में वर्णित किया जाता है जिसका परीक्षण उस प्रयोग में किया जाता है, अर्थात उच्चतर सामाजिक- आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चे विशाल समूह समायोजना में अंग्रेजी में अभिव्यक्ति की बेहतर योग्यता का प्रदर्शन करते हैं।प्रयोग के परिणाम अन्वेषक को अपने निष्कर्षों की व्यावहारिकता के संबंध में सामान्य प्रस्ताव प्रस्तुत करने में और अन्य पूर्व अध्ययनों से उनकी तुलना करने में सक्षम बनाएंगे।
केस स्टडी
एक केस स्टडी जैसा कि इसका नाम संकेत देता है, एक एकल केस(मामले) की गहराई से अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करती है।इस अर्थ में,जबकि पद्धति अपने आप में पूरी तरह से तुलनात्मक नहीं है,यह डेटा (आंकड़े) उपलब्ध करती है(एकल केस या मामलों पर) जो सामान्य पर्यवेक्षणों का आधार बन सकता है।इन पर्यवेक्षणों का प्रयोग,अन्य ‘केस’ के साथ तुलना करने के लिए और सामान्य व्याख्याएं प्रस्तुत करने के लिए,किया जा सकता है।केस स्टडीज फिर भी एक असंगत तरीके से ‘विशिष्टता’ या जिन्हें ‘विपथगामी’ कहा जाता है,या असामान्य केस उन पर बल दे सकता है।उदाहरण के लिए, तुलनावादियों में यह प्रवृत्ति हो सकती है कि ऐसे प्रश्नों का अनुसंधान करे कि संयुक्त राज्य अमेरिका में एक समाजवादी दल क्यों नहीं है बजाय इसके कि अधिकांश पश्चिमी लोकतंत्रों सहित,स्वीडन में यह दल क्यों हैं।
अलेक्स-डी-टाँकविल के शास्त्रीय अध्ययनों 18 वीं शताब्दी के फ्रांस (द ओल्ड रेजीम एंड द फ्रेंच रेवल्यूशन,1856) और 19वीं शताब्दी के संयुक्त राज्य अमेरिका (डेमोक्रेसी इन अमेरिका खंड1, 1835) का हम संक्षेप के बारे में अध्ययन करेंगे,यह दर्शाने के लिए कि एकल केस पर केंद्रण द्वारा तुलनात्मक व्याख्याएं कैसे हो सकती है उसके दोनों अध्ययन भिन्न प्रश्न पूछते हुए प्रतीत होते हैं।
फ्रांस के संदर्भ में वह ये स्पष्ट करने का प्रयास करता है कि 1789 की फ्रेंच क्रांति क्यों हुई और संयुक्त राज्य अमेरिका के संदर्भ में वह वहां सामाजिक समानता की स्थितियों के कारणों और परिणामों पर ध्यान देता हुआ दिखाई देता है। यद्यपि इन दोनों कृतियों के बीच विषय की आधारभूत एकता है। यह एकता, आंशिक रूप से दोनों में, मिलते जुलते वैचारिक मुद्दों में टॉकविल की पूर्वव्यवस्तता के कारण है, अर्थात समानता और असमानता तानाशाही और स्वतंत्रता तथा राजनीतिक स्थिरता और अस्थिरता और सामाजिक संरचना तथा सामाजिक परिवर्तन पर उसके विचार। साथी दोनों अध्ययनों की बुनियाद में कुलीन तंत्र और लोकतंत्र और समानता से समानता की ओर पश्चिमी ऐतिहासिक संक्रमण की निष्ठुरता के संबंध में उसका दृढ़ विश्वास भी है।
अन्ततः यह तथ्य है कि इन दोनों अध्ययनों में दूसरा राष्ट्रीय एक ‘अनुपस्थित’ केस या प्रतीक निर्देश्य के रूप में कायम रहता है, और यही इन व्यक्तिगत कृतियों को तुलनात्मक बनाते हैं और कुछ लोगों के अनुसार एक एकल तुलनात्मक अध्ययन बनाते हैं।इस प्रकार अमेरिकी समाज का उसके द्वारा विश्लेषण,फ्रेंच समाज पर उसके परिप्रेक्ष्य द्वारा प्रभावित हुआ और यही विपरीत क्रम से भी हुआ।अमेरिकी केस को ‘जन्म से लोकतंत्र’ के एक ‘शुद्ध’ केस के रूप में देखा गया, जहां समानता की दिशा में सामाजिक विकासक्रम ‘लगभग अपनी प्राकृतिक सीमाओं’ तक पहुंच चुका था,जिसके फलस्वरूप राजनीतिक स्थिरता, उसके विशाल मध्य वर्ग में सापेक्ष वंचन की भावना की क्षीणता और परिवर्तन के प्रति एक रूढ़िवादी दृष्टिकोण की स्थिति उत्पन्न हुई। फ्रैंच केस एक कुलीनतंत्र था(पदानुक्रमिक असमानताओं की एक प्रणाली)जिसने 18वीं शताब्दी में एक संक्रमण की अवस्था में प्रवेश किया था, जिसमें असमानता के साथ समानता की अपेक्षाओं और इच्छा के मिश्रण की स्थितियां थी, जो कुलीनतंत्र और समानता के दो सिद्धांतों के अस्थिर मिश्रण में परिणत हुई,जो तानाशाही की ओर ले गई और जिसका समापन 1789 की क्रांति में हुआ।इस प्रकार,टाकविल की व्यक्तिगत केस की अद्धितीय केस-स्टडी वास्तव में फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपनाए गए विभिन्न ऐतिहासिक मार्गों की व्याख्या करने के लिए ऐतिहासिक बलों की परस्पर क्रिया के एक जटिल प्रतिमान (मॉडल) के अन्तर्गत राष्ट्रीय विषमताओं और समानताओं का अध्ययन था।
सांख्यिकीय पद्धति
सांख्यिकीय पद्धति वर्गों और चरों का प्रयोग करती हैं जो मात्रात्मक है या जिनका प्रतिनिधित्व अंको या संख्याओं के द्वारा किया जा सकता है उदाहरण के लिए मतदान प्रतिमान,सार्वजनिक वय्य,राजनीतिक दल, कुल मतदान,शहरीकरण,जनसंख्या आदि यह समानांतर रूप से अनेक चरों के प्रभावों संबंधों के अध्ययन के लिए अद्वितीय अवसर प्रदान करता है। परिशुद्ध डेटा (आंकड़ों) को एक सुगठित और दृष्टिगत रूप से प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने में यह लाभकारी होता है जिसके कारण समानताएं और विषमताएं संख्यात्मक प्रतिनिधित्व के माध्यम से दृष्टिगोचर होते हैं।यह तथ्य कि अनेक चरों का अध्ययन एक साथ किया जा सकता है, संबंध की दृष्टि से जटिल व्याख्याओ को खोजने का भी अद्वितीय अवसर प्रदान करता है। सांख्यिकीय पद्धति का प्रयोग दीर्घकालीन प्रवृत्तियों और प्रतिमानो की व्याख्या और तुलना में तथा भावी प्रवृत्तियों के बारे में भविष्यवाणियों को प्रस्तुत करने में भी सहायक है।
उदाहरण के लिए कुल मतदान और आयु वर्गों की सांख्यिकीय तालिकाओं के विश्लेषण के माध्यम से आयु और राजनीतिक सहभागिता के बीच संबंध का अध्ययन किया जा सकता है।लंबी अवधियों में इस डेटा की तुलना,या अन्य देशों या राजनीतिक प्रणालियों में मिलता-जुलता डाटा या धार्मिक समूहों,सामाजिक वर्ग और आयु की दृष्टि से कुल मतदान को प्रदर्शित करने वाला डेटा,जटिल सामान्यीकरणों के निर्माण में हमारी सहायता कर सकता है। उदाहरण के लिए मध्यवर्गीय हिंदू 25 और 30 की आयु के बीच के पुरुष मतदाता सर्वाधिक उत्साही मतदाता है।पार-राष्ट्रीय तुलनाएं ऐसी जांच परिणाम दे सकती है जैसे 25 से 30 की आयु के बीच की मध्यवर्गीय महिलाओं द्वारा भारत जैसे विकासशील राष्ट्रों की तुलना में,पश्चिमी लोकतंत्रों में मतदान करने की ज्यादा संभावना है।इस पद्धति की उपयोगिता इसकी सापेक्ष सुलभता मे है, जिससे यह विभिन्न चरों से निपटती है। परंतु यह संपूर्ण उत्तर देने में या पूरी तस्वीर प्रस्तुत करने में असफल हो जाती है। फिर भी उन संबंधों और उन व्यापक श्रेणियों के बारे में जिनका प्रयोग सांख्यिकीय पद्धति अपने संख्यात्मक प्रतिनिधित्व को सुगम बनाने के लिए प्रयोग करती है, अधिक व्यापक व्याख्याएं देने के लिए गुणात्मक विश्लेषण के साथ इस पद्धति का प्रयोग किया जा सकता है।
ध्यान-केंद्रित तुलनाएँ
यह अध्ययन राष्ट्रों की एक छोटी संख्या को लेते हैं अक्सर केवल दो (युग्मित या द्विआधारी तुलनाएँ) और प्रायः इन राष्ट्रो की राजनीति के निश्चित पहलुओ पर ध्यान केंद्रित करते हैं,बजाय सभी पहलुओं पर। विभिन्न राष्ट्रों में इस पद्धति के माध्यम से लोकनीतियों का सफलतापूर्वक तुलनात्मक अध्ययन किया गया है।
लिप्सेट 2 प्रकार के द्विआधारी या युग्मित तुलनाओ के बीच अंतर बनाता है-निहित और सुस्पष्ट। निहित द्विआधारी तुलना में, अन्वेषक का अपना राष्ट्र, जैसे टाकविल द्वारा अमेरिका का अध्ययन, संदर्भ का कार्य कर सकता है। सुस्पष्ट युग्मित तुलनाओ में, तुलना के लिए दो स्पष्ट केस(राष्ट्र) होते है।इन दो राष्ट्रों का अध्ययन उनके विशिष्ट पहलुओं के संबंध में किया जा सकता है, उदाहरण के लिए भारत और चीन में जनसंख्या नियंत्रण की नीति या दोनों देशों की संपूर्णता में,उदाहरण के लिए, आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के संबंध में।अवरोक्त,(बाद वाला अध्ययन) दो केस के समानांतर अध्ययन की ओर जा सकता है जिसमें संबंध के अध्ययन के लिए बहुत कम गुंजाइश होगी।
ऐतिहासिक पद्धति
ऐतिहासिक पद्धति अन्य पदों से इस प्रकार अलग किया जा सकता है कि वह कारणात्मक या कारण संबंधी व्याख्याओ को खोजता है जो ऐतिहासिक दृष्टि से संवेदनशील होते हैं। एरिक वुल्फ इस बात पर बल देता है कि कोई भी अध्ययन जो समाजो और मानवीय क्रिया के कारणों को समझने का प्रयास करता है, वह केवल समस्याओं के तकनीकी हल जो तकनीकी शब्दावली में प्रस्तुत किए जाने हो,उनकी खोज नहीं कर सकता। महत्व की बात ये थी कि एक विश्लेषणात्मक इतिहास का प्रयोग किया जाए जो वर्तमान की कारणों को अतीत में खोजता हो। ऐसा विश्लेषणात्मक इतिहास समय की एक अवधि में,एक एकल संस्कृति या राष्ट्र,एक एकल संस्कृति क्षेत्र या यहां तक कि एक एकल महाद्वीप के अध्ययन से विकसित नहीं किया जा सकता था,बल्कि मानव जनसंख्याओ ओर संस्कृतियों के बीच संपर्क परस्पर क्रियाओं और परस्पर संबंधों के अध्ययन से संभव था।
ऐतिहासिक अध्ययनों ने एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में सामाजिक और राजनीतिक परिघटनाओं की कारणात्मक व्याख्याओ को ढूंढने के लिए एक या अधिक केस पर ध्यान केंद्रित किया है ।थेडा स्कोक्पाल ध्यान दिलाती है कि एक से अधिक केस का प्रयोग करने वाले तुलनात्मक ऐतिहासिक अध्ययन मोटे तौर पर दो श्रेणी में आते हैं ‘तुलनात्मक इतिहास’ और ‘तुलनात्मक ऐतिहासिक विश्लेषण’। तुलनात्मक इतिहास का सामान्य रूप से ढीले तरीके से किसी अध्ययन का उल्लेख करने के लिए प्रयोग किया जाता है,जिसमें राष्ट्र राज्यों,संस्थापक संकुलों, या सभ्यताओं के दो या अधिक ऐतिहासिक प्रक्षेप पथो को एक साथ रखा जाता है। कुछ अध्ययन जो इस शैली में आते हैं, जैसे चार्ल्स, लुई और रिचर्ड टिल्ली की ‘द रिबेलियस सेंचुरी 1810- 1930,एक विशिष्ट ऐतिहासिक मॉडल की रूपरेखा तैयार करने का प्रयास करते हैं जिन्हें भिन्न राष्ट्रीय संदर्भों के आर-पार लागू किया जा सकता है।