अधिनायकवादी शासनों की प्रकृति और विशेषताएं
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका Hindi-khabri.in मे। दोस्तों आज के इस एक नए आर्टिकल में हम जानेंगे कि अधिनायकवादी शासनों की प्रकृति क्या है, और अधिनायकवादी शासन की विशेषताएं क्या है? आदि के बारे में इस आर्टिकल में हम जानेंगे तो दोस्तों आइए हम बिना देर किए जानते हैं कि अधिनायकवादी शासनों की प्रकृति क्या है-
अधिनायकवादी शासनों की प्रकृति
लोकतांत्रिक और अधिनायकवादी शासनों में उनके उद्देश्य तथा उनकी उपलब्धि के साधनों के आधार पर भेद किया जाता है। अधिनायकवादी शासन स्वयं यह तय करते हैं कि व्यक्ति के हित में क्या है।नागरिकों की इच्छाओं की चिंता किए बगैर शासन करने वाले अभिजन अपनी इच्छा उन पर थोपते हैं। यह ऐसी सरकार होती है जो पूर्ण आज्ञाकारिता मांगती है,और चाहती है कि सभी उसकी इच्छा के अनुसार कार्य को करें तथा यदि आवश्यक हो तो वह बल प्रयोग भी करती है। वास्तव में यह लोकतंत्र की पूर्ण विरोधी व्यवस्था है।
सत्ता किसे कहते हैं?
जब शक्ति का स्वेच्छा से पालन किया जाता है उसका स्वेच्छा से आदर किया जाता है जब अधिकांश जनता इसे मान्यता देती है तब यह सत्ता वैध और बाध्यकारी होती है इसको ही सता कहते हैं। सत्ता वास्तव में स्वेच्छा से स्वीकृत शक्ति है। इसका स्तर नैतिक होता है सत्ता में शक्ति का वैध प्रयोग निहित होता है। लोकतांत्रिक शासन इस प्रकार की सत्ता को मान्यता प्रदान करती है।
अधिनायकवादी किसे कहते हैं?
परंतु जब कोई पद्धति जनइच्छा की चिंता किए बिना तथा बल का प्रयोग करके शासन करती है तब इसे ही अधिनायकवादी कहते हैं। इस प्रकार यदि लोकतंत्र का आधार “नीचे” (जनइच्छा) से है, तो अधिनायकवाद “ऊपर” से लादी गई व्यवस्था है।
“ऊपर” से शासन की व्यवस्था का संबंध राजतंत्रीय असीमितता, पारंपरिक,तानाशाही,अधिकांश एक दलीय व्यवस्थाओं तथा अधिकांश सैनिक शासन से भी है।वे सभी अधिनायकवादी हैं, क्योंकि इन सब पद्धतियों में विपक्ष एवं राजनीतिक स्वतंत्रता का दमन किया जाता है।
अधिनायकवादी शासन तथा सर्वाधिकारवादी सासन एक ही व्यवस्था नहीं है। सर्वाधिकारवादी व्यवस्था में आधुनिक तानाशाही के तत्व पाए जाते हैं क्योंकि इसमें सरकार की समस्त शक्तियों का केंद्रीकरण होता है तथा राजनीतिक,सामाजिक तथा बौद्धिक जीवन सभी को सैनिक कमान की भांति एक सूत्र में बांध दिया जाता है।इन अर्थों में यह अतीत की सभी अतिवादी उत्पीड़क शासन प्रणालियों से अधिक कठोर है।सर्वाधिकार का जनसाधारण की गतिविधि पर अबाध नियंत्रण होता है इस अर्थ में सर्वाधिकारवाद वास्तव में बीसवीं शताब्दी की ही देन है इस शब्द का प्रयोग दो विश्व युद्धों के अंतराल की तीन अतिवादी प्रणालियों से किया जाता है।वह इटली की फांसी सरकार,जर्मन नात्सी शासन तथा सोवियत संघ का स्टालिनवाद।
इसका सारांश यह निकलता है कि सभी सर्वाधिकारवादी शासन अधिनायकवादी होते हैं, परंतु यह आवश्यक नहीं कि सभी अधिनायकतन्त्र शासन सर्वाधिकारवादी ही हो। इसमें कोई संदेह नहीं कि अधिनायकवादी शासन विपक्ष तथा राजनीतिक स्वतंत्रता का धूमिल या समाप्त नहीं करना चाहते हैं। अधिनायकवादी पद्धतियां कुछ सीमा तक आर्थिक,धार्मिक एवं अन्य स्वतंत्रताओं को बर्दाश्त करती हैं।
अधिनायकवादी शासन की विशेषताएं क्या है?
अधिनायकवादी व्यवस्था में सार्वजनिक विचार-विमर्श तथा मतदान इत्यादि को सत्ता में जो व्यक्ति होते हैं वह दबा देते हैं।
- अधिनायकवादी प्रणाली इतनी शक्ति का प्रयोग आसानी से कर लेते हैं कि वे संवैधानिक मर्यादाओं की अवहेलना कर सकें।
- इस व्यवस्था में जो लोग सत्तारूढ़ होते हैं वे यह दावा नहीं करते कि उनकी शक्ति के पीछे शासकों की स्वीकृति होती है।परंतु उनकी शक्ति का आधार उनके कोई विशेष गुण होते हैं।
- बल पर आधारित यह प्रणाली नागरिकों के विरुद्ध बड़ी सुविधा से हिंसात्मक उपायों का सहारा ले लेती है, तथा नागरिकों की इस शासन में कोई भूमिका नहीं होती।शक्ति नियंत्रित होती हैं,सत्ता-परिवर्तन या नेता- परिवर्तन सरल नहीं होता। यह कार्य प्रायः शांतिपूर्वक उपायों से संपन्न होता ही नहीं है। सत्ता में परिवर्तन या सैनिक क्रांति के द्वारा,या फिर किसी अन्य क्रांति के द्वारा ही होता है। जहां तक अफ्रीकी देशों के अधिनायकवादी शासन का प्रश्न है वहां प्रायः सैनिक क्रांतियों से ही सत्ता परिवर्तन होते हैं।
- अधिनायकवादी देश अन्य देशों के साथ अपने संबंधों में भी बल प्रयोग का सहारा लेते हैं। इस व्यवस्था में संस्थाएं जनता की भागीदारी पर आधारित नहीं होती है।तथा जनता के प्रति वे उत्तरदायी भी नहीं होती,इसलिए जनमत का कोई विशेष प्रभाव नहीं होता। इस प्रकार अधिनायकतन्त्र अंतरराष्ट्रीय शांति में बिल्कुल सहायक नहीं होता है।
- यह शासन व्यवस्था जनता की सीमित तथा अत्यंत कम राजनीतिक पहल पर आधारित होता है।जनसाधारण का अराजनीतिकरण हो जाता है तथा शासक वर्ग स्वेच्छा से सीमित बहुलवाद के आधार पर सत्ता का उपयोग करता है।
- जहां लोकतंत्र संस्थागत रूप में बहुलवाद का लगभग असीमित रूप में प्रतिनिधित्व करता है,वही अधिनायक व्यवस्था सीमित बहुलवाद का प्रतीक है। सीमित बहुलवाद कानूनी भी हो सकता है या मात्र व्यावहारिक। यह सत्तारूढ़ राजनीतिक समूह, अथवा हित समूहों तक सीमित होता है।
- इस व्यवस्था में शासक समूह की सत्ता कानूनन जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं होती,चाहे कभी- कभी वह उनकी इच्छा का आदर बेशक करें।यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के एकदम विपरीत है, जहां राजनीतिक शक्ति नागरिकों के औपचारिक समर्थन पर निर्भर रहती है।
निष्कर्ष
दोस्तों इस आर्टिकल में हमने जाना है कि अधिनायकवादी शासनों की प्रकृति क्या है, और शक्ति क्या है, अधिनायक वादी किसे कहते हैं और अधिनायकवादी शासन की विशेषताएं क्या है? आदि के बारे में इस आर्टिकल में हमने जाना है तो दोस्तों अगर आपको हमारी यह आर्टिकल पसंद आया हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें और इस आर्टिकल में अगर आपको कोई गलतियां नजर आए तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं ताकि हम अपनी गलतियों को आगे सुधार सकें।