जीवमंडल निचय किसे कहते हैं?
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका आज के इस नए आर्टिकल में दोस्तों आज के इस नए आर्टिकल में हम जानेंगे कि जीवमंडल निचय किसे कहते हैं, जीवमंडल निचय के उद्देश्य क्या है भारत में कितने जीव मंडल निचय हैं? आदि जीवमंडल निचय के बारे में जानेंगे तो आइए हम बिना देर किए जानते हैं-
जीवमंडल निचय किसे कहते हैं?
जीवमंडल निचय विशेष प्रकार की भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तंत्र है, जिन्हें यूनेस्को UNESCO के मानव और जीवमंडल प्रोग्राम के अंतर्गत मान्यता प्राप्त है।
जीवमंडल निचय के तीन मुख्य उद्देश्य हैं।
भारत में 18 जीव मंडल निचय है इनमें से 10 जीव मंडल निचय। यूनेस्को के द्वारा जीव मंडल निचय नेटवर्क पर मान्यता प्राप्त हैं।
नीलगिरी जीवमंडल निचय
नीलगिरी जीव मंडल निचय का स्थापना 1986 में हुई थी और यह भारत का पहला जीव मंडल निचय है।इस निचय में वायनाड वन्य जीवन सुरक्षित क्षेत्र, नागरहोल,बांदीपुर और मदुमलाई,निलंबूर का सारा वन से ढका ढाल,ऊपरी नीलगिरी पठार, सायलेंट वैली और सिंदुवानी पहाड़िया शामिल है।इस जीव मंडल निचय का कुल क्षेत्र 5,520 वर्ग किलोमीटर है।
नीलगिरी जीव मंडल निचय में विभिन्न प्रकार के आवास और मानव क्रिया द्वारा कम प्रभावित प्राकृतिक वनस्पति व सूखी झाड़ियां जैसे- शुष्क और आर्द्र पर्णपाती वन, अर्ध-सदाबहार वन, आर्द्र सदाबहार वन, सदाबहार शोलास, घास के मैदान और दलदल शामिल है। यहां पर दो संकटापन्न प्राणी प्रजातियों, नीलगिरी (Tahar) और शेर जैसी दुम वाले बंदर की सबसे अधिक संख्या पाई जाती हैं। नीलगिरी नीचय में हाथी,बाघ,गौर,सांभर और चीतल जानवरों की दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा संख्या तथा कुछ संकटापन्न और क्षेत्रीय विशेष पौधे पाए जाते हैं।इस क्षेत्र में कुछ ऐसी जनजातियों के आवास भी स्थिति है,जो पर्यावरण के साथ सामंजस्य करके रहने के लिए विख्यात हैं। इस जीवमंडल की स्थलाकृति उबड़-खाबड़ है।समुद्र तल से ऊंचाई 250 मीटर से 2650 मीटर तक है।पश्चिम घाट में पाए जाने वाले 80% फूलदार पौधे इसी निचय में मिलते हैं।
नंदा देवी जीव मंडल निचय
नंदा देवी जीवमंडल निचय उत्तराखंड में स्थित है,जिसमें चमोली,अल्मोड़ा,पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों के भाग शामिल है।
यहां पर मुख्यतः शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं यहां पाई जाने वाली प्रजातियों में सिल्वर वुड तथा लैटीफोली जैसे ओरचिड और रोड़ोंडेंड्रान शामिल है।उस जीव मंडल निचय में कई प्रकार के वन्य जीव जैसे- हिम तेंदुआ(Snow leopard), काला भालू,भूरा भालू,कस्तूरी मृग,हिम- मुर्गा, सुनहरा बाज और काला बाज पाए जाते हैं।
यहां पारिस्थितिक तंत्रों को मुख्य खतरा संकटापन्न पौध प्रजातियों को दवा के लिए इकट्ठा करना, दावानल और पशुओं का व्यापारिक उद्देश्य के लिए शिकार से है।
सुंदरबन जीव मंडल निचय
यह पश्चिम बंगाल में गंगा नदी के दलदली डेल्टा पर स्थित है। यह एक विशाल क्षेत्र (9630 वर्ग किलोमीटर) पर फैला हुआ है और यहां मैंग्रोव वन, अनूप और वनाच्छादित दीप पाए जाते हैं। सुंदरवन लगभग 200 रॉयल बंगाल टाइगर का आवासीय क्षेत्र हैं। मैंग्रोव वृक्षो की उलझी हुई विशाल जड़ समूह मछली से श्रिम्प तक को आश्रय प्रदान करती हैं। इन मैंग्रोव वनों मे 170 से ज्यादा पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती है।
स्वयं को लवणीय और ताजा जल पर्यावरण के अनुरूप ढालते हुए बाघ पानी में तैरते हैं और चीतल, भौकने वाले मृग ,जंगली सूअर और यहां तक कि लंगूरों जैसे दुर्लभ शिकार भी कर लेते हैं। सुंदर वन के मैंग्रोव वनों में हेरिशिएरा फोमीज, जो बेशकीमती इमारती लकड़ी है,भी पाई जाती है।
मन्नार की खाड़ी का जीव मंडल निचय
मन्नार की खाड़ी का जीव मंडल निचय लगभग एक लाख पांच हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है और भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित है। समुद्रीय जीव विविधता के मामले में यह क्षेत्र विश्व के सबसे धनी क्षेत्रों में से एक है। इस जीव मंडल निचय में 21 दीप है और इन पर अनेक ज्वारनदमुख, पुलिन,तटीय पर्यावरण के जंगल, समुद्री घासे, प्रवाल दीप, लवणीय अनूप और मैंग्रोव पाए जाते हैं। यहां पर लगभग 3,600 पौधों और जिवो की संकटापन्न प्रजातियां पाई जाती है जैसे- समुद्री गाय(Dugong dugon)। इसके अलावा भारतीय प्रायद्वीप क्षेत्रीय विशेष की 6 मैंग्रोव प्रजातियां भी संकटापन्न हैं।