मेघनाद साहा का जीवन परिचय
नमस्कार दोस्तों आप सभी लोगों का Hindi-khabri.in में आप सभी लोगों का स्वागत है दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम मेघनाद साहा का जीवन परिचय के बारे में जानने वाले हैं दोस्तों आइए हम बिना देर किए जानते हैं मेघनाद साहा का जीवन परिचय के बारे में
मेघनाद साहा का जीवन परिचय
मेघनाद साहा का जन्म ढाका जिले के सियोरातली नामक गांव में जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है, 6 अक्टूबर 1893 को हुआ था। मेघनाद साहा के पिता का किराना व्यवसाय था,जिससे उनका पूरा गुजारा न चल पाता था। घर की माली हालत तंग होने से सभी लोग परेशान रहते थे। मेघनाद ने जैसे-तैसे गांव में पांचवी तक पढ़ाई पूरी किए। वे अभी बालक ही थे।वे अपने भाई-बहनों में पांचवे नंबर पर थे। उन्हें पढ़ने के लिए घर से बहुत दूर जाना पड़ता था। क्योंकि वह बचपन से ही तेज बुद्धि के थे, इसलिए अधिकतर समय विज्ञान, भौतिकी एवं इतिहास की पुस्तकें पढ़ते रहते थे।
मेघनाद साहा पढ़ना चाहते थे परंतु उनके पिताजी उनकी पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ थे।जब यह बात एक पड़ोस के व्यक्ति को पता चली तो उसने मेघनाद सहा की बुद्धि की परीक्षा ली।इस परीक्षा में मेघनाथ साहा खरे उतरे। इस पर उस पड़ोसी ने मेघनाद सहा की पढ़ाई का खर्च उठाने की सारी जिम्मेदारी ले ली। बालक मेघनाद साहा ने धीरे-धीरे अध्ययन जारी रखा। उन्होंने गांव से दूर एक आठवीं तक के विद्यालय में प्रवेश ले लिया।अब बालक मेघनाद साहा उस व्यक्ति का काम भी करते थे और पढ़ाई भी।एक दिन उनकी मेहनत रंग लाई।उन्हें आठवीं कक्षा में प्रथम आने पर छात्रवृत्ति प्राप्त हुई। इससे उनका मन पढ़ाई की तरफ और बढ़ गया ।वे एक पुस्तकालय के सदस्य भी बन गए जहां से उन्हें ज्ञान की भरपूर पुस्तकें उपलब्ध हो जाती थी।वे मन लगाकर उन्हें पढ़ते रहते थे।
शिक्षा हेतु ढाका गए
आठवी कक्षा पास करने पर प्राप्त छात्रवृत्ति से वे उच्च शिक्षा के लिए ढाका गए।वहां भी उन्हें प्रथम स्थान प्राप्ति पर छात्रवृत्ति मिली,फिर कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में साहा ने एस.एन.बोस,पी.सी. महालनोबीस के साथ शिक्षा प्राप्त की।यहां उन्हें पढ़ाने वाले जे.सी. बोस व पी.सी.रे जैसे सुविख्यात व्यक्ति थे।
क्रांति का असर
सन् 1905 में देश में एक क्रांति आ गई थी। ब्रिटिश सरकार द्वारा बंगाल को दो हिस्सों में बांटे जाने से लोगों में गहरा रोष था। इससे देश में जुलूस,प्रदर्शन व सभाएं हो रही थी।इस समय मेघनाद साहा युवा हो चुके थे।अंग्रेजों के प्रति उनका खून भी खोलने लगा। उन्होंने विद्यालय में एक अंग्रेज अधिकारी का अपमान किया।इस समय मेघनाद साहा के साथ अन्य साथी भी थे। जब इस बात का पता विद्यालय के प्रिंसिपल को चला तो साथियों सहित उन्हें विद्यालय से निकाल दिया गया। इस कारण उनकी छात्रवृत्ति भी रुक गई।
उसके बाद मेघनाद साहा ने वहां के एक अन्य स्कूल में भी प्रवेश ले लिया।भाषा का प्रशिक्षण प्राप्त कर उन्होंने विज्ञान में अपनी रुचि लगाई।इसके लिए उन्होंने सन् 1909 में ढाका के कॉलेज में प्रवेश लिया। यहां जर्मन भाषा को ही प्राथमिकता दी जाती थी,अतः जर्मन भाषा अनिवार्य थी।उनके मन में वैज्ञानिक बनने की भावना प्रबल हो उठी थी। सन् 1911 में ही वे कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश के लिए गए थे, जहां एस.एन.बोस को प्रथम तथा मेघनाद साहा को द्धितीय स्थान मिला था।
नियुक्ति एवं परिस्थिति
कोलकाता से एस-सी. करने के पश्चात उन्होंने ‘इंडियन फाइनेंस सर्विस’ में नौकरी करने का विचार किया,लेकिन वहां उन्हें कोई भी नौकरी नहीं मिल सकी।उनके परिचित कुलपति आशुतोष मुखर्जी ने साहा तथा एस.एन. बोस को विद्यालय में गणित अध्यापक के पद पर लगाए जाने की भरसक कोशिश की, किंतु वहां की अनुसंधानसाला की अव्यवस्था से वे क्षुब्ध हो गए। एस.एन.बोस और साहा परिस्थितियों से निबटने के लिए जूझते रहे।
अनुसंधानशाला से उन्हें अध्ययन के लिए शैक्षणिक पुस्तके तक नहीं मिली।इससे उनके अनुसंधान कार्य में बाधा आने लगी।उन्होंने अपना साहस नहीं खोया और वे जहां-तहां पुस्तकों से अध्ययन करते रहे।इस समय विज्ञानियों के लिए आइन्सटाइन का ‘सापेक्षवाद एवं क्वांटम’ सिद्धांत सबक बना हुआ था।उसका जर्मनी में प्रकाशन हुआ था जिसे मेघनाद साहा ने अंग्रेजी भाषा में अनुवादित किया।
विवाह एवं सम्मान
मेघनाद साहा को सन 1918 में डी.एस-सी.की मानक उपाधि से सम्मानित किया गया। सन् 1919 में जर्मनी के अलावा कई देशों की यात्राएं कर उन्होंने अपना ज्ञान को बढ़ाया।इस दौरान उन्होंने ‘परमाणु भौतिकी संस्थान’ की भी स्थापना की थी तथा परमाणुओ के आयनिक होने के विषय में भी अपना शोध प्रस्तुत किया था। इसके अलावा उन्होंने परमाणुओ को नष्ट करने के लिए ‘चक्रवाल’ नामक एक मशीन बनाये। इसी दौरान उन्होंने एक युवती राधारानी राय से विवाह भी कर लिया,जिनसे उन्हें तीन पुत्र तथा चार पुत्रियां प्राप्त हुई। उनका बड़ा पुत्र अजीत भी पिता मेघनाद साहा की तरह भौतिक शास्त्र का वैज्ञानिक बन गया। श्रीमती राय बहुत कम पढ़ी-लिखी लिखी थी, फिर भी आदर्श पत्नी की तरह मेघनाद साहा का साथ देती रही।
साहा का आयनीकरण सिद्धांत
मेघनाद साहा ने भौतिकी की अनेक समस्याओं का समाधान करने के लिए नए सिद्धांत बनाए। आयनीकरण सिद्धांत एक ऐसा फार्मूला था जिससे उपस्थित वर्णक्रम रेखाओं की जानकारी दी जा सकती थी। इसके अलावा उसमें सूर्य एवं सितारों की गतिविधियों का भी पता लगाया जा सकता था।
रॉयल सोसाइटी के सदस्य
उन्हें सन् 1927 में रॉयल सोसाइटी का सदस्य मनोनीत कर दिया गया।उनकी यह खोज विज्ञान जगत में बारहवीं अनुपम खोज मानी गई।वे हर प्रकार की गतिविधियों में भाग लेने लगे। उन्हें अनेक समितियों का भी सदस्य बनाया गया।वे जन समस्या के अलावा राष्ट्र समस्या को भी गंभीर मानते थे,अतः नेहरूजी से भी उनके अच्छे संपर्क बन गए थे।नेहरूजी ने ही मेघनाथ साहा को लोकसभा सदस्य बनवाया था।वे निर्भीक, निःसंकोची एवं नेकदिल इंसान थे।
अन्य शोध कार्य
मेघनाथ साहा ने चट्टानों की आयु मापने के अलावा रेडियो तरंगों के बारे में भी खोज कार्य किया। उन्होंने सन् 1940 में ओटोहान के परमाणु बम शोध कार्य पर अणु विखंडन विधि पर शोध कार्य किया। उन्होंने सन् 1948 में ‘इंस्टीट्यूट आफ न्यूक्लियर फिजिक्स’ की स्थापना की। सन् 1950 में उन्होंने विदेशी साइक्लोट्रॉन नामक संयंत्र को अपने संस्थान में लगवाया।यह संयंत्र भारत में पहली बार स्थापित किया गया था,जिसे सभी ने सराहा था।
पत्रिका का संपादन
उन्होंने एक पत्रिका ‘साइंस एंड कल्चर’ का संपादन भी किया जिसमें विज्ञान एवं साहित्य पर सामग्री दी जाती थी।यह पत्रिका जनहित में प्रकाशित होती थी, जिसमें उनकी जन-समस्याओं के अलावा अनेक दृष्टिकोण थे।
मेघनाद साहा जी के कार्य
उन्होंने सन् 1930 में इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) विज्ञान अकादमी (अब नेशनल अकादमी ऑफ साइंस), सन् 1935 में दिल्ली में एक ‘साइंस इंस्टीट्यूट और सन् 1938 में इंडियन साइंस न्यूज़ एसोसिएशन की स्थापना की। यहीं से उन्होंने ‘साइंस एंड कल्चर’ पत्रिका का संपादन किया था। उन्होंने सन् 1942 में कोलकाता में ‘इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलिक्स एंड रिवर रिसर्च ऑफ बंगाल’ की भी स्थापना की।साहा ने दामोदर नदी में भीषण बाढ़ आने की घटना का स्वयं निरीक्षण किया था। वहां उन्होंने बाढ़ राहत कार्य व बाढ़ पीड़ित लोगों की सहायता के लिए अनेक लेखों का प्रकाशन कर सरकार का ध्यान आकर्षित किये था।उन्हीं के प्रयास से दामोदर नदी पर अमेरिका की टेनेसी इसी नदी जैसा बांध बनवाया गया जिसके जल से आज बिजली और कृषि की अनेक आवश्यकताएं पूरी होती है।श्री मेघनाथ साहा यद्यपि आज जीवित नहीं है,तथापि उनके किए गए अभूतपूर्व कार्य देखने पर स्वाभाविक ही उनकी याद हमारे मन में ताजा हो उठती है।
निधन
मेघनाद साहा जी का निधन हृदय गति रुक जाने से संसद भवन के पास 16 फरवरी 1956 को हो गया।
निष्कर्ष
दोस्तों हम आपसे यह उम्मीद करते हैं कि आप सभी लोगों को मेघनाद साहा का जीवन परिचय के बारे में समझ आ गया होगा। यदि आप सभी लोगों को इससे जुड़ा कोई भी सवाल है तो आप सभी लोग हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। यदि आप सभी लोगों को यह पोस्ट हमारी अच्छी लगी हो तो इस जानकारी को आगे शेयर जरूर करें।
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