स्किनर का कबूतर पर किया गया प्रयोग (Skinner’s Experiment on Pigeon)

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स्किनर का कबूतर पर किया गया प्रयोग (Skinner’s Experiment on Pigeon)

1. स्किनर द्वारा बनाया गया बॉक्स अंधकारयुक्त एवं शब्दविहीन है। इस बॉक्स में भूखे चूहे को ग्रिलयुक्त संकरे रास्ते से गुजरकर लक्ष्य तक पहुँचना था। प्रयोग आरम्भ करने से चूहे को निश्चित दिनों तक भूखा रखा गया, तथा उसे भोजन प्राप्त करने के लिए सक्रिय रहने का प्रबंध कर लिया गया था।

Skinner’s Experiment on Pigeon

बॉक्स में एक लीवर था। चूहा उपयुक्त मार्ग पर अग्रसर होता, लीवर पर चूहे का पैर पड़ता तथा खट की आवाज भी होती। लीवर पर पैर पड़ते ही प्रकाशयुक्त बल्ब जलता और उसे प्याले में कुछ खाना प्राप्त हो जाता। अतः लीवर को दबाने में होने वाली आवाज और प्राप्त भोजन पुनर्बलन (Reinforcement) का कार्य करता था।

2. इस प्रकार चूहे द्वारा लक्ष्य प्राप्ति के लिए किए जाने वाले व्यवहार अथवा अनुक्रिया का लीवर दबाने से उत्पन्न आवाज और प्याले में उपस्थित थोड़े से खाने द्वारा पुनर्बलन होने का प्रयास इस प्रयोग में किया गया। चूहे द्वारा सक्रिय रहकर जैसे-जैसे पुनर्बलन मिलता चला गया, वैसे-वैसे ही सही अनुक्रिया करने और लक्ष्य तक पहुंचने की प्रक्रिया में तीव्रता आती चली गई। अतः सक्रिय-अनुबन्धन के अनुसार सीखने का कार्य व्यक्ति द्वारा प्रदर्शित उसके सक्रिय व्यवहार से शुरू होता है।

3. दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि सक्रिय अनुबन्धन में पहले सीखने वाले को कोई न कोई अनुक्रिया करनी पड़ती है। कबूतर वाले प्रयोग में जैसे कबूतर द्वारा थोड़ा-सा दाहिनी ओर घूमना। इस व्यवहार के फलस्वरूप उसे पुनर्बलन मिलता है। (जैसे-कबूतर वाले प्रयोग में कबूतर को दाहिने ओर घूमने पर अनाज का दाना मिला था) यही पुनर्बलन सीखने वाले को अपनी पहली अनुक्रिया या व्यवहार को दोबारा (पुनरावृत्ति) करने के लिए प्रेरित करता है। पुरस्कार के रूप में उसे फिर पुनर्बलन (जैसे-कबूतर को अनाज के दाने) मिलता है। परिणामस्वरूप वह पहले से ज्यादा उत्साह के साथ अपने द्वारा पहले किए गए व्यवहार की पुनरावृत्ति करता है या व्यवहार को बार-बार करता है। इस प्रकार के अनुबन्धन में सीखने वाले को धीरे-धीरे वांछित व्यवहार करना सिखाया जा सकता है।

4. सक्रिय या नैमित्तिक अनुबन्धन का आधार (Basis of Instrumental Conditioning)-सक्रिय अनुबन्धन का आधार पुनर्बलन (Reinforcement) है। सक्रिय अनुबन्धन या नैमित्तिक अनुबन्धन में कोई भी घटना या उद्दीपक जो किसी प्रकार की अनुक्रिया उत्पन्न करता है, पुनर्बलन कहलाता है। (A reinforcer in operant conditioning is only stimulus or event which, when produced by a response, makes that response more likely to occur in the future.)

5. जो पुनर्बलन बार-बार दिया जाता है वह भावी व्यवहार का निर्णायक हो जाता है। सक्रिय अनुबन्धन के लिए विस्तृत उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती। किसी अनुक्रिया के लिए पुनर्बलन को माध्यम बनाया जाता है। अन्य व्यक्तियों की स्वीकृति मुस्कान, आत्म-महत्त्व (Self-Imortance), आत्म-क्षमता (Self-Worth), कठिन कार्यों को करना तथा अन्य अनेक आनन्ददायक अवस्थाएँ पुनर्बलन के रूप में हमारे व्यवहार को प्रभावित करती हैं।

6. सक्रिय अनुबन्धन या नैमित्तिक अनुबन्धन में व्यवहार एक स्वरूप ग्रहण कर लेता है। स्किनर द्वारा बताये इस अनुबन्धन में दो प्रकार के पुनर्बलन पाये जाते हैं–सकारात्मक (Positive) और नकारात्मक (Negative) | सकारात्मक पुनर्बलन में व्यक्ति क्रिया में योग देता है जबकि नकारात्मक पुनर्बलन इसके विपरीत है।

7. क्रिया-प्रसूत व्यवहार एवं पुनर्बलन (Operant Behaviour and Reinforcement)-सीखने के कार्य में पुनर्बलन द्वारा भरपूर सहायता मिली है। व्यवहार अथवा अनुक्रिया के घटने के पश्चात्‌ उसे पुनर्बलन प्रदान करने से तात्पर्य कुछ इस प्रकार के आयोजन से है जिनके द्वारा उस प्रकार की अनुक्रिया अथवा व्यवहार के पुनः घटित होने की संभावना को बढ़ा दिया जाए।

अनुक्रिया अथवा व्यवहार को हम दो प्रकार से पुनर्बलित कर सकते हैं।

(1) धनात्मक पुनर्बलन (Positive reinforcement)-कुछ देकर जिसे पाना उसे अच्छा लगे इस प्रकार के पुनर्बलन को धनात्मक पुनर्बलन कहते हैं, जैसे-भोजन, पानी, लैंगिक संपर्क, धन-दौलत, मान-सम्मान, प्रशंसा एवं सामाजिक स्वीकृति आदि की प्राप्ति।

(2) ऋणात्मक पुनर्बलन (Negative Reinforcement)-जिसके पास से कुछ हटाकर या जिसका हटना अछा लगे उसे ऋणात्मक पुनर्बलन कहते हैं। बिजली के आधात, डरावनी आवाज, अपमान एवं डाँट–फटकार आदि से बचना दूसरे उदाहरण हैं।
क्रिया-प्रसूत अनुबन्धन द्वारा प्रणाली को वांछित व्यवहार सीखने की दिशा में पुनर्बलन अपनी भूमिका अच्छी तरह तभी निभा सकता है जबकि उसे यथोचित रूप में दिया जा सके। उस दिशा में मुख्य रूप से

 

स्किनर का कबूतर पर किया गया प्रयोग :

निम्न चार प्रकार का पुनर्बलल आयोजन (Reinforcement Schedule) प्रयोग में आता है–

(1) अविछित पुनर्बलन आयोजन (Continuous Reinforcement Schedule)-यह शत-प्रतिशत पुनर्बलन आयोजन है जिससे सीखने वाले की प्रत्येक सही अनुक्रिया या व्यवहार को पुनर्बलित (पुरस्कृत) किया जाता है।

(2) निश्चित अन्तराल पुनर्बलन आयोजन (Fixed Interval Reinforcement Schedule)- इस आयोजन में सीखने वाले को एक निश्चित समय के पश्चात्‌ पुनर्बलन दिया जाता है, जैसे किसी प्रयोग में चूहे को 3 मिनट के बाद भोजन का कुछ अंश प्रदान करना, किसी नौकर को एक सप्ताह के बाद वेतन देना आदि।

(3) निश्चित अनुपात पुनर्बलन आयोजन (Fixed Ratio Reinforcement Schedule)– इस आयोजन में यह निश्चित करके पुनर्बलन प्रदान किया जाता है कि कितनी बार सही अनुक्रिया करने पर पुनर्बलन दिया जाए। उदाहरण के लिए कबूतर को 50 बार सही चोंच मारने पर एक दाना देना, क्रियाओं के तीन ठीक उत्तर देने पर पुरस्कार देना इत्यादि ।

(4) परिवर्तनशील पुनर्बलन आयोजन (Variable Reinforcement Schedule)- कई बार पुनर्बलन प्रदान करने में निश्चित अन्तराल और अनुक्रियाओं के निश्चित अनुपात को ध्यान में नहीं रखा जाता, बल्कि उसे किसी भी समय कितनी अनुक्रियाओं के पश्चात्‌ प्रदान कर दिया जाता है। इस प्रकार के पुनर्बलन आयोजन को परिवर्तनशील पुनर्बलल आयोजन कहा जाता है।

(5)पुनर्बलन आयोजन के उपरोक्त प्रकारों की उपयुक्तता में से अविछिन्न पुनर्बलन या निरन्तर पुनर्बलन (Continuous Reinforcement)- द्वारा जितनी शीघ्रता से किसी वांछित व्यवहार को सीखने में सहायता मित्र सकती है उतनी ही शीघ्रता से पुनर्बलित करने पर व्यवहार के विलुप्तिकरण (Extinction) की संभावना बढ़ जाती है। सीखे हुए वांछित व्यवहार को कम-से-कम भूलने अथवा उसके विलुप्तिकरण की संभावना को कम करने की दिशा पें परिबर्तनशील पुनर्बलन आयोजन सबसे अधिक उपयुक्त रहता है।

इस तरह से पुनर्बलन के आयोजन में शुरुआत श्त-प्रतिशत पुनर्बलन द्वारा दी जानी चाहिए। इसके पश्चात्‌ निश्चित अन्तराल अथवा निश्चित अनुपात पुनर्बलन को प्रयोग किया जाना चाहिए तथा अन्त में सीखे हुए वांछित व्यवहार को स्थायी रूप प्रदान करने की दिशा में परिवर्तनशील पुनर्बलन का उपयोग किया जाना चाहिये।

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