मृदा निर्माण किसे कहते हैं,मृदा निर्माण के तत्व, प्रक्रियाएं, मृदा निर्माण के कारक

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मृदा निर्माण किसे कहते हैं, तत्व, प्रक्रियाएं, मृदा निर्माण के कारक

मृदा किसे कहते हैं?

पृथ्वी के सबसे ऊपरी भाग या परत को मृदा कहते हैं। यह मृदा अनेक प्रकार के खनिजों पौधों और जीव जंतुओं के अवशेषों से मिलकर बना होता है। यह जलवायु,पेड़-पौधों जीव-जंतुओं और भूमि की ऊंचाई के बीच लगातार परस्पर क्रिया के परिणामस्वरुप विकसित हुई है इनमें से प्रत्येक घटक क्षेत्र विशेष के अनुरूप बदलता रहता है अतः मृदाओं में भी एक स्थान से दूसरे स्थान के बीच विभिन्नता पाई जाती है।

मृदा निर्माण किसे कहते हैं

मृदा निर्माण (Soil Information)

मृदा एवं मृदा के तत्व (Soil and Soil Contents)

मृदा निर्माण किसे कहते हैं-मृदा वैज्ञानिकों के अनुसार मृदा धरातल पर प्राकृतिक तत्वों का समुच्चय है जिसमें जीवित पदार्थ तथा पौधों को पोषित करने की क्षमता होती है।मृदा एक गत्यात्मक माध्यम है जिसमें बहुत सी रासायनिक भौतिक एवं दैविक की जाए अनवरत चलती रहती है मृदा अपक्षय अपकर्ष का परिणाम है या वृद्धि का माध्यम भी है यह एक परिवर्तनशील एवं विकास सुन मुख तत्व है इसकी बहुत सी विशेषताएं मौसम के साथ बदलती रहती है या वैकल्पिक रूप से ठंडी और गर्म जासूस के मादर हो सकती है यदि विदा बहुत अधिक ठंड या बहुत अधिक नमी होती है तो जैविक क्रिया मंदिर बंद हो जाती है यदि इसमें पत्तियां गिरती है या घास सूख जाती है तो जो पदार्थ बढ़ जाते हैं मृदा का रसायन उसमें जय पदार्थ की मात्रा पेड़ पौधे और प्राणी जात तापक्रम और नमी सभी मौसम के साथ तथा विस्तारित कालावधी के साथ परिवर्तित हो जाते हैं इसका तात्पर्य है कि मृदा जल हवाई की दशाओं आकृतियों एवं बच्चियों के साथ अनुकूलित होती रहती है और यदि उक्त नियंत्रक दशाओं में परिवर्तन हो जाए तो आंतरिक रूप से भी परिवर्तित हो सकती है।

मृदा निर्माण की प्रक्रियाएं (Process Of Soil Formation)

मृदा निर्माण या मृदाजन्न सर्वप्रथम अपक्षय पर निर्भर करती हैं।यह अपक्षयी प्रावार ही मृदा निर्माण का मूल निवेश होता है। सर्वप्रथम अपक्षयित प्रावार या लाए गए पदार्थों के निक्षेप, बैक्टीरिया या अन्य निकृष्ट पौधे जैसे काई एवं लाइकेन द्वारा उपनिवेशित किए जाते हैं ।प्रावार एवं निक्षेप के अंदर कई गौण जीव भी आश्रय प्राप्त कर लेते हैं। जीव एवं पौधों के मृत अवशेष ह हयुमस के एकत्रीकरण में सहायक होते हैं।प्रारंभ में गौण घास एवं फर्न्स की वृद्धि हो सकती है बाद में पक्षियों एवं वायु द्वारा लाए गए बीजों से वृक्ष एवं झाड़ियों में वृद्धि होने लगती हैं पौधों की जड़ें नीचे तक घुस जाती हैं बिल बनाने वाले जानवर कणो को ऊपर लाते हैं जिससे पदार्थों का पुंज ( छिद्रमय) एवं स्पंज की तरह हो जाता है इस प्रकार जल- धारण करने की क्षमता,वायु के प्रवेश आदि के कारण अंततः परिपक्व,खनिज एवं जीव-उत्पाद युक्त मृदा का निर्माण होता है।

मृदा निर्माण के कारक(Soil Forming Factors)

मृदा निर्माण पांच मूल कारकों द्वारा नियंत्रित होता है।ये कारक निम्न है:- मूल पदार्थ (शैले) स्थलाकृति जलवायु जैविक क्रियाएं एवं समय

वस्तुतः मृदा निर्माण कारक संयुक्त रूप से कार्यरत रहते हैं एवं एक दूसरे के कार्यों को प्रभावित करते हैं।उनका संक्षिप्त विवरण अधोलिखित हैं जो नीचे दिए गए हैं-

जलवायु (Climate)

जलवायु मृदा निर्माण में एक महत्वपूर्ण सक्रिय कारक होता है मृदा के विकास में सलंग्न जलवायवी तत्वों में प्रमुख है –

  • प्रवणता,वर्षा एवं वाष्पीकरण की बारंबारता व अवधि तथा आर्द्रता
  • तापक्रम में मौसमी एवं दैनिक भिन्नता

मूल पदार्थ/शैल

मृदा निर्माण में मूल शैल एक निष्क्रिय नियंत्रक कारक है मूल शैल कोई भी स्वस्थाने या उसी स्थान पर अपक्षयित शैल मलवा या लाए गए निक्षेप हो सकती है। मृदा निर्माण गढन संरचना तथा शैल निक्षेप के खनिज एवं रासायनिक संयोजन पर निर्भर करता है। मूल पदार्थ के अंतर्गत अपक्षय की प्रकृति एवं उसकी दर तथा आवरण की गहराई/मोटाई प्रमुख विचारणीय तत्व होते हैं। समान आधार शैल पर मृदाओ में अंतर हो सकता है तथा असमान आधार पर समान मृदाएं मिल सकती है ।परंतु जब मृदाएं बहुत नूतन तथा पर्याप्त परिपक्व नहीं होती तो मृदाओं एवं मूल शैलो के प्रकार में घनिष्ठ संबंध होता है। कुछ चूना क्षेत्रों में भी जहां अपक्षय प्रक्रियाएं विशिष्ट एवं विचित्र होती है,मिट्टियां मूल शैल से स्पष्ट संबंध दर्शाती हैं।

स्थलाकृति/उच्चावच (Topography)

मूल शैल की भांति स्थलाकृति भी एक दूसरा निष्क्रिय नियंत्रक कारक है।स्थलाकृति मूल पदार्थ के आच्छादन अथवा अनावृत होने को सूर्य की किरणों के संबंध में प्रभावित करती है तथा स्थलाकृति धरातलीय एवं उप सतही अप्रवाह की प्रक्रिया को मूल पदार्थ के संबंध में भी प्रभावित करती है तीव्र ढालों पर मृदा छिछली तथा सपाट उच्च क्षेत्रों में गहरी/मोटी होती है।निम्न ढालों जहां अपरदन मंद तथा जल का परिश्रवण अच्छा रहता है मृदा निर्माण बहुत अनुकूल होता है।सपाट/समतल क्षेत्रों में चिका मिट्टी के मोटे स्तर का विकास हो सकता है तथा जैव पदार्थ के अच्छे एकत्रीकरण के साथ मिट्टी/ मृदा का रंग भी गहरा हो सकता है। मध्य अक्षांशो में दक्षिणोन्मुख सूर्य की किरणों से अनावृत ढालों की वनस्पति तथा मृदा की दशा भिन्न होती है एवं उत्तरोन्मुख ठंडे,नम दशाओं वाले ढालो पर अन्य प्रकार की मिट्टी एवं वनस्पति मिलती हैं।

जैविक क्रियाएं (Biological Activities)

वनस्पति आवरण एवं जीव जो मूल पदार्थों पर प्रारंभ तथा बाद में भी विद्यमान रहते हैं मृदा में जैव पदार्थ,नमी धारण की क्षमता तथा नाइट्रोजन इत्यादि जोड़ने में सहायक होते हैं। मृत पौधे मृदा को सूक्ष्म विभाजित जैव पदार्थ ह्यूमस प्रदान करते हैं।कुछ जैविक अम्ल जो ह्यूमस बनने की अवधि में निर्मित होते हैं मृदा के मूल पदार्थों के खनिजों के विनियोजन में सहायता करते हैं बैक्टीरियल कार्य की गहनता ठंडी एवं गर्म जलवायु की मिट्टियों में अंतर को दर्शाती हैं ठंडी जलवायु में ह्यूमस एकत्रित हो जाता है क्योंकि यहां बैक्टीरियल वृद्धि धीमी होती है उप-आर्कटिक एवं टुंड्रा जलवायु में निम्न बैक्टीरियल क्रियाओं के कारण अवियोजित जैविक पदार्थों के साथ पीट के संस्था विकसित हो जाते हैं।

आर्द,उष्ण एवं भूमध्य रेखीय जलवायु में बैक्टेरियल वृद्धि एवं क्रियाएं सघन होती है तथा मृत वनस्पति शीघ्रता से ऑक्सीकृत हो जाती है जिससे मृदा में ह्यूमस की मात्रा बहुत कम रह जाती हैं बैक्टेरिया एवं मृदा के जीव हवा से गैसीय नाइट्रोजन प्राप्त कर उसे रासायनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं जिसका पौधों द्वारा उपयोग किया जा सकता है इस प्रक्रिया को नाइट्रोजन निर्धारण कहते हैं ।राइजोबियम एक प्रकार का बैक्टेरिया जंतुवाले पौधों के जड़ ग्रथिका में रहता है तथा मेजबान पौधों के लिए लाभकारी नाइट्रोजन निर्धारित करता है। चींटी,दीमक,केंचुए,कृतक इत्यादि कीटों का महत्व अभियांत्रिकी सा होता है।परंतु मृदा निर्माण में ये महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे मृदा को बार-बार ऊपर नीचे करते रहते हैं केंचुए मिट्टी खाते हैं अतः उनके शरीर से निकलने वाली मिट्टी का गठन एवं रासायनिक परिवर्तित हो जाता है।

कालावधी(Time)

मृदा निर्माण में कालावधी तीसरा महत्वपूर्ण कारक होता है।

मृदा निर्माण प्रक्रियाओं के प्रचलन में लगने वाले काल (समय) की अवधि मृदा की परिपक्वता एवं उसके पास पाशिर्वका का विकास निर्धारण करती है एक मृदा तभी परिपक्व होती है जब मृदा निर्माण की सभी प्रक्रियाएं लंबे काल तक पाशिर्वका विकास करते हुए कार्यरत रहती हैं।थोड़े समय पहले निक्षेपित जलोढ़ मिट्टी या हिमानी टिल से विकसित मृदाएँ तरुण/युवा मानी जाती है। तथा उनमें संस्तर का अभाव होता है अथवा कम विकसित संस्तर मिलता है।संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में मिट्टी के विकास या उसकी परिपक्वता के लिए कोई विशिष्ट(Specific) कालावधी नहीं है।

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