शरद ऋतु के प्रमुख त्यौहार कौन-कौन से हैं?

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शरद ऋतु के प्रमुख त्यौहार कौन-कौन से हैं?

Shard Ritu Ke Parmukh Tyohar-नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका आज के इस आर्टिकल में दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे शरद ऋतु के प्रमुख त्यौहार कौन-कौन से हैं?,शरद ऋतु के प्रमुख त्यौहार के बारे में और हम जाने की किस प्रकार त्योहार भारतवासियों में सांस्कृतिक एकता एवं भाईचारे की भावना को बढ़ाते हैं हमारा देश गुजरात से अरुणाचल प्रदेश तक एवं कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक विस्तृत भूखंड में फैला हुआ है इस देश में त्यौहार भी क्षेत्रीय विशेषताओं के साथ मनाया जाते हैं त्योहारों का संबंध प्रकृति और धर्म से जोड़ा जाता है कुछ त्योहार राष्ट्रीय समाज में घटी महान घटना अथवा किसी महान व्यक्ति की याद में भी बनाए जाते हैं ऐसे त्योहारों की चर्चा भी हम इस आर्टिकल के अंतर्गत करेंगे जो हर वर्ष हमें देश के आजादी एवं महापुरुषों के बलिदान की कहानी याद दिला कर हमें देश भक्ति की भावना को जागृत करता है और बढ़ाता है तो दोस्तों आइए अब हम देखें कि यह शरद ऋतु के प्रमुख त्योहार किस रूप में मनाया जाते हैं किस प्रकार के विभिन्न जातियों धर्मों संप्रदायों के बीच सेतु का काम करते हैं और किस प्रकार यह सद्गुणो का विकास करते हैं।

शरद ऋतु के प्रमुख त्योहार

हमारा देश भारत कृषि प्रधान देश है। कृषि जीवन का आधार है इसलिए हमारे कई त्यौहार कृषि से जुड़े हुए हैं भारत में मुख्य रूप से दो फसलें होती हैं-रबी और खरीफ। इन दोनों फसलों की कटाई के अवसर पर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कई त्योहार मनाए जाते हैं।

नवरात्र

वर्ष में मुख्य दो नवरात्र आते हैं एक है शरद ऋतु की नवरात्रि जो आश्विन शुक्ल प्रथमा से नवमी तक और दूसरी वासंतीय चैत्र मास की शुक्ल प्रथमा से नवमी तक इन दोनों नवरात्रों का संबंध रवि और खरीफ के दोनों मुख्य फसलों से हैं।

दुर्गा पूजा

शरद ऋतु के त्योहार दुर्गा पूजा से आरंभ होकर दीपावली तक चलते रहते हैं दशहरा या नवरात्रि या विजयदशमी का त्यौहार संपूर्ण भारत ने बड़े उत्साह एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है इन त्योहारों के मूल में प्रकृति परिवर्तन फसल की कटाई एवं धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई है यह धार्मिक मान्यताएं मानव के सब विचारों को ऊपर उठाने में सहायता करती हैं शक्ति की प्रतीक देवी दुर्गा की आराधना पूरे देश में भिन्न-भिन्न रूपों में होती हैं उत्तर पूर्वी भारत विशेषकर बंगाल प्रांत में मां दुर्गा की आकर्षक एवं विशाल प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है उत्तर पश्चिम भारत में देवी की पूजा के साथी रामलीला ओं का विशेष आयोजन किया जाता है इसकी समाप्ति रावण मेघनाथ कुंभकरण के विशाल पुत्रों को जलाने के साथ होता है। गुजरात राज्य में रात्रि जागरण एवं अंबा की पूजा के साथ उस राज्य के मनोहारी नृत्य गरबा का आयोजन होता है दक्षिण भारत में यह त्योहार नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है प्रथम 3 दिन शक्ति की प्रतीक दुर्गा की आराधना की जाती है उसके बाद 3 दिन धन की देवी लक्ष्मी की आराधना की जाती है और बाकी 3 दिन विद्या की देवी सरस्वती माता की पूजा के साथ इसका समापन होता है।इस त्यौहार के आगमन से संपूर्ण भारत में उल्लास उमंग का वातावरण बन जाता है मेलों में सभी संप्रदायों के लोग इकट्ठे होकर आनंद मनाते हैं इस प्रकार आपसी सौहार्द का वातावरण बनता है।

दीपावली

दीपावली हमारे देश का दूसरा महत्वपूर्ण त्योहार है यह कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाई जाती है दीपमालिकाओं से अमावस्या की रात्रि में सारा वातावरण जगमगा उठता है। लोक मान्यता है कि अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र इसी दिन रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे थे इसी खुशी में अयोध्या वासियों ने घरों को दीप मालिकों से सजा कर खुशी मनाई थी वर्षा ऋतु के तत्काल बाद मनाए जाने वाले इस त्योहार के अवसर पर विश्वासी घरों की और अपने अगल-बगल की साफ सफाई करते हैं क्योंकि वर्षा ऋतु में कीट पतंगों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होती है जिनसे तरह-तरह की बीमारियों के बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है साफ-सफाई और घरों की रंगाई पुताई करने से कीट पतंगों की संख्या भी कम हो जाती है साथ ही घरों को सुंदर और आयु में भी वृद्धि होती है दीपावली के अवसर पर दुकानों को भी सजाया जाने का चलन है उत्तर भारत में इस दिन धन की देवी लक्ष्मी और विध्नहारी गणेश की पूजा की जाती है पूरे देश में इस अवसर पर स्वच्छता और सौंदर्य की छटा बिखरी दिखती है

काली पूजा

पूर्वी भारत में विशेषकर बंगाल प्रांत में इसे काली पूजा के नाम से भी मनाया जाता है लोक मान्यता के अनुसार मां काली ने अत्याचारी चंड-मुंड नाम के दैत्य का वध किया था।

क्षिण भारत में इन त्योहारों को सात्विकता की आसुरी शक्ति पर विजय की याद में ‘नरक चतुर्दशी’ के रूप में मनाया जाता है। लोक विश्वास के अनुसार श्रीकृष्ण ने इसी दिन नरकासुर का वध किया था।

वास्तव में इन त्योहारों के पीछे यही भावना निहित है ताकि हमारे अंदर दुर्गुणों का नाश हो एवं सद्गुणों का विकास हो। देवी देवताओं की प्रतिमाएं और उनसे जुड़ी हुई कथाएं प्रतीक रूप में है जनसामान्य केवल कोरे उपदेश द्वारा प्रेरित नहीं किया जा सकता। यही कारण रहे होंगे जिनसे मूर्ति रुप में सात्विक एवं आसुरी शक्तियों का प्रदर्शन आरंभ हुआ होगा दुर्गा की प्रतिमा देवताओं की सम्मिलित शक्ति का ही प्रतीक है।महिषासुर राक्षस की प्रतिमा आसुरी या राक्षसी प्रवृत्ति का प्रतीक है। विध्न हरण गणेश की प्रतिमा की पूजा होती है। गणपति को बुद्धिदाता एवं उनकी सवारी चूहे को विध्न के रूप में समझा जाता है यह प्रतीक है कि ज्ञानरूपी गणेश विध्न रूपी चूहे को बस में रखते हैं देवी लक्ष्मी की प्रतिमा समृद्धि का प्रतीक है इसी प्रकार रावण,मेघनाथ एवं कुंभकर्ण रूपी आसुरि या बुराई की शक्तियों का विनाश की सात्विकता या अच्छाई के प्रति राम द्वारा ही संभव है। वास्तव में मानव के अंदर मानवीय गुणों का विकास एवं आसुरी दुर्गुणों का नाश ही व्यक्ति के व्यक्तित्व को ऊपर उठा सकता है।

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