बृहत् संचलन(Mass Movement) किसे कहते हैं बृहत् संचलन के प्रकार

Spread the love

बृहत् संचलन(Mass Movement) किसे कहते हैं बृहत् संचलन के प्रकार

बृहत् संचलन किसे कहते हैं- बृहत् संचलन के अंतर्गत वे सभी संचलन आते हैं जिनमें शैलो का बृहत् मलवा गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानांतरित होता है। इसका तात्पर्य यह होता है कि वायु,जल, हिम अपने साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक मलवा नहीं ढोते, अपितु मलवा भी अपने साथ वायु,जल या हिम को ले जाते हैं। वृहत मलबे की संचलन गति मंद से तीव्र हो सकती है जिसके फलस्वरुप पदार्थों के छिछले से गहरे स्तंभ प्रवाहित होते हैं जिनके अंतर्गत विसर्पण,बहाव,स्खलन एवं पतन(Fall) शामिल होते हैं।

बृहत् संचलन ने गुरुत्वाकर्षण शक्ति सहायक होती है तथा कोई भी भू-आकृतिक कारक जैसे- प्रवाहित जल,हिमानी,वायु,लहरें एवं धाराएं बृहत् संचलन की प्रक्रिया में सीधे रूप से शामिल नहीं होते हैं इसका अर्थ यह होता है कि बृहत् संचलन अपरदन के अंदर नहीं आता है यद्यपि पदार्थों का संचलन (गुरुत्वाकर्षण की सहायता से) एक स्थान से दूसरे स्थान को होता रहता है।

बृहत् संचलन की सक्रियता के कई कारक होते हैं जो इस प्रकार से नीचे दिए गए हैं-

प्राकृतिक एवं कृत्रिम साधनों द्वारा ऊपर के पदार्थों के टिकने में आधार का हटाना।

ढालों की प्रवणता एवं ऊंचाई में वृद्धि।
पदार्थों के प्राकृतिक अथवा कृत्रिम भराव के कारण उत्पन्न अतिभार।
अत्यधिक वर्षा,संतृप्ती एवं ढाल के पदार्थों के स्नेहन द्वारा उत्पन्न अतिभार।
मूल ढाल की सतह पर से पदार्थ या भार का हटना।
भूकंप का आना
विस्फोट या मशीनों का कंपन
अत्यधिक प्राकृतिक रिसाव

झीलों,जलाशयों एवं नदियों से भारी मात्रा में जल का निष्कासन एवं परिणामस्वरूप ढालो एवं नदी तटों के नीचे से जल का मंद गति से बहना।
प्राकृतिक वनस्पति का अंधाधुंध विनाश।

संचलन के मुख्य रूप से कितने रूप होते हैं

संचलन के मुख्य रूप से निम्न प्रकार के तीन रूप होते हैं-

अनुप्रस्थ विस्थापन (तुषार वृद्धि या अन्य कारणों से मृदा का अनुप्रस्थ विस्थापन)
प्रवाह
स्खलन

बृहत् संचलन विभिन्न प्रकारों; संचलन की सापेक्ष गति/दर एवं आर्द्रता की सीमाओं के संबंधों को दर्शाता है।

बृहत् संचलन के प्रकार

बृहत् संचलन को दो प्रमुख प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

मंद संचलन
तीव्र संचलन

मंद संचलन(Slow movements)

मंद विरूपण-इस वर्ग का एक प्रकार है जो कि मध्यम तीव्र एवं मृदा से आच्छादित ढाल पर घटित होता है इसमें पदार्थों का संचलन इतना मंद होता है कि इसका आभास करना भी बहुत ज्यादा कठिन होता है और दीर्घकालिक पर्यवेक्षण से ही इसका पता लगाया जा सकता है इसमें सम्मिलित सभी पदार्थ,मृदा एवं शैल का मलवा हो सकता है।इसका उदाहरण बाढ़- स्तंभ,दूरभाष स्तंभ को आपने लंबवत स्थिति में झुकी भी जरूर देखा होगा यदि देखा है आपने तो वही मंद विरूपण का प्रभाव है-इसमें शामिल पदार्थों के आधार पर अनेक प्रकार के मंद विरूपण जैसे-मिट्टी मंद विरुपण,टैलस मंद विरूपण,शैल हिमानी मंद विरूपण आदि की पहचान की जा सकती है इस वर्ग में मृदा विवरण भी शामिल होता है जिसका संबंध ढाल के सहारे मंद गति से प्रवाहित मृदा के अंबार अथवा पानी से स्नेहित या संतृप्त सुक्ष्म कण वाले शैल मलवा से होता है यह प्रक्रिया उन क्षेत्रों में आम होती है जहां परिहीमानीय एवं आर्द शीतोष्ण क्षेत्र होते हैं जहां पर गहराई तक हिमकृत मैदान का सतही पिघलाव होता है तथा वहां लंबी लगातार वर्षा होती है जब ऊपरी भाग संतृप्त और निम्न भाग जल के लिए अप्रवेश्य हो तो ऊपरी भागों में प्रवाह होता है।

तीव्र संचलन(Rapid Movements)

यह संचलन आर्द(ठंडा)जलवायु प्रदेशों में निम्न से लेकर तीव्र ढालो पर घटित होते हैं। संतृप्त चिकनी मिट्टी या गादी धरातल- पदार्थों का निम्न अंशो वाली वेदिकाओ या पहाड़ी ढालों के सहारे निम्नान्मुख मुख्य संचलन मुद्रा प्रवाह कहलाता है। प्रायः पदार्थ सीढ़ी के समान वेदिकाए बनाते हुए अवसर्प कर जाते हैं तथा अपने सिर्ष के पास चापाकार कगार तथा पदांगुली के पास एकत्रित उभार छोड़ जाते हैं जब ढाल तीव्रतर होते हैं तो आधार शैल,विशेषकर कोमल परतदार शैल, जैसे शेल या गहराई से अपक्षयित आग्नेय शैल, भी ढाल के नीचे स्खलित हो जाती है।

इस वर्ग में दूसरा प्रकार है कीचड़ प्रवाह । वनस्पति आवरण के अभाव एवं भारी वर्षा के कारण अपक्षयित पदार्थों के मोटे संस्तर जल से संतृप्त हो जाते हैं एवं धीरे-धीरे अथवा तीव्रता से निश्चित वाहिकाओं के सहारे नीचे की ओर प्रवाहित होने लगते हैं। यह एक घाटी के अंदर कीचड़ की नदी सी दिखाई पड़ती है।जब कीचड़ प्रभाव वाहिकाओं से बाहर निकल कर गिरिपद या मैदान में आते हैं तो वे सड़कों,पुलों एवं मकानों को चपेट में लेते हुए बहुत विध्वंस कारक सिद्ध होते हैं। ऐसे कीचड़ प्रवाह उदगारत या हाल में ही उद्गगारित ज्वालामुखी के ढालो पर बहुधा पाये जाते हैं। ज्वालामुखीय राख,धूल एवं अन्य खंडित तत्व भारी वर्षा के कारण कीचड़ में परिवर्तित हो जाते हैं एवं ढालों पर कीचड़ की नदी या जिह्रा (Tongue) के रूप में प्रवाहित होते हैं। इनसे मानव अधिवासो को बहुत बड़ी क्षति पहुंचती है।

इस प्रकार के संचलन में तीसरा प्रकार मलवा अवधाव,वनस्पति आवरणयुक्त या उससे वंचित आर्द्र प्रदेशों की विशेषता है। यह तीव्र ढालों पर संकीर्ण पथ के रूप में घटित होता है। मलवा अवधाव, कीचड़ प्रवाह से बहुत तीव्रतर होता है तथा हिम अवधाव के समान होता है।

दक्षिण अमेरिका के ऐडीज पर्वतों एवं उत्तर अमेरिका के रॉकीज पर्वतो में कुछ ऐसे ज्वालामुखी हैं जिनमें पिछले दशक में उद्गगार हुआ तथा उनके ढालो पर उद्गगार की अवधि में तथा उद्गगार के पश्चात बहुत विनाशकारी कीचड़ प्रवाह हुआ।

इसे भी पढ़ें-प्राकृतिक वनस्पति किसे कहते हैं?

समूह सखी क्या है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *