सत्येन्द्रनाथ बोस का जीवन परिचय

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सत्येन्द्रनाथ बोस का जीवन परिचय

नमस्कार दोस्तों आप सभी का स्वागत है Hindi-khabri.in में। दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि सत्येन्द्रनाथ बोस का जीवन परिचय के बारे में जानेंगे।Biography of Satyendranath Bose आदि के बारे में जानेंगे।

डॉक्टर सत्येन्द्रनाथ का जन्म 1 जनवरी 1894 को कोलकाता में हुआ था। संगीत,साहित्य,विज्ञान में उनकी बचपन से ही गहन रुचि थी।वह इतने कुशाग्र बुद्धि के थे कि जब भी विद्यालय में किसी प्रश्न का उत्तर अन्य छात्र नहीं दे पाते थे,वे तुरंत ही दे देते थे, इसलिए उनके अध्यापक भी उनसे बहुत खुश रहते थे। बोस हर परीक्षाफल में प्रथम स्थान पर उत्तीर्ण होते थे। उनके अनेक साथी तो उनसे इस बात पर ही जल-भुन उठते थे कि प्रथम स्थान हमेशा बोस को ही क्यों प्राप्त होता है।

सूझ और अदम्य साहस

उनके पास किसी भी बात का हल ढूंढने का अनोखा तरीका था कि प्रश्न को ध्यानपूर्वक पढ़ते और सुनते थे। वे इसका हल खोजने में कभी मन में हार नहीं मानते थे। यही कारण था कि वे अपनी प्रतिभा से साथी छात्रों को कायल कर देते थे।
डॉक्टर बोस में यह प्रमुख गुण था कि वे स्वतंत्र विचारों के व्यक्ति थे। उन्हें विज्ञान से बेहद लगाव था। वह एक कुशल विज्ञान अध्यापक भी थे।अपने शिष्यों को वे अपने संगीत कछ में हीं पढ़ाया करते थे। पढ़ाई की समाप्ति पर वे अपने छात्रों से संगीत भी सुनते थे। छात्रों की समस्याओं का समाधान वे स्वयं मन लगाकर करते थे, इसलिए वे सभी छात्रों के प्रिय थे।

शिक्षा एवं खोज कार्य

डॉक्टर बोस ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के ही एक स्कूल में प्राप्त की थी। अपनी 21 वर्ष की युवावस्था में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से एम.एस-सी. में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।सन 1920 में उन्होंने आइन्सटाइन के आपेक्षता संबंधी सिद्धांत संबंधी शोधपत्रों का जर्मन भाषा से अंग्रेजी भाषा में अनुवाद कर दिया।उन्होंने वैज्ञानिक मेघनाद साहा के साथ भी अनेक खोज कार्य किए।जब ये ढाका में थे तो एक व्यक्ति ने इन्हें एक पुस्तक दी जिसका नाम ‘थर्मोडायनेमिक्स एंड वार्मस्टरहलग’ था।इस पुस्तक में प्रसिद्ध भौतिकी शास्त्र के मूल लेख थे‌।उन्होंने उसका गहन अध्ययन कर डाला,जिससे उन्हें काफी जानकारी हासिल हुई।यह जानकारी उनके लिए समीकरण और फार्मूले हल करने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई।उनका कहना था-‘स्वयं की सहमति और संतुष्टि से बढ़कर दूसरे की संतुष्टि श्रेष्ठ होती है।’ उन्होंने अपना यही लक्ष्य बनाकर अनेक शोध किए जिनमें सैद्धांतिक गणित पद्धति एवं भौतिक विज्ञान शामिल है। सन् 1924 में यूरोप जाकर उन्होंने अध्ययन किया।वे वहा की ‘मदाम क्यूरी अनुसंधानशाला’ में कार्य करना चाहते थे,किंतु वहां के निदेशक ने उन्हें अनुमति नहीं दी। उन्हें कठिन परिश्रम करने के पश्चात सहायक पद मिल गया। उन्होंने अपने प्रयोगों से मदाम क्यूरी अनुसंधानशाला के कार्यकर्ताओं को प्रभावित कर दिया।

अलबर्ट आइन्स्टाइन भी प्रभावित हुए

बोस ने अपना एक चार पन्नों का लेख ‘प्लॉक्स ला एंड लाइट क्वांटम हाइपाथीसिस’ को भारतीय पत्रिका के अलावा विदेशी पत्रिकाओं में भी छपने भेजा जिसे किसी ने स्थान नहीं दिया,लेकिन आइन्स्टाइन ने जब यह लेख को पढ़ा तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि भारतीय शोध छात्र इतना प्रयास कर सकता है।उसने उक्त लेख का जर्मन भाषा में अनुवाद किया। फिर उनका वह लेख आइन्स्टाइन ने एक जर्मन पत्रिका ‘जाइटशिरफ्ट फयूर फिजिक्स’ में छपवा दिए, जिसका शीर्षक उन्होंने ‘आगे की ओर एक महत्वपूर्ण कदम’ दिया।

मूल तत्व के कण जैसे फोटोन्स और अल्फा कण जो बोस सांख्यिकी के सिद्धांत को मानते हैं,उन्हें बोसोन्स कहा जाता है।इस प्रकार उनका नाम विज्ञान का एक भाग बन गया।उन्होंने एक्स-रे,क्रिस्टलोग्राफी एवं ऊष्मा गतिकी पर भी प्रयोग किए।उन्होंने नेत्र औषधि रूपी एक रासायनिक यौगिक भी तैयार किया।उनकी इच्छा थी कि वैज्ञानिकों का शोध कार्य,उनकी तकनीक सभी कुछ सरल भारतीय भाषाओं में लिखी जाए, जिससे आम जनता को उसका लाभ मिल सके।

संस्थाओं में नियुक्ति

वे अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे थे।उन्हें ढाका विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग का अध्यक्ष बनाया गया।यह विद्यालय विज्ञान शिक्षा की दृष्टि से भारत में उच्च स्थान रखता था।उन्हें सन् 1940 में रॉयल सोसाइटी का सदस्य बनाया गया। अल्बर्ट आइंस्टाइन ने उनके शोध लेख पर उन्हें प्रमाण पत्र दिये थे। वह बंगाल में भी एक संस्था के संस्थापक रहे थे, जहां उन्होंने एक बंगला पत्रिका का संपादन भी किया था। सन् 1946 में वे ढाका से कोलकाता चले गए तथा सन् 1956 में वहां एक विद्यालय में प्रोफ़ेसर नियुक्त हो गए। उन्होंने गणित का नया फार्मूला तैयार कर उसे ‘बोस आइन्सटाइन सांख्यिकी’ नाम दिया। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण एवं विद्युतीय चुंबक पर वैज्ञानिक शोध भी किए।
सन् 1948 से 1950 तक वे ‘मैसूर इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस’ के अध्यक्ष पद पर रहे। उन्हें सन् 1954 में ‘पदम भूषण’ की उपाधि प्रदान की गई।

सत्येन्द्रनाथ बोस का वक्तव्य

सत्येन्द्रनाथ बोस का कहना था- ‘मनुष्य कर्म और परिश्रम से ही महान बनता है,उसे कर्म करने के लिए परिश्रम की आवश्यकता होती है।’

निधन

सत्येन्द्रनाथ बोस एक साधारण, निश्छल और जन-प्रेमी व्यक्ति थे। उनके हृदय में ऊच-नीच का भाव नहीं था।उनका निधन 4 फरवरी 1974 को हुआ था।उस समय वे 80 वर्ष के थे।

निष्कर्ष

दोस्तों हम आपसे यह उम्मीद करते हैं कि आप सभी लोगों को सत्येन्द्रनाथ बोस का जीवन परिचय के बारे में समझ आ गया होगा। यदि आप सभी लोगों को इससे जुड़ा कोई भी सवाल है तो आप सभी लोग हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। यदि आप सभी लोगों को यह पोस्ट हमारी अच्छी लगी हो तो इस जानकारी को आगे शेयर जरूर करें।

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