तुलनात्मक राजनीति के आधुनिक उपागम की विशेषताएँ
आधुनिक उपागम का परिचय
परंपरागत उपागम की सीमाएँ बदलते राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में स्पष्ट हो गईं। इसी कारण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नए उपागमों का विकास हुआ। उस समय एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे नए स्वतंत्र देशों के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिदृश्यों को समझना आवश्यक हो गया। इसलिए विद्वानों ने नए दृष्टिकोण अपनाए। इस दिशा में राजनीतिक व्यवस्था (Political System) और संरचनात्मक-कार्यात्मक विश्लेषण (Structural-Functional Analysis) जैसे सिद्धांत सामने आए, जिन्होंने तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन को नई दिशा दी।
आधुनिक उपागमों की प्रमुख विशेषताएँ
1. विश्लेषणात्मक अध्ययन
आधुनिक विद्वान केवल औपचारिक संस्थाओं के वर्णन से संतुष्ट नहीं हैं। बल्कि, वे व्यक्ति और संस्थाओं के वास्तविक व्यवहार, अनौपचारिक संरचनाओं तथा राजनीतिक प्रक्रियाओं का गहन विश्लेषण करते हैं। उदाहरण के लिए, ईस्टन, आल्मंड, डहल और वेबर जैसे विद्वानों ने इस पद्धति को आगे बढ़ाया।
2. आनुभविक (Empirical) दृष्टिकोण
परंपरागत आदर्शवादी और मानकीय दृष्टिकोण की बजाय आधुनिक उपागम वैज्ञानिक और अनुभव-आधारित अध्ययन को महत्व देता है। यही कारण है कि लोकतंत्र की केवल आदर्श परिभाषा नहीं, बल्कि उसकी वास्तविक कार्यप्रणाली का अध्ययन किया जाता है।
3. अनौपचारिक कारकों का अध्ययन
आधुनिक विद्वानों का मानना है कि केवल औपचारिक संस्थाओं का अध्ययन पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा, राजनीतिक वास्तविकताओं को समझने के लिए सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारकों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। साथ ही, जातीय समूहों और अनौपचारिक संगठनों की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
4. विषय-क्षेत्र का विस्तार
तुलनात्मक राजनीति अब केवल राष्ट्रीय स्तर तक सीमित नहीं रही। बल्कि, हर राजनीतिक व्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ में भी समझा जाता है।
5. विकासशील देशों पर फोकस
एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे विकासशील देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं के अध्ययन पर विशेष जोर दिया गया है। इस प्रकार, ऐसे सिद्धांत विकसित किए गए जो वैश्विक स्तर पर लागू हो सकें।
6. अंतःविषयक (Interdisciplinary) दृष्टिकोण
आधुनिक उपागम समाज की अन्य व्यवस्थाओं—आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक—को भी राजनीतिक व्यवस्था से जोड़कर देखता है। अर्थात्, किसी भी व्यवस्था का स्वतंत्र अध्ययन संभव नहीं माना जाता। नतीजतन, यह दृष्टिकोण राजनीति को समाज के अन्य आयामों से जोड़ता है।
7. व्यवस्था विश्लेषण
आधुनिक अध्ययन में संपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था का विश्लेषण किया जाता है। इसमें औपचारिक संस्थाओं के साथ-साथ अनौपचारिक संरचनाओं पर भी बल दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप, राजनीतिक व्यवस्था की वास्तविक समस्याओं को समझना और उनका समाधान निकालना आसान हो जाता है। अब, यह मान्यता सामान्य रूप से स्वीकार की जाती है कि प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में एक बाध्यकारी शक्ति तथा उसके प्रयोग के साधनों का होना आवश्यक है।
8. मूल्य-विहीन अध्ययन
मूल्य-विहीन अध्ययन से आशय यह है कि आधुनिक राजनीतिक अनुसंधान मुख्यतः आनुभविक (Empirical) तथा वस्तुनिष्ठ (Objective) पद्धति पर आधारित होता है। सर्वप्रथम, इसमें आदर्शवादी तथा मानकीय (Normative) विचारों की उपेक्षा की जाती है और विश्लेषण का केंद्र बिंदु यह रहता है कि वास्तव में राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में क्या विद्यमान है, न कि क्या होना चाहिए। दूसरे, शोधकर्ता यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके व्यक्तिगत विचार, भावनाएँ अथवा दृष्टिकोण अध्ययन की निष्पक्षता को प्रभावित न करें। परिणामस्वरूप, यदि अनुसंधान में व्यक्तिनिष्ठ तत्व सम्मिलित हो जाते हैं, तो उसका निष्कर्ष पूर्वाग्रहग्रस्त (Biased) हो सकता है। अंततः, व्यवहारवादी विद्वानों ने यह प्रतिपादित किया कि मूल्य-विहीन दृष्टिकोण अपनाने से राजनीतिक वास्तविकताओं का वैज्ञानिक एवं वस्तुनिष्ठ परीक्षण संभव हो पाता है, जो स्वतंत्र एवं निष्पक्ष अनुसंधान के लिए आवश्यक शर्त है
निष्कर्ष
आधुनिक तुलनात्मक राजनीति ने अध्ययन की दिशा और दायरे दोनों को व्यापक बना दिया है। एक ओर यह अनुभववादी और विश्लेषणात्मक है, तो दूसरी ओर यह अंतःविषयक दृष्टिकोण से भी समृद्ध है। अंततः, इसने राजनीतिक वास्तविकताओं को समझने और समाधान खोजने का एक नया मार्ग प्रस्तुत किया है।
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