कनकलता बरुआ का जीवन परिचय

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कनकलता बरुआ का जीवन परिचय

नमस्कार दोस्तों आप सभी लोगों का Hindi-khabri.in में स्वागत है। दोस्तों आज के इस एक नए आर्टिकल में हम जानेंगे कनकलता बरुआ का जीवन परिचय के बारे में हम जानेंगे और कनकलता बरुआ जी के द्वारा लिए गए निर्णय के बारे में इस आर्टिकल के माध्यम से हम लोग जाने वाले हैं तो दोस्तों आइए हम बिना देर किए जानते हैं कनकलता बरुआ का जीवन परिचय के बारे में-

कनकलता बरुआ का जन्म

कनकलता बरुआ का जन्म 22 दिसंबर 1924 को असम के कृष्णाकांत बरुआ के घर में हुआ था। ये बारंगबाड़ी गांव के रहने वाले थे।कनकलता बरुआ के माता का नाम कर्णेश्वरी देवी था। जब कनकलता बरुआ 5 वर्ष की हुई थी तो उनकी माता जी का देहांत हो गया था।

राष्ट्रभक्ति की भावना

कनकलता बरुआ भारत की एक ऐसी शहीद बेटी थी जो भारत की भाषा या भारतीय भाषाओं की एक बहुत ही लंबी कतार में जा मिली थी। कनकलता बरुआ मात्र 17 वर्षीय कि हुई थी तब कनकलता बरुआ और दूसरे बलिदानी वीरगनाओं से उम्र में काफी या बहुत ही छोटे भले ही रही हो लेकिन कनकलता बरुआ त्याग व बलिदान में उनका कद किसी भी और लोगों से कम नहीं थी। 5 साल की थी कनकलता जब उनकी मां उनको छोड़कर चल बसी थी। 13 साल की उम्र हुई तो पिता भी गुजर गए अब इस दुनिया में बिल्कुल ही अकेले रह गई कनकलता जब वह 7 साल की थी तो पास के गांव में क्रांतिकारियों की एक सभा हुई जिसे स्कूल के बच्चों ने आयोजित किया था तो वही पर कनकलता बरुआ भी अपने मामा जी के साथ वहां कनकलता भी पहुंची थी और तभी से उनके बालपन में क्रांति ज्वाला ने जन्म लिया। अंग्रेजों भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित होने के बाद ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आंदोलन देश के कोने कोने में फैल गया असम के शीर्ष नेताओं को मुंबई से लौटते ही उनको पकड़कर जेल में डाल दिए गए एक सभा में तेजपुर की कचहरी पर तिरंगा झंडा फहराने का निर्णय लिया गया यह स्थान तेजपुर से 82 मील दूर गांव पुर का थाना तक निकलता भी अपनी मंजिल की ओर चल पड़ी कनकलता बरुआ आत्म बलिदानी दल की सदस्य भी थी जो कि दोनों हाथों में तिरंगा(झंडा)को थामे कनकलता बरुआ जुलूस का अगुवाई कर रही थी और जुलूस के नेताओं को संदेह या अंदेशा हुआ कि कनकलता और उनके साथी कहीं भागकर निकल न जाए।और संदेह को भांपकर कनकलता शेरनी के समान गरज उठीं -“हम युवतियो को अबला नारी समझने की भूल मत कीजिए। आत्मा अमर है।नाशवान है तो केवल शरीर।अतः हम किसी से क्यों डरें?”

‘करेंगे या हम मरेंगे’ ‘स्वतंत्रता हमारा एक जन्मसिद्ध अधिकार है’,जैसे-जैसे कनकलता बरुआ नारों से आकाश को चीरती हुई वे थाने की ओर बढ़ चली।

थाने का प्रभारी जुलूस को रोकने के लिए सामने आ खड़ा हुआ। कनकलता बरुआ ने उनसे कहा हमारा रास्ता मत आप रोकिए। हम आपसे किसी भी प्रकार का संघर्ष करने नहीं आए हैं हम तो सिर्फ थाने पर तिरंगा को फहरा कर स्वतंत्रता की ज्योति(अग्नि) को जलाने आए हैं उसके बाद हम शांतिपूर्ण तरीके से वापस लौट जाएंगे।

जो उस समय थाने के प्रभारी थे उन्होंने कनकलता बरुआ से कहा कि “यदि तुम लोग अपने जगह से 1 इंच भी अगर आगे बढ़े तो तुम सभी गोलियों से उड़ा दिए जाओगे।”

इस इस बात को सुनने के बावजूद भी कनकलता बरुआ अपने मिशन की ओर बढ़ी और कहा कि हमारी स्वतंत्रता की ज्योति बुझ नहीं सकती है तुम गोलियां चला सकते हो पर हमें कर्तव्य से विमुख नहीं कर सकते हो। इतना कहकर वे ज्यो ही आगे बढ़ी पुलिस ने जुलूस पर गोलियों की बौछार कर दी पहली गोली कनकलता ने अपनी छाती पर झेली।

कनकलता गोली लगने पर गिर पड़ी किंतु उसके हाथों का तिरंगा झुका नहीं। उसका साहस वह बलिदान देकर युवकों का जोश और भी बढ़ गया। कनकलता के हाथ में तिरंगा लेकर गोलियों के सामने सीना तानकर बीरबल साहनी युवक आगे बढ़ते चले। एक के बाद एक गिरते गए किंतु झंडे को ना तो झुकने दिया और नहीं गिरने दिया उसे एक के बाद दूसरे हाथ में थमाते गए और अंत में रामपति राजखोवा ने थाने पर झंडा फहरा दिया। जिस सिपाही ने कनकलता पर गोली चलाई वह इस पछतावे से भर गया कि अपने ही देश की 17 साल की क्रांतिकारी को मैंने मार दिया। वह इतना ज्यादा परेशान हो गया कि कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी।

निष्कर्ष

दोस्तों हम आपसे यह उम्मीद करते हैं कि आप सभी लोगों को कनकलता बरुआ का जीवन परिचय के बारे में समझ आ गया होगा। यदि आप सभी लोगों को इससे जुड़ा कोई भी सवाल है तो आप सभी लोग हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। यदि आप सभी लोगों को यह पोस्ट हमारी अच्छी लगी हो तो इस जानकारी को आगे शेयर जरूर करें।

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