भारत में स्थानीय सरकारों के मिल के पत्थर

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भारत में स्थानीय सरकारों के मिल के पत्थर

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका आज के इस एक नए आर्टिकल में दोस्तों आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम लोग जानने वाले हैं कि भारत में स्थानीय सरकारों के मिल के पत्थर के बारे में जानने वाले हैं तो आइए दोस्तों हम बिना देर किए जानते हैं भारत में स्थानीय सरकारों के मिल के पत्थर

भारत में स्थानीय सरकारों के मिल के पत्थर-स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की अवधि में पंचायत ने भारत में शासन के स्थानीय स्तर पर सार्वजनिक नीतियों के क्रियान्वयन एवं विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है|दोस्तों हम इस आर्टिकल में यही जानने वाले हैं कि भारत में स्थानीय शासन के कुछ मील के पत्थर से संबंधित है।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम और राष्ट्रीय विस्तार सेवाएं

सामुदायिक विकास कार्यक्रम 2 अक्टूबर 1952 को शुरू किए गए थे जो कि गांधी जी के जयंती का दिन था यह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पहला कार्यक्रम था जिसका लक्ष्य था कि स्थानीय विकास की गतिविधियों में लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देना प्रथम पंचवर्षीय योजना के समय में सबसे अधिक ध्यान ग्रामों को दिया गया तथा योजना दस्तावेज में इस बात पर अधिक बल दिया गया कि पंचायती अपने नागरिकों के लिए संतोषजनक ढंग से कार्य तभी कर पाएंगे जब भी विकास की एक सक्रिय प्रक्रिया के साथ जुड़ी हो जब तक कोई ग्रामीण एजेंसी जिम्मेदारी नहीं ले सकते और विकास के लिए पहल नहीं कर सकती वह ग्रामीण जीवन पर असर नहीं कर सकती समग्र रूप से समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाला ग्राम संगठन ही आवश्यक नेतृत्व प्रदान कर सकता है (पहली पंचवर्षीय योजना)।

1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम की शुरुआत के 1 साल बाद सरकार ने राष्ट्रीय विस्तार सेवाओं को शुरू करने का फैसला किया यह 2 अक्टूबर 1953 को शुरू की गई थी राष्ट्रीय विस्तार सेवाओं को उन क्षेत्रों में लागू किया गया था जिन्हें डीपी ने कर नहीं किया था राष्ट्रीय विस्तार सेवाओं का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण का वैज्ञानिक और तकनीक सहायता प्रदान करना था ताकि उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार किया जा सके राष्ट्रीय विस्तार सेवाओं की शुरुआत के बाद यह संभावना व्यक्त की गई कि ग्रामीण समाज को लक्षित करने वाली विकास नीतियों से पूरे देश को लाभ होगा।

बलवंत राय मेहता समिति

सामुदायिक विकास कार्यक्रमों के लागू होने के 5 वर्ष बाद योजना आयोग ने 16 जनवरी 1957 को एक कमेटी का गठन किया जिससे हम बलवंत राय मेहता समिति के नाम से जानते हैं इस समिति के अध्यक्ष बलवंत राय मेहता जी थे और इस समिति का कार्य सामुदायिक विकास कार्यक्रम एवं राष्ट्रीय विस्तार सेवाओं के प्रभाव का आकलन करना था इस समिति ने अपनी रिपोर्ट 24 नवंबर 1957 को सौंप दिया और इसने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की सिफारिश की थी ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत
ब्लॉक किया तालुका स्तर पर पंचायत समिति तथा
जिला स्तर पर जिला परिषद की। इस स्थिति की अन्य सिफारिश में महत्वपूर्ण सिफारिश के अनुसार सरकार कोई निकायों को पूर्ण स्वतंत्रता देनी चाहिए ताकि यह अपनी जिम्मेदारियां तथा कर्तव्य ठीक ढंग से निभाया इसके क्षेत्राधिकार में सभी विकास कार्य संपन्न होने चाहिए तथा सरकार को केवल सलाह निरीक्षक एवं उच्च योजना तक ही सीमित रहना चाहिए समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि एक आत्मा शासन संस्था का गठन भी किया जाना चाहिए ताकि यह ब्लॉक स्तर पर समन्वय बनाए जा सके तथा पंचायत समितियां का चुनाव अप्रत्यक्ष तौर पर किया जाना चाहिए।

अशोक मेहता समिति

केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद केंद्र ने एक समिति का गठन किया जिसे अशोक मेहता समिति के नाम से जाना जाता है इसका गठन दिसंबर 1977 में किया गया था जिसने भारत में पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत बनाने की उपाय का सुझाव दिया था इस समिति ने अपनी सिफारिश अगस्त 1978 में सभी जिसमें पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत बनाने के संबंध में 132 सिपाही से 30 समिति की महत्वपूर्ण सिफारिश से इस प्रकार थी त्रिस्तरीय व्यवस्था के स्थान पर इसने व्यवस्था की सिफारिश किया था जिला स्तर पर जिला परिषद तथा कुछ गांव को मिलाकर जिनकी संख्या 15 से 20000 हो मंडल पंचायत का गठन किया जाना चाहिए अशोक मेहता समिति के अनुसार भी केंद्रीकरण का प्रमुख केंद्र जिला होना चाहिए जिला परिषद एक कार्यकारी निकाय होना चाहिए जिसकी जिम्मेदारी जिला स्तर परियोजना बनाना हो तथा पंचायती राज संस्थाओं की को कर लगाने की पूर्ण शक्ति मिलनी चाहिए ताकि यह अपनी बीती संसाधनों को एकत्र कर सके।

जी.वी.के. राव समिति (1985)

जी.वी.के. राव समिति की नियुक्ति योजना आयोग द्वारा 1985 में की गई थी इसका प्रमुख कार्य पंचायती राज्य संस्थाओं के विभिन्न पहलुओं को देखना तथा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के प्रशासनिक प्रबंधो को देखना था।इस समिति की प्रमुख सिफारिशों में शामिल थी: पंचायती राज संस्थाओं को सभी स्तरों पर जिला,तालुक एवं ग्राम स्तर पर आवश्यक समर्थन प्रदान करना,स्थानीय योजना-कार्य की जिम्मेदारी देना,तथा ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की निगरानी एवं कार्यान्वयन करना।

एल.एम.सिंधवी समिति (1986)

राजीव गांधी सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं की समस्याओं के अध्ययन करने के लिए 1986 में एल.एम.सिंधवी समिति का गठन किया था। सिंघवी समिति की महत्वपूर्ण सिफारिश में स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक दर्जा देने तथा संविधान में एक नया अध्याय जोड़ने की बात शामिल थी। इस समिति ने पंचायत के चुनाव में राजनीतिक दलों की भागीदारी नहीं होने की भी सिफारिश की थी। लेकिन पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने के लिए राजीव गांधी सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाये थे।

 

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