योग क्या है? अर्थ और महत्व
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका Hindi-khabri.in में। दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि योग क्या है? योग का अर्थ और महत्व के बारे में भी इस आर्टिकल के माध्यम से जानेंगे तो दोस्तों आइए हम बिना देर किए जानते हैं कि योग क्या है-
योग का भूमिका क्या है?
योग का इतिहास बहुत ही पुराना है। यू का शुरुआत कब और कैसे हुई इस बारे में कोई निश्चित जानकारी या किसी भी प्रकार का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। परंतु दोस्तों में आपको इतना हॉर्स कहा जा सकता है कि योग भारत का ही देन है। इतिहासकारो में इसकी शुरुआत को लेकर अलग-अलग राय हैं। कई इतिहासकार इसकी उत्पत्ति सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही मानते हैं।क्योंकि उस समय की कई मूर्तियों के आसन योग के विभिन्न आसनों जैसे पाए गए हैं। योग की प्राचीनता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि विभिन्न वेदों,उपनिषदों, रामायण,महाभारत जैसे ग्रंथों में भी योग क्रियाओं का वर्णन किया गया है। महर्षि पतंजलि ने लगभग ईसा पूर्व शताब्दी में योग पर एक व्यवस्थित ग्रंथ “योग शास्त्र” लिखा। प्राचीन कवियों एवं संतों जैसे-कबीर,सूरदास तथा तुलसीदास जी ने भी अपनी- अपनी रचनाओं में योग का जिक्र किया है भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग होने के साथ-साथ योग आज पूरे विश्व में तेजी से प्रचलित हो रहा है।
योग का अर्थ (Meaning of Yoga)
योग शब्द संस्कृत भाषा के ‘युज़’ धातु से लिया गया जिसका अर्थ होता हैं- जोड़ना या मिलाना होता है। योग एक संपूर्ण जीवन शैली अथवा साधना है जिससे व्यक्ति को अपने मन मस्तिक तथा अपने आप स्वयं पर नियंत्रण करने में मदद मिलती है मन पर नियंत्रण करके तथा शरीर को स्वस्थ रखकर व्यक्ति परम आनंद का अनुभव ले सकता है इस प्रकार यह माना जाता है कि योग सभी प्रकार के दुख एवं पीड़ा को नष्ट करता है।
योग की परिभाषाएं
पतंजलि के अनुसार-योग का अर्थ है मानसिक उतार-चढ़ाव पर नियंत्रण पाना।
वेदव्यास के अनुसार-योग समाधि है।
कठोपनिषद के अनुसार-इंद्रियों तथा मन का नियंत्रण योग है।
भगवदगीता के अनुसार-योग पीड़ा तथा दुख से मुक्ति का मार्ग है।
आगम के अनुसार-शिव और शक्ति के बारे में ज्ञान ही योग है।
भारती कृष्ण के अनुसार-भगवान से व्यक्ति की एकता ही योग है।
योग का महत्व
दोस्तों इस बात में तो कोई दो राय नहीं है कि आज का आधुनिक युग मानसिक दबाव,चिंता तनाव का युग है| आज लगभग हर व्यक्ति किसी न किसी कारण से मानसिक परेशानियों से गुजर रहा होता है मनुष्य ने जिस भौतिकतावाद पर अंधा विश्वास किया वही भौतिकतावाद आज कई समस्याओं का कारण बन चुका है। अपनी असीम भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए मनुष्य दिन रात भर दौड़ कर रहा है जिसके कारण व शारीरिक व मानसिक रूप से थकान महसूस करता है। यदि किसी कारण बस यही चाहे पूरी ना हो तो मनुष्य तनाव ग्रस्त हो जाता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो आज समाज का और वक्त का व्यक्ति किसी न किसी रूप से इतना व्यस्त है इतना इसी तनाव एवं जीवन शैली के कारण मनुष्य अक्सर कई प्रकार के शारीरिक मानसिक एवं भावनात्मक समस्याओं का शिकार हो जाता है ऐसे में ये अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि नियमित योगाभ्यास द्वारा इन समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है।
योग के महत्व/लाभ का संक्षिप्त वर्णन
शारीरिक शुद्धता
हमारे शरीर में मूल रूप से तीन प्रकार के गुण होते हैं-वात,पित्त तथा कफ। यदि इन तीनों का संतुलन ठीक प्रकार से हो तो व्यक्ति निरोग रहता है विभिन्न योगिक क्रियाओं जैसे नेति,धोती,नैलि, तथा कपालभाती आदि नियमित रूप से करने से इन मूल गुणो का संतुलन बना रहता है जिसके कारण शरीर की आंतरिक एवं स्वच्छता होती रहती है।
रोगों से बचाव व उपचार
विभिन्न यौगिक व्यायाम,व्यक्ति का अनेक रोगों से केवल बचाव ही नहीं बल्कि उनका उपचार भी करते हैं।योग द्वारा व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है नियमित रूप से योग करने से विभिन्न बीमारियों जैसे-मधुमेह, ब्रान्काइटिस,गठिया,मूत्र विकार, ह्रदय रोग,तनाव,पीठ दर्द,मासिक धर्म के विकास तथा उच्च रक्तचाप आदि का उपचार किया जा सकता है।
शारीरिक सौंदर्य बढ़ाता है
प्रत्येक व्यक्ति शारीरिक रूप से चुस्त-दुरुस्त देखना चाहता है इस उद्देश्य की पूर्ति का सबसे सस्ता व सरल साधन केवल योग ही होता है यौगिक आसन जैसे-मयूरासन द्वारा चेहरे की धमक बढ़ जाती है और चेहरा पहले की अपेक्षा अधिक सुंदर व कानतियुक्त हो जाता है।
शिथिलता प्रदान करता है
किसी भी प्रकार के शारीरिक या मानसिक कार्य के बाद थकावट होना एक आम बात है थकावट महसूस होने पर व्यक्ति की कार्य क्षमता तथा उत्पादकता में कमी आती है ऐसी स्थिति में फिर से तरोताजा तथा इस स्फूर्ति के लिए शिथिलन की आवश्यकता होती है यौगिक आसन जैसे-शवासन व मकरासन शिथिलता प्राप्त करने के सबसे अच्छे आसन हैं जबकि पद्मासन द्वारा मानसिक थकान दूर होती है।
शरीर के आसन को ठीक करता है
किसी भी प्रकार का आसन संबंधी दोष होने के कारण व्यक्ति अपना कार्य कुशलतापूर्वक नहीं कर सकता है।उसे प्रत्येक कार्य के लिए अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है जिसके कारण वह जल्दी से थक जाता है नियमित रूप से ब्रजासन,सर्वांगासन,मयूरासन, चक्रासन,भुजंगासन,धनुरासन आदि प्रकार के आसन करने से शरीर के आसन को ठीक तथा अनेक आसन संबंधी दोषों को भी ठीक किया जा सकता है।
लचक में वृद्धि करता है
लचक प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है इससे शरीर की गतियां कुशल व गरिमायुक्त हो जाती हैं। लचक के बढ़ने से चोटों से भी बचाव हो जाता है। विभिन्न योग आसन जैसे-चक्रासन, धनुरासन,हलासन,भुजंगासन, शलभासन आदि शरीर की लचक को बढ़ाने में सहायक होते हैं इन आसनों को करने से मांसपेशियां भी लचीली हो जाती हैं।
स्थूलता या मोटापे को कम करता है
मोटापे की समस्या आज एक आम समस्या बन चुकी है मोटा व्यक्ति समाज में अक्सर उपहास का पात्र ही बनता है मोटापे के कारण ही व्यक्ति अनेक शारीरिक तथा मानसिक समस्याओं का शिकार हो जाता है यौगिक व्यायाम जैसे-प्राणायाम व ध्यानात्मक आसन मोटापे को कम करने में सहायक होते हैं।
स्वास्थ्य में सुधार करता है
योग शरीर की सभी संस्थाओं जैसे- श्वसन,उत्सर्जन,रक्त प्रवाह,स्नायु व ग्रंथि संस्थाओं की कार्यकुशलता को बढ़ाता है जिसके परिणामस्वरुप स्वास्थ्य में सुधार होता है।
विभिन्न अध्ययनों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि योग मानसिक तनाव को कम करने में सहायक होता है यौगिक क्रियाएं जैसे-प्रत्याहार,धारणा व ध्यान मानसिक शान्ति प्रदान करने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।इनके अलावा मकरासन,शवासन,शलभासन व भुजंगासन जैसे यौगिक व्यायाम भी तनाव को कम करने में लाभदायक साबित होते हैं।
आध्यात्मिक विकास में सहायक
नियमित रूप से यौगिक व्यायाम करने से मस्तिष्क पर अच्छा नियंत्रण किया जा सकता है।पद्मासन व सिद्धासन आध्यात्मिक विकास के लिए सबसे अच्छे आसन है यह आसन ध्यान करने की शक्ति को बढ़ाते हैं।प्राणायाम भी आध्यात्मिक विकास के लिए बहुत ही लाभदायक होता है।
नैतिक मूल्यों को बढ़ाता है
नैतिक मूल्यों का ह्रास आज की सर्व व्यापी समस्या है।यम व नियम जैसी यौगिक क्रियाएं सत्य, अहिंसा,चोरी न करने तथा ब्रह्मा चर्य के पथ पर चलकर नैतिक अनुशासन सिखाती है इस प्रकार के गुण व्यक्ति को अधिक नैतिक व सदाचारी बनाते हैं।
योग को आसानीपूर्वक किया जा सकता है(Yoga can be Performed Easily)
गैर यौगिक व्यायाम को करने में अधिक समय व धन खर्च होता है जबकि आधुनिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के पास समय की कमी होती है। यौगिक व्यायाम को आसानी से कम जगह में तथा बहुत ही कम खर्च पर अपने घर पर भी आसानी से किया जा सकता है।
ऊपर बताए गए सभी बिंदु के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि आधुनिक जीवन में मनुष्य यदि नियमित रूप से यौगिक व्यायाम करता रहे तो वह अपने पूरे जीवन में स्वास्थ्य प्राप्त कर सकता है तथा एक खुशहाल, संतुष्टिपूर्ण,प्रसन्नतापूर्ण व उपयोगी जीवन व्यतीत कर सकता है।