रूसो के राजनीतिक विचार, प्रमुख रचनाएं,सोशल कान्ट्रेक्ट Pdf in Hindi

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रूसो के राजनीतिक विचार, प्रमुख रचनाएं,सोशल कान्ट्रेक्ट Pdf in Hindi

रूसो (Rousseau)

•रूसों का जन्म जिनेवा के एक निर्धन परिवार में 1712 में हुआ था| जीवन का अधिकांश समय में उसने धनाभाव में ही जीवन व्यतीत किया। अस्थाई भौतिक लाभों के लिए उसने अपना धर्म भी बदला था।

Rousseau Ke Rajnitik Vichar

और उन लोगों से भी दान स्वीकार किया जिनसे वह घृणा करता था। रूसो के राजनीतिक विचार मुख्य रूप से राज्य की प्रकृति और सामाजिक समझौते के ऊपर है।

 

रूसो की प्रमुख रचनाएं

इमाइल या आन एजुकेशन (1762),

डिसकोर्स आन दि साइन्स एण्ड आर्ट्स (1750)

डिसकोर्स आन दि ओरिजन एण्ड बेसिस ऑफ इनइक्विलिटी अमंग मैन (1754),

सोशल कान्ट्रेक्ट (1762),

कन्फेशन्स

 

रूसो के राजनीतिक विचार
1.मानव स्वभाव- रूसो ने मनुष्य का चित्रण एक ऐसे तनावग्रस्त व्यक्ति के रूप में किया है जिसका तनावरहित अतीत एक तनाव मुक्त भविष्य का निर्माण करने की प्रेरणा देता है। इस तनाव में से चेतना (conscience) का जन्म होता है| चेतना, रूसो के अनुसार एक नेत्रहीन इच्छा है जो शुभकर्म करना तो चाहती है परन्तु यह नहीं जानती कि शुभकर्म क्‍या है। रूसो के अनुसार सभ्यता तथा विकास के साथ-साथ मनुष्य की तनाव ग्रस्तता बढ़ती गई । इस प्रकार, रूसो ने व्यक्ति के स्वभाव में हॉब्स–लॉक दोनों के वर्णित स्वभावों का मिश्रण कर दिया।

 

2. प्राकृतिक अवस्था –प्राकृतिक अवस्था में रूसो के मत में, व्यक्ति सामान्य रूप से सुखी, स्वावलम्बी व संतुष्ट था जिसे उसने ‘‘उदस्त वनचर’’(Noble Savage) की संज्ञा दी है|किन्तु सभ्यता के विकास तथा व्यक्तिगत संपत्ति से प्राकृतिक अवस्था की शांति भंग करके एवं ऐसे सभ्य कहे जाने वाले समाज को जन्म दिया जिसने मनुष्य को मानवता का दुश्मन, संपत्ति का भूखा व स्वार्थी–घमंडी बना दिया|

3. संविदा का स्वरूप – उपयुक्त प्राकृतिक अवस्था से छुटकारा पाने के रूसो दो सुझाव बताता है- 1. वह आदिम व्यवस्था दुबारा लाये, 2. नए आधार पर समझौता लाये और शायद यही संभव है | समझौता व्यक्तियों के मध्य हुआ जिसमें सत्ता किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के किसी समुदाय को नहीं सौंपी गई बल्कि यह समाज के तमाम लोगों की सामान्य इच्छा (general will) को सौंपी गयी| दूसरे शब्दों में, प्रत्येक व्यक्ति ने अपनी स्वतन्त्रता को सामूहिक स्वतन्त्रता में बदल दिया।

 

4. प्रभुसत्ता – इसे उसने सामान्य इच्छा की संज्ञा दी जो कि हॉब्स की प्रभुसत्ता की भाँति ही अविभाज्य, अदेय, असीमित, सर्वव्यापी आदि है। रूसो के अनुसार सरकार सामान्य इच्छा द्वारा नियुक्त जन-हित का साधन है।

 

5. राज्य और व्यक्ति –रूसो के राज्य में सामान्य इच्छा को महत्ता दी गई है जिसमें व्यक्तिगत इच्छा को तुच्छ माना गया है।

 

 

रूसो के दो डिसकोर्सेज
* रूसो ने प्रबोधन (Enlightcnment) की समालोचना 1749 में लिखे अपने लेख ‘क्या विज्ञान और कला की प्रगति नैतिकता को भ्रष्ट या शुद्ध करने में योगदान दिया है ?’निबन्ध में की है। बाद में इसी पर रूसो की पुस्तक डिसकोर्स ऑन दि साइन्स एण्ड आर्ट्स (1750) प्रकाशित हुई। इसे प्रथम डिसकोर्स भी कहते हैं।

* प्रथम डिसकोर्स में रूसो ने स्पष्ट किया कि विज्ञान हमें बचा नहीं रहा है बल्कि हमें नैतिक रूप से बर्बाद कर रहा है। जो उन्नति लग रहो थी वह वास्तव में पीछे की ओर धकेला जाना है। सभ्य-समाजों की कलाओं ने केवल मनुष्य की बेड़ियों के ऊपर मालाएँ पहनाने का कार्य किया है। आधुनिक सभ्यता के बिकास ने न तो मनुष्य को सुखी बनाया है और न ही सद्‌गुणी। सदगुण सरल समाज में सम्भव था, जहाँ मनुष्य संयमी और मितव्ययिता का जीवन व्यतीत करता था। रूसो का मत है कि हमारे दिमाग उसी अनुपात में भ्रष्ट हुए हैं जिस अनुपात में कला और विज्ञान ने उन्नति की है।

 

* 1754 में रूसो ने ‘मनुष्यों के बीच असमानता का उद्भव क्या है और क्या यह प्राकृतिक कानूनों द्वारा प्राधिकृत है’,
विषय पर निबन्ध लिखा। इसे दूसरा डिसकोर्स के नाम से जाना जाता है जिसमें मनुष्य के पतन का कारण वर्णन है। साथ ही इसमें नागरिक समाज पर भी प्रकाश डाला गया है।

 

 

रूसो की स्वतंत्रता के विरोधाभास (Paradox of freedom)

* रूसो का मत है कि मनुष्य स्वतंत्रत जन्म लेता है और तरफ जंजीरों में जकड़ जाता है| रूसो यह भी विचार स्पष्ट करता है कि मनुष्य को स्वतंत्र किया ही जाना चाहिए| इसके लिए उसका मत था कि व्यक्ति सामाजिक समझौते से उत्पन्न सामान्य इच्छा के माध्यम से पुन: स्वतंत्रता को प्राप्त कर सकता है| यह रूसो की ‘स्वतंत्रता के विरोधाभास’ (paradox of freedom) की अवधारणा प्रकट करता है| क्योंकि एक ओर तो वह व्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करता है दूसरी ओर इसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को एक निरंकुश शासन के लिए अधीन कर देता है| सामान्य इच्छा रूपी निरंकुश शासन को स्वीकार करने से व्यक्ति पून: स्वतंत्र हो जाएगा, यह एक विरोधाभास है|

* रूसो की सामान्य इच्छा के उत्साह का महात्मा गाँधी ने समर्थन किया।

 

रूसो से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण तथ्य

•बार्कर का मत है कि चाहे हम वामपंथी हों या उनसे भी वाम दक्षिणपंथी हों या उनमें भी दक्षिण हमें अपना विचार हमेशा ही रूसो में मिल जायेगा।
•कार्टिंस के अनुसार रूसो का दर्शन बहुत ही व्यक्तिवादी है, आजादी एवं मुक्ति संबंधी उसके विचार तीव्र जोर का प्रतिबिंब है लेकिन साथ ही जटिल एवं विरोधाभासी है।
•अपनी पुस्तक ‘कान्ट्रेक्ट सोशल’ में रूसो ने प्रथम पंक्ति लिखी है कि मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है किंतु सर्वत्र जंजीरों से
जकड़ा हुआ है।
•इसी पुस्तक में रूसो लिखता है मनुष्य को स्वतंत्र होने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।

•रूसो के राजनीतिक विचार ने मनुष्य की प्राकृतिक अवस्था को सभ्य जंगली (Noble Sarvage) कहा है।
•सेबाइन का मत है कि रूसो को प्लेटो से आम दृष्टि मिली है।
•डब्ल्यू. टी. जोन्स के अनुसार मानव स्वभाव के संबंध में रूसो की धारणा प्लेटो और अरस्तू की धारणा से मेल खाती है|
•अपनी पुस्तक इमाइल दूसरा नाम आन एज्यूकेशन में रूसो ने प्रकृति की ओर लौट चलो (Back to the Nature) का
नारा दिया है।

•राइट के अनुसार रूसो ने व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा राज्य की शक्ति में सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश की है।
•हरमन के अनुसार सामान्य इच्छा विषयक रूसो की धारणा मौलिक एवं अत्यधिक प्रेरक है।
•रूसो के अनुसार एक देवताओं के राज्य में ही सरकार का स्वरूप लोकतंत्रात्मक हो सकता है। क्योंकि रूसो का मत था
कि सर्वश्रेष्ठ गुणों से युक्त लोकतंत्र न तो था व न होगा।

 

 

•रूसों ने ‘सोशल कान्ट्रेक्ट‘ में तीन प्रकार के कानूनों का उल्लेख किया है–

1. राजनीतिक या मौलिक कानून
2. नागरिक या दीवानी कानून
3. परम्परागत कानून

•जी. डी. एच. कोल के अनुसार रूसो का राजनीतिक प्रभाव समाप्त होने के बजाय प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
•रूसो की पुस्तक ‘इमाइल’ शिक्षा पर लिखी गयी पुस्तक है जिसमें धार्मिक शिक्षा का निषेध करने के कारण चर्च एवं प्रबुद्ध वर्ग ने इस पुस्तक का जबरदस्त विरोध किया।
•डरनिंग के अनुसार डिस्कोर्सेंस का चित्रण तो ऐतिहासिक है पर इमाइल का चित्रण दार्शनिक चित्रण है।

•रूसो प्रत्यक्ष लोकतंत्र का समर्थक है। वह प्रतिनिधि लोकतंत्र को निर्वाजित अभिजात तन्त्र (elective aristocracy) कहता है। जे.एस. टेलमॉन (Telmon) अपनी कृति ‘The Origins of Totalitarian Democracy’ (1952) में रूसो को प्रथम आधुनिक लोकतान्त्रिक विचारक को जगह आधुनिक सर्वाधिकारबाद का पिता कहते हैं।
•रूसो के अनुसार बुद्धि, विज्ञान व तर्क उस संस्था व नैतिकता को नष्ट करते हैं जिस पर समाज आधारित है । विज्ञान, बुद्धि व तर्क के अनुसार सोचने वाला व्यक्ति पतित पशु है।

•रूसो के राजनीतिक विचार के अनुसार तर्क व्यक्ति की अज्ञानता भले ही दूर करता हो लेकिन ठसे शंकालु बना देता है।
•रूसो अपने समय के भ्रष्टाचार से बहुत ज्यादा व्यधित था, उसके अनुसार भ्रष्टाचार की प्रक्रिया उसी तरह बदली नहीं जा
सकती जैसे कि सभ्यता।
•रूसो का मत था कि जिस किसी पहले व्यक्ति ने एक जमीन के डुकड़े की सीमा बांध कर यह सोचा होगा कि यह मेरी है, वे लोग इतने सीधे व भोले रहे होंगे कि उन्होंने इस व्यक्ति के कहने पर विश्वास कर लिया, यही पहला व्यक्ति नागरिक समाज का सच्चा संस्थापक रहा होगा।

•रूसो ने स्वतंत्रता व सामाजिक जीवन में तालमेल बैठाने के लिए जो सुझाव प्रस्तुत किए, उन्हें आरोपण द्वारा स्वतंत्रता सिद्धांत अथवा बाध्यकारिता द्वारा स्वतंत्रता सिद्धांत कहा जाता है।
•पेटमैन का मत है कि रूसो कपटपूर्ण उदार सामाजिक अनुबन्ध का आलोचक है।
•रूसो की दृष्टि में तर्क व्यक्ति का निहित गुण नहीं है, रूसो ने प्राकृतिक व्यक्ति को एक प्रकार का मूक जानवर बताया है।
•रूसो के अनुसार आधुनिक समाज की सबसे बड़ी त्रुटि असमानता है।

•रूसो एक ऐसे नागरिक धर्म का पक्षथर था जिसमें एक न्यूनतम आस्था की व्यवस्था (Minimum belief system) हो|
•प्लेटो की भाँति रूसो ने भी नैतिक आधार पर सम्पत्ति की आलोचना की है।
•रूसो के राजनीतिक विचार को आधुनिक समाजवाद का आध्यात्मिक प्रणेता कहा जाता है क्योंकि उसने सम्पत्ति संबंधी असमानताओं का विरोध किया।
•रूसो का आदर्श छोटे किसानों पर आधारित व्यवस्था है।

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