भारत की ललित कलाएं कौन सी है?

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भारत की ललित कलाएं कौन सी है?

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका Hindi-khabri.in में। आज हम इस आर्टिकल में जाने वाले हैं कि भारत की ललित के कलाएं कौन सी है और भारत की विभिन्न ललित कलाएं कौन-कौन सी है? आदि इस आर्टिकल के माध्यम से हम जानने वाले हैं तो दोस्तों आइए हम बिना देर किए जानते हैं कि भारत की ललित कलाएं कौन सी है-

कला क्या है?

हम ऐसे प्रायः सभी को कुछ ऐसे शौक जरूर होते हैं जिनमें विशेष तरह का आनंद आता है किसी को फिल्म देखने का शौक है तो किसी को संगीत सुनने का किसी को क्रिकेट की कमेंट्री सुनने में मजा आता है कहने का मतलब यह है कि हम कुछ ऐसे कामों में भी रुचि लेते हैं जिनसे हमारी भौतिक जरूरतें पूरी नहीं होती बल्कि जो हमें मानसिक और आत्मिक आनंद प्रदान करते हैं हम में से कोई पेशे से दुकानदार हो सकता है लेकिन साथ ही उसे वायलिन बजाने का भी शौक हो कोई ग्रृहिणी अच्छी कविताएं भी लिखती हो सच्चाई यह है कि बौद्धिक और सांस्कृतिक क्रियाकलापों से जुड़कर हम अपने जीवन को अधिक समृद्ध और सार्थक बनाना चाहते हैं। जिस तरह भोजन से शरीर का पोषण होता है उसी तरह कला से मन और बुद्धि का पोषण होता है मनुष्य जो भौतिक जीवन से ऊपर उठकर मानसिक और आत्मिक उन्नति के लिए प्रयास करता है तो इस प्रयास से भले ही कोई भौतिक लाभ ना हो लेकिन उससे जीवन को पूर्णता और सार्थकता प्राप्त होती है।

हम जो भी कार्य करते हैं उसे करते हुए दो बातों पर ध्यान जरूर देते हैं एक तो इस बात का कि जिस जरूरत से प्रेरित होकर हम वह काम कर रहे हैं वह जरूरत मुकम्मल तौर पर पूरी हो। इसे हम कार्य का भौतिक पक्ष कह सकते हैं जैसे एक कुर्सी बनानी हो तो हम उसकी मजबूती उस पर बैठने में सुविधा तथा उसकी लकड़ी को क्यों नैना खा जाए इस बात का ध्यान रखेंगे। लेकिन जब हम कोई काम करते हुए यह भी विचार करें कि वह काम अच्छे ढंग से पूरा हो काम करते हुए आनंद आए हमारे द्वारा किया गया काम दूसरों को भी रुचिकर और आनंद प्रदान करने वाला लगे तो इसे हम उस कार्य का सौंदर्य पक्ष कहेंगे जैसे कुर्सी पर बेल बूटे बनाना उस पर ऐसा रंग रोगन करना जो दिखने में सुंदर लगे इससे कुर्सी की उपयोगिता में कोई फर्क नहीं आता फिर भी इससे सभी को मानसिक और आत्मिक आनंद प्राप्त होता है।

अब तक जो बातें आपको बताई गई है उनसे आप समझ सकते हैं कि कला क्या है।अपने व्यापक अर्थ में मनुष्य द्वारा दक्षता से किया गया कोई भी कार्य कला कहां जाता है। लेकिन जो कार्य मानों के भौतिक उपयोग से प्रेरित होकर किया गया हो वह उपयोगी कला के अंतर्गत आता है और जो कार्य शोधन कार्यात्मक उद्देश्य से प्रेरित होकर किया जाता है वह ललित कला के अंतर्गत आता है सौंदर्य आत्मक उद्देश्य का अर्थ है जो हमारे मन और आत्मा को आनंद पहुंचाएं।

यहां हम सिर्फ ललित कलाओं की चर्चा करेंगे क्या आप जानते हैं कि ललित कलाएं कितनी है? आपने ताजमहल को जरूर देखा होगा राजपूत या मुगल शैली के चित्र देखे होंगे ना ध्यान नस्त बुद्ध की प्रतिमा देखी होगी भीमसेन जोशी या एमएस सुब्बूलक्ष्मी का गायन सुना होगा प्रेमचंद का गोदान पड़ा होगा आषाढ़ का एक दिन नाटक देखा होगा यह सभी ललित कलाएं है इनमें हम पांच भागों में बांट सकते हैं स्थापत्य (गृह निर्माण),मूर्ति,चित्र,संगीत और काव्य।

विभिन्न ललित कलाएं

घर हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग होता है घर हमारा एक छोटा सा संसार है जहां हम पलते एवं बड़े होते हैं जहां हमारे सुख-दुख से भरे जीवन की अनगिनत घड़िया बीतती हैं मनुष्य अपने लिए सुख सुविधा से परिपूर्ण घर ही नहीं चाहता वह घर को सुंदर और भव्य भी देखना चाहता इसलिए वास्तुकला या स्थापत्य अर्थात मकान निर्माण को एक कला माना गया वास्तुकार या स्थपति उसकी इच्छा को पूर्ण करता है और इसी में स्थापत्य कला के अभिव्यक्ति होती है भवन,महल,दुर्ग,पूजागृह( मंदिर, मस्जिद आदि),स्तंभ (मीनार) आदि के निर्माण में भी यही कला मूर्त होती है।

मंदिरों में स्थापित मूर्तियां जिनमें भक्त भगवान का साक्षात रूप देखता है मूर्ति कला की उत्कृष्टता को अभिव्यक्त करती है मूर्ति कला में जहां शारीरिक सौष्ठव का कलात्मक निर्माण होता है वही मूर्ति के चेहरे पर विभिन्न भाव मुद्राओं को जीवंत बना देना भी उसका महत्वपूर्ण अंग होता है स्थापत्य कला पत्थरों को छेनी-हथौड़े के द्वारा सौंदर्यात्मक रूप देकर निर्मित होती है।मूर्तियां भी मुख्यत पत्थरों को तराश कर बनाई जाती है किंतु धातु ,लकड़ी और मिट्टी से भी मूर्तियों की रचना होती रही है पत्थर या लकड़ी की मूर्तिया तराशी जाती है धातु की मूर्तियां गढ़ी जाती है स्थापत्य और मूर्तिकला में स्थापत्य अधिक स्थूल कला है।

भवनों और मूर्तियो का निर्माण लंबाई,चौड़ाई और ऊंचाई में होता है इसलिए इन्हें त्रिआयामी कलाएं भी कहा जाता है चित्रकला द्वि आयामी कला है क्योंकि चित्रों का निर्माण लंबाई और चौड़ाई में होता है चित्रकार कागज कपड़ा या भिती(दीवार) पर रंगों और रेखाओं के माध्यम से चित्रों का निर्माण करता है स्थापत्य और मूर्तिकला की अपेक्षा चित्रकला जीवन का बहुआयामी अंकन कर सकती है इन तीनों में चित्रकला सबसे अधिक सूक्ष्म कला है।

अगर आपने स्थापत्य मूर्ति और चित्रकला पर गौर किया हो तो आपको कुछ सामान विशेषताएं नजर आएंगी जैसे यह तीनों कलाएं दिक् पर आधारित है क्योंकि इन्हें हम दिक् में ग्रहण करते हैं दूसरे इन तीनों कलाओं के लिए भौतिक उपादानों की जरूरत होती है जैसे स्थापत्य में पत्थर की मूर्ति में पत्थर,मिट्टी, धातु या लकड़ी की और चित्र में भिती,कागज या कपड़े की।संगीत और काव्य कलाओं में इन भौतिक उपादानो की जरूरत नहीं होती।दूसरा अंतर यह है कि संगीत और काव्य कला काल- आधारित कलाएं हैं अर्थात् इनका रसास्वादन हम काल के प्रवाह में करते हैं।

तीसरा अंतर स्थूलता का है। स्थापत्य मूर्ति और चित्रकला में कलाकारों के भावों और विचारों की अभिव्यक्ति स्थूल रूप में होती है जबकि संगीत और काव्य में सुक्ष्म रूप में संगीत में कला का आधार स्वर और लय है जिसे कलाकार गायन या वादन द्वारा व्यक्त करता है।संगीत में भावो के उतार-चढ़ाव की बारीकियों को व्यक्त किया जा सकता है संगीत काव्य से अधिक भाव प्रधान होता है।

काव्य साहित्य सबसे अलग किस्म की कला है इसमें भाषा को कला रचना के उपकरण के रूप में प्रयोग किया जाता है साहित्य सबसे सूक्ष्म कला है क्योंकि इसके द्वारा हम अपने भावों और विचारों की जटिलता और सुक्ष्मता को सहज ही प्रस्तुत कर सकते हैं काव्य में कई विधाएं आती हैं जैसे कहानी,उपन्यास, नाटक,कविता आदि।नाटक का इस दृष्टि से विशेष महत्व है क्योंकि रंगमंच पर नाट्य की प्रस्तुति में अन्य कलाओं का भी समावेश हो जाता है।नृत्य का संबंध नाट्य और संगीत दोनों से है और इसे दोनों कलाओं में शामिल किया जा सकता है।

आपके मन में अब प्रश्न उठ रहा होगा कि फिल्म कला है या फोटोग्राफी? निश्चय ही यह दोनों कलाएं हैं। फिल्म नाट्य कला का और फोटोग्राफी चित्रकला का ही विकास है। आधुनिक तकनीकों ने इन दोनों कलाओं को संभव बनाया है।

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