प्रवास किसे कहते हैं प्रवास के कारण,परिणाम

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प्रवास किसे कहते हैं प्रवास के कारण,परिणाम

प्रवास किसे कहते हैं।

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका आज के इस नए आर्टिकल में दोस्तों इस आर्टिकल के माध्यम से हम जानेंगे की प्रवास किसे कहते हैं और प्रवास के,कारण,परिणाम जानेंगे तो आइए दोस्तों हम बिना देर किए प्रवास किसे कहते हैं के बारे में जानते हैं-

प्रवास किसे कहते हैं-लोगों के आर्थिक,सामाजिक- सांस्कृतिक,राजनैतिक या किसी भी अन्य कारणों से एक जगह से दूसरी जगह पर जाकर बसना या निवास करना प्रवास कहलाता है।

आप भारत में जनगणना से बहुत पहले से ही परिचित हैं जिसमें देश में प्रवास के संबंध में सूचना होती है वास्तव में प्रवास को 1881 ईस्वी में भारत की प्रथम संचालित जनगणना से ही दर्ज करना आरंभ कर दिया गया था। इन आंकड़ों को जन्म के स्थान के आधार पर दर्ज किया गया था परंतु 1961 की जनगणना में पहला मुख्य संशोधन किया गया था और उसने दो घटक अर्थात जन्मस्थान अर्थात् गांव या नगर और (यदि अन्य जगह पर जन्मा है)तो निवास की अवधि शामिल किए गए।इसके बाद 1971 में पिछले निवास के स्थान और गणना के स्थान पर रुकने की अवधि की अतिरिक्त सूचना को समाविष्ट किया गया।प्रवास के कारणों पर सूचना का समावेश 1981 की जनगणना में किया गया जिसका क्रमिक जनगणनाओ में संशोधन किया गया।

जनगणना में प्रवास पर निम्नलिखित प्रश्न पूछे जाते हैं-

क्या व्यक्ति इसी गांव अथवा शहर में पैदा हुआ है यदि नहीं तब जन्म के स्थान की ग्रामीण नगरीय स्थिति जिले और राज्य का नाम और यदि भारत से बाहर का है तो जन्म के देश के नाम की सूचना प्राप्त की जाती है।

क्या व्यक्ति इस गांव या शहर में कहीं और से आया है यदि हां तब निवास के पूर्व स्थान के स्तर (ग्रामीण/नगरीय) जिले और राज्य का नाम और यदि भारत से बाहर का है तो देश के नाम के बारे में आगे प्रश्न पूछे जाते हैं।

इनके अलावा पिछले निवास स्थान से प्रवास के कारण और गणना के स्थान पर निवास की अवधि भी पूछी जाती है।

भारत की जनगणना में प्रवास की गणना किस आधार पर की जाती है?

भारत की जनगणना में प्रवास की गणना दो आधारों पर की जाती है-

जन्म का स्थान यदि जन्म का स्थान गणना के स्थान से भिन्न है (इसे जीवनपर्यंत प्रवासी के नाम से जाना जाता है)।

निवास का स्थान यदि निवास का पिछला स्थान गणना के स्थान से भिन्न है (इसे निवास के पिछले स्थान से प्रवासी के रूप में जाना जाता है)।

प्रवास के कारण

लोग सामान्य रूप से अपने जन्म स्थान से भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं या उनका लगाव होता है। किंतु लाखों लोग अपने जन्म के स्थान और निवास को छोड़ देते हैं इसके बहुत सारे कारण हो सकते हैं जिन्हें वृहत् रूप से दो संवर्गों में रखा जा सकता है या बांटा जा सकता है।-

प्रतिकर्ष कारक (Push factor)

जो लोगों को निवास स्थान अथवा उद्गम को छुड़वाने का कारण बनते हैं।

अपकर्ष कारक (Pull Factor)

जो विभिन्न स्थानों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं उन्हें अपकर्ष कारक कहते हैं।

भारत में लोग ग्रामीण से नगरीय क्षेत्रों में मुख्यतः गरीबी,कृषि भूमि पर जनसंख्या के अधिक दबाव, स्वास्थ्य सेवाओं,शिक्षा जैसी आधारभूत और अवसंरचनात्मक सुविधाओं के अभाव इत्यादि के कारण प्रवास करते हैं। इन कारकों के अलावा बाढ़,सूखा, चक्रवाती तूफान,भूकंप,सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएं,युद्ध, स्थानीय संघर्ष भी प्रवास के लिए अतिरिक्त प्रतिकर्ष पैदा करते हैं। दूसरी ओर अपकर्ष कारक हैं जो लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों से नगर की ओर आकर्षित करते हैं।नगरीय क्षेत्र की ओर अधिकांश ग्रामीण प्रवासियों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण अपकर्ष कारक बेहतर अवसर और नियमित काम का मिलना और अपेक्षाकृत ऊंचा वेतन है शिक्षा के लिए बेहतर अवसर, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और मनोरंजन के स्रोत इत्यादि भी काफी महत्वपूर्ण अपकर्ष कारक है।

प्रवास के परिणाम

प्रवास क्षेत्र पर अवसरों के असमान वितरण के कारण होता है लोगों में कम अवसरों और कम सुरक्षा वाले स्थान से अधिक अवसरों और बेहतर सुरक्षा वाले स्थान की ओर जाने की प्रवृत्ति होती है बदले में यह प्रवास के उद्गम और गंतव्य क्षेत्रों के लिए लाभ और हानि दोनों उत्पन्न करता है परिणामों को आर्थिक, सामाजिक,सांस्कृतिक, राजनीतिक और जनांकिकीय संदर्भों में बाटा जा सकता है।

आर्थिक परिणाम

उद्गम प्रदेश के लिए मुख्य लाभ प्रवासियों द्वारा भेजी गई हुडी है अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों द्वारा भेजी गई हुडियाँ विदेशी विनिमय के प्रमुख स्रोत में से एक है सन् 2002 में भारत ने अंतरराष्ट्रीय प्रवासियो से हुडियो के रूप में 110 खरब अमेरिकी डॉलर प्राप्त किए।पंजाब,केरल और तमिलनाडु अपने अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों की तुलना में आंतरिक प्रवासियों द्वारा भेजी गई हुंडियों की राशि बहुत थोड़ी है किंतु उद्गम क्षेत्र की आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हुंडियों का प्रयोग मुख्यत: भोजन, ऋणो की अदायगी,उपचार,विवाहों,बच्चों की शिक्षा कृषिय निवेश,गृह- निर्माण इत्यादि कामों के लिए किया जाता है बिहार,उत्तर प्रदेश, उड़ीसा,आंध्र प्रदेश,हिमाचल प्रदेश इत्यादि के हजारों निर्धन गांवों की अर्थव्यवस्था के लिए ये हुंडिया जीवनदायक रक्त का काम करती हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश,बिहार, मध्य प्रदेश और उड़ीसा के ग्रामीण क्षेत्रों से पंजाब,हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवास कृषि विकास के लिए उनकी हरित क्रांति कार्य योजना की सफलता के लिए उत्तरदायी है।इसके अलावा अनियंत्रित प्रवास ने भारत के महानगरों को अति संकुलित कर दिया है। महाराष्ट्र,गुजरात,कर्नाटक, तमिलनाडु और दिल्ली जैसे औद्योगिक दृष्टि से विकसित राज्यों में गंदी बस्तियों (स्लम) का विकास देश में अनियंत्रित प्रवास का नकारात्मक परिणाम है।

जनांकिकीय परिणाम

प्रवास से देश के अंदर जनसंख्या का पुनर्वितरण होता है। ग्रामीण नगरी प्रवास नगरों में जनसंख्या की वृद्धि में योगदान देने वाले महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले युवा आयु,कुशल एवं दक्ष लोगों का बाहरी प्रवास ग्रामीण जनांकिकीय संगठन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। यद्यपि उत्तराखंड, राजस्थान,मध्य प्रदेश और पूर्वी महाराष्ट्र से होने वाले बाहरी प्रवास ने इन राज्यों की आयु एवं लिंग संरचना में गंभीर असंतुलन पैदा कर दिया है। ऐसे ही असंतुलन उन राज्यों में भी उत्पन्न हो गए हैं। जिनमें ये प्रवासी जाते हैं।

सामाजिक परिणाम

प्रवासी सामाजिक परिवर्तन के अभिकर्ताओं के रूप में कार्य करते हैं।नवीन प्रौद्योगिकियों, परिवार नियोजन,बालिका शिक्षा इत्यादि से संबंधित नए विचारों का नगरीय क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर विसरण इन्हीं के माध्यम से होता है।

प्रवास से विविध संस्कृतियों के लोगों का अंतर्मिश्रण होता है। इसका संकीर्ण विचारों को भेदते तथा मिस्र संस्कृति के उद्विकास मे सकारात्मक योगदान होता है और यह अधिकतर लोगो के मानसिक क्षितिज को विस्तृत करता है। किंतु इसके गुमनामी जैसे गभीर नकारात्मक परिणाम भी होते हैं। जो व्यकितयो में सामाजिक निर्वात और खिन्नता की भावना भर देते हैं। खिन्नता की सतत भावना लोगों को अपराध और औषध दुरुपयोग (Drug abuse) जैसी असामाजिक क्रियाओं के पाश मे फँसने के लिए अभिप्रेरित कर सकती है।

पर्यावरणीय परिणाम

ग्रामीण से नगरीय प्रवास के कारण लोगों का अति संकुलन नगरीय क्षेत्रों में वर्तमान सामाजिक और भौतिक अवसंरचना पर दबाव डालता है। अंततः इससे नगरीय बस्तियों की अनियोजित वृद्धि हो जाती है और गंदी बस्तियों और क्षुद्र कालोनियों का निर्माण होता है।

इसके अलावा प्राकृतिक संसाधनों के अति दोहन के कारण नगर भौमजल स्तर के अवक्षय,वायु प्रदूषण,वाहित मल के निपटान और ठोस कचरे के प्रबंधन जैसी गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

अन्य

प्रवास (विवाहजन्य प्रवास को छोड़कर भी) स्त्रियों के जीवन स्तर को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभावित करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष वर्णनात्मक बाह्य प्रवास के कारण पत्नियां पीछे छूट जाती हैं जिससे उन पर अतिरिक्त शारीरिक और मानसिक दबाव पड़ता है। शिक्षा अथवा रोजगार के लिए स्त्रियों का प्रवास उनकी स्वायत्तता और अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिका को बढ़ा देता है किंतु उनकी सुभेधता (Vulnerability) भी बढ़ती हैं।

स्रोत प्रदेश के दृष्टिकोण से यदि हुंडियां प्रवास के प्रमुख लाभ हैं तो मानव संसाधन विशेष रूप से कुशल लोगों का हास उसकी गंभीर लागत है। उन्नत कुशलता का बाजार सही मायने में वैश्विक बाजार बन गया है और सर्वाधिक गत्यात्मक औद्योगिक अर्थव्यवस्थाएं गरीब प्रदेशों से उच्च प्रशिक्षित व्यावसायिको को सार्थक अनुपातों में प्रवेश दे रही है और भर्ती कर रही है।परिणामस्वरूप स्रोत प्रदेश के वर्तमान अल्पविकास को बल मिलता है।

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