वन पारितंत्र के प्रकार और विशेषताएं
नमस्कार दोस्तों आप सभी लोगों का Hindi-khabri.in में आप सभी लोगों का स्वागत है। दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि वन पारितंत्र किसे कहते हैं?वन पारितंत्र के प्रकार और विशेषताएं के बारे में इस आर्टिकल के द्वारा हम लोग जानने वाले हैं तो दोस्तों आइए बिना देर किए हम जानते हैं कि वन पारितंत्र किसे कहते हैं पारितंत्र के प्रकार और विशेषताएं
वन पारितंत्र किसे कहते हैं?वन पारितंत्र के प्रकार और विशेषताएं
वन शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन शब्द ‘फोरिस'(foris) से हुई है जिसका अर्थ होता है बाहर। इसका संदर्भ गांव के बाहर की सीमा पर लगी बाड़ से है और इसमें वे सभी जमीन शामिल की जाती है जो खेत को जोति नहीं जाती है और जहां पर कोई नहीं रहता है। आज के समय वन उस जमीन को कहते हैं जिसकी देखभाल वन- विद्या के विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है,चाहे वह जमीनी वृक्षों,पहाड़ियों और आरोही पौधों इत्यादि से ढकी हो या नहीं। वन जीवोमो में जीवीय समुदायों (biotic communities) की विभिन्न किस्मों का जटिल समुच्च शामिल होता है। मृदा की किस्म,जलवायु तथा स्थानीय स्थलाकृति(topography)वृक्षों के वितरण और वन की वनस्पति में उनकी अधिकता को निर्धारित करती हैं।विभिन्न प्रकार के वन पारितंत्र(forest ecosystem)की विशेषताओं का वर्णन नीचे आर्टिकल में बताया जा रहा है-
शंकुधारी वृक्ष वन (Coniferous forest)
अधिक वर्षा तथा प्रबल मौसमी जलवायु वाले ठंडे क्षेत्रों-जहां ठंडे मौसम वाले दिन अधिक और गर्मियों के दिन थोड़े होते हैं और जिसकी यह विशेषता होती है कि उनमें बोरियल (boreal) शंकुधारी वृक्ष वन पाए जाते हैं जो पारमहाद्वीपीय (transcontinental) होते हैं।इसकी विशेषता यह है कि यहां पौधों की सदाबहार स्पीशीजे मिलती है,जैसे स्प्रूस (पिसिया ग्लांका,Picea glauca) पर(एबियस बालसैमिया,Abies balsamia) और चीड़ के वृक्ष (पाइनस राक्सबरधाई,Pinus roxburghii) -पाइनस स्ट्रोबस,(Pinus strobus) और लिक्स, भेड़िया,रीछ,लाल लोमड़ी, पोर्क्यू पाइन, गिलहरियां उभयचर प्राणी, जैसे पेड़ का मेंढक और तालाब के मेंढक जैसे जंतु भी मिलते हैं।
शंकुधारी वृक्षों की सुइयों से व्युत्पन्न करकट के बहुत ही धीरे-धीरे विच्छिन्न होने और उसमें पोषण पदार्थों की मात्रा अधिक ना होने के कारण यहां की मृदा में पोषकों की कमी होती है ये मृदाएं, अम्लीय होती हैं तथा इनमें खनिजों की कमी होती है। बोरियल वनों की उत्पादनशीलता तथा सामुदायिक स्थायित्व अन्य किसी जीवोम की तुलना मे कम होती हैं।
शीतोष्ण पर्णपाती वन:-
शीतोष्ण वनों की विशेषता यह होती है कि वहां मध्यम दर्जे की जलवायु पाई जाती है और चौड़ी पत्ती वाले पर्णपाती वृक्ष होते हैं जो सर्दियों में अपनी पत्तियों को गिरा देते हैं,और बसंत के आगमन पर नई पत्तियों को जन्म देते हैं। ये वन उत्तरी अमेरिका,यूरोप,पूर्वी एशिया( चीन व जापान सहित), चिली और ऑस्ट्रेलिया के कुछ भाग में पाए जाते हैं जहां शरद ऋतु में ज्यादा ठंडक पड़ती है और वार्षिक वर्षा 75 से 150 सेंटीमीटर तक होती है यहां साल भर लगभग एक जैसी वर्षा होती रहती है।
ये वृक्ष काफी लंबे लगभग 40 से 50 मीटर ऊंचे होते हैं और इनकी पत्तियां पतली और चौड़ी होती है। इस जीवोमो के प्रमुख जीनसो में मेपल(Acer,ऐसर),बीच (Fagus,फैगस), ओक (Quercus,क्वर्कस), हिकोरी(Carya,करया),बासवुड (Tilia,तिलिया),चेस्टनट (Castnea,कैस्टनिया), और काटनवुड (Populus,पोपुलस) शामिल होते हैं ।हिमालय में कुछ स्थानों पर प्रमुख वनस्पति हैं: शंकुधारी वृक्ष सीडार(Cedrus, सीडरस),जूनीपर के पेड़,(rhododendron, रोडोडेनडरान) सहित तथा विलो ( सैलिक्स,Salix आदि)।
शीतोष्ण वनों में रहने वाले जंतुओं में हिरन,भालू,गिलहरिया, धूसर लोमड़िया,बॉबकैट(bobcats), जंगली पीरु पक्षी और कठफोड़वा मुख्य होते हैं। सामान्यतः पाए जाने वाले अकशेरूकियो में केंचुए, घोंघे, मिलीपिड, कोलिओप्टेरा, तथा ऑर्थोप्टेरा कीट।कशेरुकियो में उभयचर प्राणी जैसे टोड,सालामेंडर, क्रिकेट, मेंढक और सरीसृप जैसे कछुए, छिपकलियां,सांप तथा स्तनधारी जैसे रैकून,अपोसम,सूअर,पहाड़ी शेर इत्यादि और पक्षियों में श्रृंगी उल्लू, हांक ( बाज़)इत्यादि शामिल होते हैं।
शीतोष्ण सदाबहार वन:
विश्व के कई भागों में भूमध्यसागरीय किस्म की जलवायु पाई जाती है जिसकी विशेषता उष्ण-शुष्क ग्रीष्म और ठंडा नम शीतकाल है। इनमें सामान्यतः कम ऊंचाई वाले सदाबहार वृक्ष पाए जाते हैं जिनकी पतियां सुई की तरह या चौड़ी होती है। इनमें हेमलोक,ईयू और मैंपल शामिल होते हैं। झाड़ियां 3-4 मीटर ऊंची होती है। शीतोष्ण सदाबहार अरण्य बाज वनों में पाए जाने वाले विशेष प्रकार के जंतुओं में खच्चर,हिरण, ब्रूश,खरगोश, काष्ठ चूहा, चिम्पक, और छिपकली इत्यादि होते हैं।
शीतोष्ण वर्षा-प्रचुर वन:
शीतोष्ण वर्षा-प्रचुर वन किसी अन्य वर्षा-प्रचुर वन से अधिक ठंडे होते हैं और ऋतुओं के अनुसार इनके ताप और वर्षा में स्पष्ट अंतर होता है। यहां वर्षा अधिक होती है परंतु कोहरा बहुत ही अधिक पड़ता है जो स्वयं वर्षा की तुलना में पानी का अधिक महत्वपूर्ण स्रोत होता है।पौधों और जंतुओं की विविधता अपेक्षाकृत अधिक गर्म स्थानों की अपेक्षा काफी कम होती हैं।
उष्णकटिबंधीय वर्षा-प्रचुर वन:
उष्णकटिबंधीय वर्षा-प्रचुर वन भूमध्यरेखा के पास पाए जाते हैं और ये वन पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे अधिक विविध समुदायों में गिने जाते हैं। यहां ताप और आर्द्रता दोनों ही उच्च रहते हैं और वर्षभर लगभग एक जैसे रहते हैं। वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से भी अधिक होती है और यह सामान्य रूप से वर्षभर होती रहती है।
उष्णकटिबंधीय वर्षा-प्रचुर वनों में पाए जाने वाले सामान्य कशेरुकीयो में वृक्षवासी उभयचर रेकोफोरस मलाबौरिकस जलीय सरीसृप,कैमिलियन,ऐगैमिड, करेल छिपकलियाँ और साँपो की कई स्पीशीजे,पक्षियों की कई स्पीशीजे और स्तनधारियों जैसे तेंदुओं,जंगली बिल्लियों,ऐटईटरो, विशालकाय उड़न गिलहरिया, बंदर और स्लौथ आदि पाए जाते हैं।
उष्णकटिबंधीय मौसमी वन
उष्णकटिबंधीय मौसमी वन उन क्षेत्रों में मिलते हैं जहां कुल वर्षा बहुत अधिक होती है परंतु यह शुष्क तथा नम कालों में बंटी रहती है।अत्यधिक नम उष्णकटिबंधीय मौसमी वनों में वार्षिक वर्षा उष्णकटिबंधीय वर्षा- प्रचुर वनों से कई गुना होती है जिन्हें सामान्यतः मानसूनी वन कहा जाता है। भारत (सेंट्रल इंडिया) तथा दक्षिण पूर्वी एशिया के सर्वाधिक ज्ञात उष्णकटिबंधीय मौसमी वनों में अक्सर बड़े वृक्ष टिक के होते हैं। इन क्षेत्रों में बांस भी एक महत्वपूर्ण चरम झाड़ी के रूप में पाए जाते हैं।
उपोष्णीय वर्षा-प्रचुर वन
काफी ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों में,जहां सर्दी और गर्मी के दिनों के ताप में भिन्नताएँ कम स्पष्ट होती है, चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार उपोष्णीय वन पाए जाते हैं।यहां की वनस्पतियों में महोगनी,पाम,ओक,मैंगोलिया, और इमली सभी अधिपादपो (पाइनएप्पल तथा ऑर्किड कुलो के) से ढके हुए,फर्न,बेले और स्ट्रैगलर अंजीर (फाइकस आरियस) आदि है। उपोष्णीय वन के जंतुओं का जीवन उष्णकटिबंधीय वर्षा-प्रचुर वनों के जंतुओं से बहुत मिलता-जुलता होता है।