मातंगिनी हाजरा का जीवन परिचय
मातंगिनी हाजरा का जीवन परिचय-मातंगिनी हाजरा वे भारती महिला थी जिन्होंने जिंदगी के 62 साल की उम्र तक तो यह भी नहीं पता था कि स्वतंत्रता आंदोलन है क्या वह बंगाल के एक गरीब किसान की बेटी थी लोगों के घरों में मेहनत मजदूरी करती है और उसी से अपना घर चलाती थी वह अकेली थी और उनके अपने गांव और घर से बाहर की जिंदगी बड़ी सीमित थी धीरे-धीरे लोगों से अपने देश की हालत और गुलामी के बारे में जानने लगी घर से बाहर निकली तो अंग्रेजी हुकूमत का अत्याचार दिखा धीरे-धीरे लोगों से गांधी जी के बारे में भी जानने लगी एक दिन 1932 में उनकी झोपड़ी के बाहर से सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत एक विरोध यात्रा निकल रही थी 62 साल की हाजरा को जाने क्या सुझाव भी यात्रा में शामिल हो गई| उन्होंने नमक विरोधी कानून में नमक बनाकर कानून तोड़ा तो पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया जेल से बाहर आकर उन्होंने एक चरखा ले लिया और खादी पहनने लगी लोग उन्हें बुड्ढी गांधी के नाम से पुकारने लगे।
1942 में गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन का ऐलान कर दिया और नारा दिया करो या मरो मातंगिनी हाजरा ने मान लिया था कि अब आजादी का वक़्त करीब आ गया वे 72 साल की उम्र में इसमें शामिल हो गए आंदोलन में लोगों ने जुलूस निकालना शुरू कर दिया इसमें ज्यादातर महिलाएं थी बुड्ढी गांधी हाजरा भी शामिल हो गई| जुलूस आगे बढ़ने लगा पुलिस ने चेतावनी दी तो लोग पीछे हटने लगे| इसी समय मांतगिनी बीच से निकलकर जुलूस के आगे आ खड़ी हुई उनके दाएं हाथ में तिरंगा था|तिरंगा लहराते हुए वंदे मातरम के उद्देश्य के साथ आगे बढ़ी तो पुलिस वाले ने उनके हाथ पर गोली मार दी। वे घायल हो गई लेकिन तिरंगे को गिरने नहीं दिया।
घायल कराहती मातंगिनी हाजरा ने तिरंगा दूसरे हाथ में ले लिया और फिर आगे बढ़ने लगी पुलिस ने फिर दूसरे हाथ पर भी गोली मारी उन्होंने फिर वंदे मातरम का नारा लगाया और तिरंगा नहीं नहीं गिरने दिया थाने की तरफ बढ़ती रही|तब एक पुलिस ऑफिसर ने तिसरी गोली चलाई, गोली बूढ़ी गांधी के सिर में आकर लगी।वे गिर गई लेकिन तिरंगे को जमीन पर नहीं गिरने दिया। उनकी मौत के बाद लोग काफी आक्रोशित हो गए सोचा कि जब एक बूढ़ी महिला इतनी हिम्मत दिखा सकती है तो हम क्यों नहीं फिर क्या था लोगों ने सभी सरकारी दफ्तरों पर कब्जा कर लिया और वहां अपनी खुद की सरकार घोषित कर दी।