गांधी जी के वैचारिक साधन और जन लामबंदी के तरीके

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गांधी जी के वैचारिक साधन और जन लामबंदी के तरीके

नमस्कार दोस्तों आप सभी लोगों का Hindi-khabri.in में आप सभी लोगों का स्वागत है। दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि गांधी जी के वैचारिक साधन और जन लामबंदी के तरीके क्या थे के बारे में इस आर्टिकल के माध्यम से जाने वाले हैं तो दोस्तों आइए बिना देर किए जानते हैं कि गांधी जी के वैचारिक साधन और जन लामबंदी के तरीके क्या थे

गांधी जी के वैचारिक साधन और जन लामबंदी के तरीके

अब हम गांधी जी की विचारधारा के मुख्य पहलुओं पर विचार करेंगे लेकिन उन पर व्याख्या करने से पहले हमें यह जानना जरूरी है कि ऐसे कई प्रभाव थे जिन्होंने गांधी जी की विचारधारा को उभारने और उसे एक निश्चित दिशा में योगदान दिया है। अपनी आत्मकथा में गांधी जी ने यह स्वीकार किया है कि उनके अभिभावकों के दृष्टिकोण और उनके रहने के स्थान पर मौजूद सामाजिक और धार्मिक वातावरण ने उनको व्यापक रूप से प्रभावित किया था। उनकी प्रारंभिक विचारधारा को “वैष्णव मत” और जैन धर्म की परंपराओं ने विशेष तौर से प्रभावित किया था। गांधी जी “भगवत गीता” से भी प्रभावित थे। इसके अलावा ईसा मसीह के “पहाड़ पर उपदेश” टालस्टाय,थोरौ और रस्किन के लेखों ने भी उनके चिंतन को प्रभावित किया था। लेकिन इसके साथ-साथ उनकी विचारधारा के विकास और दिशा निर्धारण में सर्वाधिक योगदान जीवन में उनके अपने व्यक्तिगत अनुभवों का था।

सत्याग्रह

गांधी जी की विचारधारा का सबसे मुख्य पहलू सत्याग्रह का था। जैसा कि पहले ही जिक्र किया जा चुका है यह तरीका गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में विकसित किया था। परंतु 1919 के उपरांत भारत के स्वाधीनता संग्राम में यह एक महत्वपूर्ण पहलू बना। गांधी जी के अनुसार हिंसा के स्थान पर सत्याग्रह का प्रयोग स्वयं कष्ट सहकर इस प्रकार किया जाना चाहिए था कि शत्रु को अपनी बात मनवाने के लिए बदला जा सके। गांधी जी ने सत्याग्रह और निष्क्रिय प्रतिरोध के बीच अंतर किया। उन्होंने यह लिखा है कि:

“निष्क्रिय प्रतिरोध एक कमजोर व्यक्ति का वह अस्त्र है जिसमें हिंसा और शारीरिक शक्ति का प्रयोग अपने उद्देश्य की पूर्ति के हेतु किया जाता है; जबकि सत्याग्रह शक्तिशाली व्यक्ति का अस्त्र है और इसमें किसी भी प्रकार की हिंसा का प्रयोग नहीं है”।

वास्तव में गांधीजी के लिए सत्याग्रह मात्र एक राजनीतिक अस्त्र नहीं था वर्न व जीवन दर्शन और सिद्धांतों के व्यवहार का एक हिस्सा था। गांधी जी का यह विश्वास था कि मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य सत्य की खोज है और क्योंकि कोई भी अंतिम सत्य को नहीं समझ सकता इसलिए उसे दूसरे व्यक्ति के सच की खोज में बाधा नहीं डालना चाहिए।

अहिंसा

अहिंसा सत्याग्रह का एक आधार था। गांधी जी ने इस बात पर महत्व दिया कि साधारण व्यक्ति को अपने राजनीतिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अहिंसात्मक सत्याग्रह का प्रयोग करना चाहिए। परंतु कभी-कभी गांधी जी जो निर्णय लेते थे उसमें पूर्ण अहिंसा की कमी नजर आती थी। जैसा कि उन्होंने बार-बार यह कहा कि अन्याय के सामने कायर दिखने की अपेक्षा हिंसा बेहतर है। व्यक्तिगत रूप में सत्याग्रह कई प्रकार के रूप ले सकता था जैसे कि उपवास,अहिंसात्मक धरना,विभिन्न प्रकार का असहयोग और सविनय अवज्ञा, यह जानते हुए भी कि उसके लिए कानूनी दंड भी मिलेगा। गांधी जी का यह पूर्ण विश्वास था कि सत्याग्रह के यह रूप सच्चे उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपनाए गए सच्चे तरीके हैं।

धार्मिक प्रतीकों का उपयोग

गांधी जी की विचारधारा के संदर्भ में चर्चा करते हुए धर्म के प्रति उनके दृष्टिकोण को जानना अत्यंत आवश्यक है। गांधी जी के लिए धर्म किसी एक विशेष धार्मिक समुदाय की सैद्धांतिक व्याख्या न होकर,समस्त धर्मों में निहित मूलभूत सत्य था। गांधी जी ने धर्म की व्याख्या सच्चाई के लिए संघर्ष के रुप में की। गांधी जी यह मानते थी कि धर्म को किसी व्यक्ति की निजी राय बताकर पीछे नहीं ढकेला जा सकता क्योंकि धर्म व्यक्तियों की सभी गतिविधियों को प्रभावित करता है। उनकी यह धारणा थी कि भारत में राजनीतिक कार्यवाहीं के लिए धर्म एक आधार प्रस्तुत करता है। यही कारण है कि गांधीजी ने खिलाफत के प्रश्न को संघर्ष का मुद्दा बनाया जिससे कि मुसलमानों को अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध आंदोलन में लाया जा सके। लेकिन गांधी जी के द्वारा “राम राज्य” जैसे धार्मिक विचारों का प्रयोग राष्ट्रीय आंदोलन में सांप्रदायिकता की समस्या को हल नहीं कर पाया।

हिंद स्वराज का विचार

गांधी दर्शन का एक महत्वपूर्ण पहलू हमें उनकी पुस्तक “हिंद स्वराज” (1909) में मिलता है। इस पुस्तक में गांधी जी ने इस बात की ओर इशारा किया है कि वास्तविक शत्रु,अंग्रेजों का राजनीतिक प्रभुत्व न होकर आधुनिक पश्चिम सभ्यता है जो कि धीरे-धीरे भारत को जकड़ती जा रही थी। उनकी धारणा थी कि जो भारतीय पाश्चात्य पद्धति से शिक्षित हुए हैं,जैसे कि वकील, डॉक्टर,अध्यापक और पूंजीपति वे आधुनिक तौर-तरीकों को फैला कर भारत की प्राचीन धरोहर को नष्ट कर रहे थे। इस पुस्तक में गांधी जी ने रेलगाड़ी कि इस बात के लिए आलोचना की कि रेल खाद पदार्थों के निर्यात में सहायक है और अकाल फैलाने में सहायता देती है। स्वराज और स्वशासन को उन्होंने जीवन की एक ऐसी स्थिति माना जो कि तभी स्थाई रह सकती थी जबकि भारतीय अपनी परंपरागत सभ्यता का अनुकरण करें और आधुनिक सभ्यता से भ्रष्ट न हो। गांधी जी ने लिखा था कि “भारतीयों की मुक्ति इसी में है कि उन्होंने जो कुछ पिछले 50 वर्षों में सीखा है उसे भुला दे। रेलगाड़ियों,तार,अस्पताल,वकील,डॉक्टर और इसी प्रकार की सब आधुनिक वस्तुओं को भूल जाना होगा। और तथाकथित उच्च वर्ग को साधारण किसान जैसा जीवन व्यतीत करना सीखना होगा।”

आगे चलकर गांधी जी ने अपने सामाजिक और आर्थिक विचारों को एक निश्चित दिशा देने का प्रयास किया और इसके लिए उन्होंने खादी,ग्रामीण पुनर्गठन और हरिजन कल्याण का एक कार्यक्रम रखा। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस कार्यक्रम से गांव के लोगों की समस्याओं का पूर्णतः हल नहीं हो पाया लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस कार्यक्रम के द्वारा एक निश्चित सीमा तक गांधी जी उनकी स्थिति को सुधारने में सफल रहे हैं। वास्तव में इस कार्यक्रम के माध्यम से गांधी जी ने देश में सामाजिक और आर्थिक सुधारों के लिए एक महत्वपूर्ण चेतना जागृत की।

स्वदेशी

गांधी जी ने स्वदेशी का प्रचार किया। स्वदेशी से अभिप्राय अपने देश में बनी हुई वस्तुओं के प्रयोग से था।उदाहरण के लिए इंग्लैंड में मशीन से बने कपड़ों का स्थान पर खादी का इस्तेमाल करना।उनकी राय में स्वदेशी के द्वारा किसान अपनी गरीबी को हटा सकते थे क्योंकि वे कताई करके अपनी आय में वृद्धि कर सकते थे। विदेशी कपड़ों के इस्तेमाल में कमी करके भारत से इंग्लैंड को हो रही धन की निकासी को भी रोका जा सकता था।

निष्कर्ष

दोस्तों आपने आज इस आर्टिकल के माध्यम से जाना है कि गांधी जी के वैचारिक साधन और जन लामबंदी के तरीके के बारे में आपने इस आर्टिकल में जाना है।
और गांधी जी के विचार धारा सत्याग्रह,अहिंसा,हिंद स्वराज का विचार आदि के बारे में आपने जाना है तो दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा है।आप हमें कमेंट करके जरूर बताएं और अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूले।

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