भारत की विदेश नीति के निर्धारण और बाध्यताएँ
भारत विश्व में एक विस्तृत भू-भाग तथा विशाल जनसंख्या वाला देश है अतः इसकी विदेश नीति का विश्व राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ता है। भारत की विदेश नीति की विशेषताएं की रूपरेखा स्पष्ट करते हुए जवाहरलाल ने सितंबर 1946 में यह कहते हुए उदघोष किया था, “वैदेशिक संबंधों के क्षेत्र में भारत एक स्वतंत्र नीति का अनुसरण करेगा और गुटों की खींचतान से दूर रहते हुए संसार के समस्त पराधीन देशों को आत्म-निर्णय का अधिकार प्रदान कराने तथा जातीय भेदभाव की नीति का दृढ़तापूर्वक उन्मूलन कराने का प्रयत्न करेगा।” नेहरू का यह कथन आज भी भारत की विदेश नीति का आधारस्तंभ है।
भारत की विदेश नीति की मूल बातों का समावेश हमारे संविधान के अनुच्छेद 51 में किया गया है जिसके अनुसार राज्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देगा, राज्य राष्ट्रों के मध्य न्याय और सम्मानपूर्वक संबंधों को बनाये रखने का प्रयास करेगा, राज्य अंतर्राष्ट्रीय कानूनों तथा संधियों का सम्मान करेगा तथा राज्य अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों को पंच फैसलों द्वारा निपटाने की रीति को बढ़ावा देगा।
भारत के विदेश संबंधों का कार्यान्वयन निम्नलिखित प्रमुख सिद्धांतों से संचालित रहा है :-
(1) भारत की प्रभुसत्तात्मक स्वतंत्रता की रक्षा।
(2) शक्ति गुटों से दूर रहकर स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण।
(3) परतंत्र लोगों की स्वतंत्रता के सिद्धांत की स्वीकृति एवं साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद तथा नस्लवाद का विरोध।
(4) अंतर्राष्ट्रीय शांति तथा समृद्धि के लिए सब शांतिप्रिय देशों तथा संयुक्त राष्ट्र से सहयोग।
(5) विश्व तनाव में कमी करना।
(6) न्याय तथा ईमानदारी के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था तथा सहयोग का अधिक समान ढाँचा बनाना।
भारत की विदेश नीति की विशेषताएं
स्वाधीन भारत की विदेश नीति का विश्लेषण करने पर निम्नांकित विशेषताएँ भारतीय विदेश नीति की दिखाई देती हैं-
1. गुटनिरपेक्षता:-भारतीय विदेश नीति का सबसे महत्वपूर्ण तथा विलक्षण सिद्धांत गुटनिरपेक्षता है। जिस समय दोनों महाशक्तियाँ शीत युद्ध की नीति पर चल रही थी तब भारतीय निर्माताओं ने विश्व शांति तथा भारतीय सुरक्षा तथा आवश्यकताओं के हित में यही ठीक समझा कि भारत को शीत युद्ध तथा शक्ति राजनीति से दूर रखा जाए। इस प्रकार भारत ने अलग रहते हुए गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया। स्वतंत्रता से लेकर आज तक भारत इस नीति का पालन कर रहा है। इसके साथ ही भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को चलाने में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
2. साम्राज्ययाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध:- ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अधीन दासतां में पिसने के बाद भारत को साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद तथा नस्लवाद की शोषण प्रवृत्ति का पूर्ण आभास है। इन बुराइयों के विरोध को भारत ने अपनी विदेश नीति का मुख्य सिद्धांत माना है। भारत ने उपनिवेशीय शासन से छुटकारा पाने वाले देशों के स्वतंत्रता संघर्ष में उनका साथ दिया है। भारत और अन्य गुटनिरपेक्ष देशों की कोशिशों के कारण नामीबिया को 20 मार्च, 1990 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
3. नस्लवादी भेदवाद का विरोध:-भारत की समानता में विश्वास करता है तथा किसी भी नस्ल के लोगों से भेदभाव का पूर्ण विरोध करता है lअपनी इस वैदेशिक नीति के सिद्धांत के आधार पर ही भारत ने दक्षिण अफ्रीका के नस्लवादी शासन की कड़ी आलोचना की है और दक्षिण अफ्रीका विरूद्ध कुछ प्रतिबंध भी लगाए तथा उससे कूटनीतिक संबंध तोड़ लिये। नेल्सन मंडेला प्रयासों से दक्षिण अफ्रीका को श्वत अत्याचारी शासन से मुक्ति मिली। अत: भारत ने भी दक्षिण अफ्रीका पर लगे प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया।
4. साधनों की शुद्धता:- साधनों की शुद्धता की गाँधीवादी सदगुण के प्रभाव में भारत की विदेश नीति, झगड़ों के निपटारे के लिए, शांतिपूर्ण साधनों में अपना पूर्ण विश्वास प्रकट करती है। शांतिपूर्ण तथा अंहिसात्मक साधनों द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों का शांतिपूर्ण निपटारा करने का दृढ़ सर्मथक तथा अनुयायी रहा है। भारत युद्ध, आक्रमण तथा शक्ति का विरोध करता है।
5. पंचशील की नीति:- साधनों की शुद्धता के विश्वास ने भारत को पंचशील का सिद्धांत अपनाने के लिए प्रेरित किया है। पंचशील सिद्धांत का अर्थ है व्यवहार या आचरण के पाँच नियम। 20 जून 1954 को प्रधानमंत्री नेहरू तथा चीनी प्रधानमंत्री चानु-एन.लाई के बीच पंचशील के एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए। जिन्हें दोनों ही राष्ट्रों द्वारा अपनी-अपनी विदेश नीतियाँ तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में अपनाना था। पंचशील के सिद्धांतों को मान्यता देना स्थायी अंतर्राष्ट्रीय शांति लाने का सकारात्मक ढंग समझा जाता है।
6. संयुक्त राष्ट्र संघ तथा विश्व शांति के लिए समर्थन:- भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के मूल सदस्यों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र की विचारधारा का समर्थन करने तथा इसके क्रियाकलापों में सक्रियता, सकारात्मक तथा रचनात्मक रूप से भाग लेना भारतीय विदेश नीति का महत्वपूर्ण सिद्धांत रहा है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों का निपटारा हमेशा ही संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में करने की नीति अपनाई है। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में संयुक्त राष्ट्र संघ के पुर्नगठन की माँग की है तथा इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए अपना दावा प्रस्तुत किया है। इन सभी सिद्धांतों ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भारत को उसके उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता प्रदान की है।
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