सूक्ष्म इतिहास क्या है? | विचारक, सिद्धांत और महत्व
सूक्ष्म इतिहास क्या है?
क्या आपने कभी सोचा है कि इतिहास सिर्फ़ बड़े-बड़े राजाओं, युद्धों या साम्राज्यों की कहानियों तक ही सीमित क्यों हो? असल में, इतिहास सिर्फ़ महलों और राजाओं का नहीं, बल्कि आम लोगों की ज़िंदगी का भी होता है।
इसी सोच से जन्म लिया सूक्ष्म इतिहास (Micro History) ने।
यह इतिहास की वो धारा है जो छोटे स्तर पर, आम लोगों और स्थानीय घटनाओं को केंद्र में रखती है। इसमें लोककथाएँ, मौखिक परंपराएँ और स्थानीय अनुभवों को खास जगह दी जाती है।
इतिहासकार एम. एम. पोस्टन ने इसे समझाने के लिए दो शब्दों का ज़िक्र किया था –
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सूक्ष्मदर्शी अध्ययन – जो सिर्फ़ स्थानीय महत्व तक सीमित रहता है।
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लघु ब्रह्मांडीय अध्ययन – जो छोटे स्तर की घटनाओं को बड़े संदर्भ से जोड़कर देखता है।
यानी सूक्ष्म इतिहास केवल “गाँव-नगर” का नहीं, बल्कि पूरे समाज को छोटे-छोटे हिस्सों के ज़रिए समझने का प्रयास है।
सूक्ष्म इतिहास के प्रमुख विचारक
कार्लो गिन्जवर्ग, जो सूक्ष्म इतिहास के एक बहुचर्चित इतिहासकार हैं, मे कहा कि इस शब्द का प्रथम प्रयोग अमेरिकी विद्वान् जॉर्ज आर. स्टीवर्ट ने किया है। अपनी पुस्तक, पिकेट्स चार्ज : ए माइक्रो हिस्ट्री ऑफ दि फाइनल चार्ज ऐट गेटिसबर्ग, जुलाई 3, 1863, (1959) में स्टीवर्ट मे पहली बार इस शब्द का प्रयोग किया। पुस्तक एक घटना पर केंद्रित है जो लगभग बीस मिनट तक हुई।
1968 में, लुइ गोंजलेज ने सूक्ष्म इतिहास’ शब्द का प्रयोग अपनी पुस्तक के उपशीर्थक के रूप में किया है जो चार शताब्दियों तक मेक्सिको के एक छोटे ‘विस्मृत” गाँव में हुए परिवर्तन के अनुभव से संबध रखता है। वास्तव में, जैसा कि गोंजालेज ने स्वयं कहा है, यह शब्द 1960 ई. में फर्नान्ड ब्रोदेल के द्वारा भी प्रयुक्त हुआ है।
किंतु, ब्रोदेल के लिए, इसमें नकारात्मक अर्थ था और ‘धटनाओं के इतिहास” के समानार्थी था। यह शब्द 1965 में रेमंह केन्यू के उपन्यास में भी आता है। इस पुस्तक का 1967 में इटालो केल्विनों द्वारा इतालवी में भी अनुवाद हुआ। इस पुस्तक से और प्राइमो लेवी के पीरियाडिक टेबल (1975) से यह शब्द लगातार कुछ प्रकार के ऐतिहासिक व्यवहार के लिए प्रयुक्त होता रहा है। जिजोवानी लेवी पहले इतालवी इतिहासकार थे जिन्होंने इस शब्द का लगातार प्रयोग किया।
एक माने हुए ऐतिहासिक व्यवहार के रूप में सूक्ष्म इतिहास, इटली में 1970 और 1980 के दशक में उभरा। यद्यपि इसके समानार्थी शब्द जर्मनी में अल्टाग्शीटे या दैनिक जीवन का इतिहास”, और फ्रांस में तथा अमेरिका में नए सांस्कृतिक इतिहास के रूप में उपलब्ध था, ये इतालवी सूक्ष्म इतिहासकार ही हैं जिन्होंने इस तरह के इतिहास को लिखने का आधार तैयार किया।
कार्लों गिन्जबर्ग, जिओवानी लेवी, कार्लों पोनी, एड़ोर्डो ग्रेंठी और गिआना पोमाटा जेसे कुछ इतालियन इतिहासकार हैं जिन्होंने इस शब्द को अपने लेखन से प्रसिद्ध बनाया। गिन्जबर्ग का दि चीज एंड दि वर्म्स : दि कॉस्मोस ऑफ ए स्क्स्टीन्ध-सेंचुरी मिलर (1976), दि एनिग्मा ऑफ पिअरो : पिअरो डेल्ला फांसेस्का (1981), और एक्स्टेसीज : डेसीफरिंग दि विचेज सब्बाथ (1990), और जिओवानी लेवी का इनहेरिटिंग पॉवर : दि स्टोरी ऑफ एन एक्सोर्सिस्ट (1985) इस इतिहासलेखन परंपरा कौ कुछ प्रतिनिधि पुस्तकें हैं।
इतालियन जर्नल, क्वादरी स्टोटीची, ने अपनी संस्थापना (1966) से ही इतिहासलेखन परंपरा के इस श्वृंखला में कार्य किया है। फिर भी, सूक्ष्म इतिहास, एक वृहद् परंपरा का अंग है जिसमें वैयक्तिक अध्ययन और स्थानीय अध्ययन शामिल हैं, वे हैं – फ्रांस में एमानुएल ले रॉय लादुरी, जर्मनी में हैन्स मेडिक और अमेरिका में राबर्ट डार्टन और नताली जेमन डेविस।
सूक्ष्म इतिहास के सिद्धांत
सूक्ष्म इतिहास आधुनिक इतिहासलेखनं की समस्या का परवर्ती आधुनिक, या उत्तर आधुनिक प्र॒त्युत्तर के रूप में उभरा। सूक्ष्म इतिहासकार न सिर्फ रानके वादी परम्परा के आलोचक हैं, बल्कि मार्क्सवाद द्वारा विकसित वृहद् ऐतिहासिक प्रतिमान, अनाल स्कूल और यहाँ तक कि पुराने सामाजिक इतिहास के भी आलोचक हैं। सूक्ष्म इतिहासकार आधुनिक तकनीक के द्वारा लाए गए कई प्रकार के फायदोंके बारे में आशावादी नहीं हैं। अत: वृहद् ऐतिहासिक विमर्श पर उनका आरोप न सिर्फ सैडांतिक हैं, बल्कि नैतिक और राजनीतिक भी हैं।
उनका तर्क है कि वृहद् ऐतिहासिक संकल्पता आधुनिकीकरण की उपलब्धियों की प्रशंसा करती है, और आधुनिक विज्ञान और तकनीकी की प्रशंसा मानव मूल्य को उपेलित करके करते हैं। वे उन छोटे लोगों” के अनुभवों की भी उपेशा करते हैं जो विकास! के आवेग को सहते हैं। सूक्ष्म इतिहासकार विश्लेजणात्मक सामाजिक विज्ञान, मार्क्सवाद के वृहड इतिहास और अनाल स्कूल के गैर-मानवीय इतिहास के सिद्धांत के विरुद अपने इतिहासलेखन व्यवहार को परिभाषित करते हैं।
सूक्ष्म इतिहासकार इसका मूल 1970 के वृहद् इतिहास के संकट की विचारधारा में खोजते हैं। महा आख्यानों से और परिमाणात्मक ऑकड़ों पर आधारित सामाजिक वैज्ञानिक अध्ययन से मोह भंग हो रहा था, इसलिए नहीं क्योंकि इनके सिद्धांत गलत थे बल्कि इसलिए कि ये सूक्ष्म स्तर यथार्थ को नहीं पकड़ते थे। सूक्ष्म इतिहासकारों के अनुसार, ‘इतिहास को सामान्य लोगों के लिए उपलब्ध करना चाहिए जो अन्य पद्धतियों में नजरअंदाज किए गए हैं’।
और ‘छोटे समूह के स्तर पर ऐतिहासिक कारणों को प्रसारित करना जहाँ अधिकांश जीवस्तता होती आई है’। जिओवानी लेवी, जो इस परंपरा के एक संस्थापक हैं, के अनुसार यह सामान्य रूप से स्वीकृत है कि 1970 और 1980 का दशक सार्वभौम रूप से पूरी तरह संकटों का वर्ष है इस बढ़ते हुए इस आशावादी विश्वास के प्रति कि पूरी दुनिया तेजी से और उग्र रूप से आंदोलनकारी लकीर पर बदलेगी’ |
इसके अतिरिक्त, बहुत सारी आशाएँ और मिथक जिसने पहले सांस्कृतिक विवाद में प्रमुख भूमिका निभाई, जिसमें इतिहासलेखन के क्षेत्र भी शामिल थे, इतने गलत साबित नहीं हुए जितना राजनीतिक घटनाओं और सामाजिक वास्तविकताओं के असंभावित परिणामों के झेलने से अपर्याप्त साबित हो गए – ऐसी घटनाएँ और वास्तविकताएँ यो उन आशावादी नमूनों से काफी दूर थे जिसे महान् मार्क्सवादियों और प्रकार्यवादी पद्धतियों ने प्रस्तावित किया था।
इस संकट के कारण संकल्पना और पद्धति के स्तर पर भी दिन-प्रतिदिन की वास्तविकताओं को समझने में मुश्किल हुई। लेवी कहते हैं कि ‘संकल्पनात्मक औजार जिसके हारा समाज वैज्ञानिक अपने पूरे लगाव के साथ वर्तमान और अतीत के बदलाव को समझे वह अंतर्निहित प्रत्यक्षवाद के बोझ से दबागं हुआ था। सामाजिक व्यवहार का पूर्वानुमान पूरी तरह से गलत साबित हो रहा था और इस वर्तमान पद्धति और प्रतिमान की नाकामी नए सामाजिक सिद्धांत के निर्माण को उतना आवश्यक नहीं ठहरा रही थी।
सूक्ष्म इतिहास इस वृहद् संकट का एक उत्तर था। यह एक मूलगामी और आधारभूत उत्तर था और यह इतिहासलेखन को ‘बड़ी संरचगा’ लंबी प्रक्रिया और भारी-भरकम तुलनाओं से आगे ले गया’। यह समाज कौ छोटी इकाइयों पर केंद्रित था। फह वृहद् परिमाणात्मक अध्ययनों का और बड़े स्तर के विमशौ का पूरी तरह से विरोधी था क्योंकि यह छोटे स्तर के यथार्थ पर ध्यान नहीं देते थे।
- जिओवानी लेवी कहते हैं – “छोटे-छोटे स्तर पर की गई खोजें, बड़े स्तर के इतिहास को नए मायने देती हैं।”
इस संकट के प्रति कई दूसरी प्रतिक्रियाएँ भी थीं। उनमें से एक, लेवी के शब्दों में, निराशावादी सापेशक्ष्तावाद का, नव-आदर्शवाद का और यहाँ तक कि अतार्किक दर्शन का’ सहारा लेना था। किर भी, लेवी विश्वास करते थे कि ‘ऐतिहासिक अनुसंधान पूरी तरह से आलंकारिक और सौंदर्यात्मक क्रियाकलाप नहीं है’।
वह पूरी तरह से इतिहासकारों और समाजवैज्ञानिकों का पक्ष हेते हैं जो विश्वास करते हैं कि पाठ के बाहर यथार्थ है और इशे समझना संभव है। अत: सूक्ष्म इतिहासकार ‘न सिर्फ अर्थों के बोधन से संबंधित हैं अपितु संकेतपरक विकल्प की अनेकार्थता कौ परिभाषा से भी संबंधित हैं,
निष्कर्ष
सूक्ष्म इतिहास (Micro History) इतिहास को मानवीय दृष्टि से समझने की कोशिश है। यह छोटे-छोटे समूहों, घटनाओं और आम लोगों की ज़िंदगी पर रोशनी डालता है। यही वजह है कि आज इसे इतिहास की सबसे मानवीय और संवेदनशील धारा माना जाता है।
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