डॉक्टर रोनाल्ड रास का जीवन परिचय
नमस्कार दोस्तों आप सभी लोगों का Hindi-khabri in में स्वागत है। दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम लोग जानेंगे कि डॉक्टर रोनाल्ड रास का जीवन परिचय के बारे में जानेंगे और जब उन्हें इंग्लैंड भेजा गया,जब डॉक्टर रोनाल्ड रास को पहली बार सर्जन की सहायता मिली आदि के बारे में इस आर्टिकल के माध्यम से हम लोग जानने वाले हैं तो दोस्तों आई बिना देर किए हम जानते हैं डोनाल्ड राज का जीवन परिचय के बारे में
डॉक्टर रोनाल्ड रास का जीवन परिचय
Biography of Doctor Ronald Ras-सर रोनाल्ड रास का जन्म 13 मई 1857 को भारत के पहाड़ी क्षेत्र अल्मोड़ा नगर में हुआ था। इनके पिता कैम्पबेल क्लोय ग्रांट रास सेना में जनरल थे जो एक अंग्रेज थे,किंतु माता श्रीमती माटिल्डा कारलोटे एल्डरटन स्कॉटिश थी। रोनाल्ड अपने 10 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे।सन 1857 के दौरान भारतवासी अंग्रेजी दासता से छुटकारा पाने के लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की तैयारी कर रहे थे।अल्मोड़ा नगर में भी शांति भंग हो चली थी, परंतु बालक रोनाल्ड इन सबसे बेखबर नहीं था। उसे सब कुछ पता रहता था। रोनाल्ड को अपने माता-पिता की तरह संगीत और चित्रकला का शौक था।वह पियानो सीखकर उसे जब बजाता था तो लोग बड़े ध्यान से उसे सुनते थे।उसके पिता भी संगीत के स्वरो से सैनिकों को लुभाते थे।
जब उन्हें इंग्लैंड भेजा गया
रोनाल्ड को आठ वर्ष की आयु में ही इंग्लैंड भेज दिया गया।वहां वह अपने चाचा-चाची के परिवार के साथ रहते थे।और वहां के विद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त किए थे। वह अपने उस परिवार की निजी ‘लायब्रेरी’ में अच्छी शिक्षाप्रद पुस्तकें पढ़ते थे उनका उन पुस्तकों के कारण वहां मन भी लग गया और वहां वह वहां की भाषा भी सीख गये।वह भारतीय भाषा को लगभग भूल-सा गए।उनकी रुचि जब जीव-जंतुओं में बढ़ गई तो उन्होंने एक प्राणी विज्ञान के ज्ञान हेतु शब्दकोश तैयार करना शुरू कर दिया।उनकी गणित एवं यांत्रिक अविष्कार में भी रुचि बढ़ गई थी।
एक समय वह आ गया जब वह युवा हो गए। रोनाल्डअपने पिता की तरह कला प्रेमी थे।अतः उन्होंने घड़ी की गरारियो (दंतीली प्रणाली) की तरह दो चक्रों को जोड़कर चलाने का प्रयास किया, किंतु सफल नहीं हो सके।
उनके पिता उन्हें चिकित्सा विज्ञान में सेना का चिकित्सक बनाना चाहते थे,किंतु रोनाल्ड की इस ओर जरा भी रुचि न थी।फिर भी उन्होंने अपने पिता के आदेश पर चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन शुरू कर दिए तथा सन् 1874 में लंदन के सेंट वार्थोलोम्यूज हॉस्पिटल में प्रवेश ले लिया।
जब उन्हें पहली बार सर्जन की सहायता मिली
यहां 3 वर्ष के अंतराल में रोनाल्ड की रुचि साहित्यिक रचना लिखने,संगीत धुन बनाने एवं मिट्टी की मूर्तियों का भी निर्माण करने में बढ़ गई ।इसी बीच प्रारंब्ध से रोनाल्ड को ‘रॉयल कॉलेज आफ सर्जन्स’ की सदस्यता मिल गई।उनकी अन्य कलाओं में रुचि बदस्तूर जारी रही, परंतु इसका असर उनकी पढ़ाई पर पड़ा जिससे उन्हें ‘सोसाइटी ऑफ अपाथकिरीज’ (दवाकारों का संघ) का लाइसेंस नहीं मिल सका। इससे उन्हें भारतीय चिकित्सा सेवा का कार्य भी नहीं मिल सका।
रोनाल्ड व उनके पिता को इस आघात से काफी दुख हुआ, किंतु युवक ने संघर्षों का मुकाबला करने का ध्येय बना लिया और वह एक दिन अंटलाटिक यात्रा के एक जलपोत एस.एस.अल्सारिया पर चिकित्सक के रूप में नियुक्त हो गए। यह जलपोत लंदन से न्यूयॉर्क सामान ले जाता था तथा अमेरिका से कच्चा माल तथा मवेशी लाता था।
रोनाल्ड अपने पिता के सपनों को पूरा करने में लगे रहे।वे सन् 1881 में भारतीय चिकित्सा सेवा की परीक्षा देने में सफल हो गये। उन्होंने सर्जन का कमीशन लेकर भारत की अनेक यात्राएं की। यहीं से उनके नए जीवन का उद्गम हुआ।उनकी सर्वप्रथम भारत के मद्रास स्थित स्टेशन हॉस्पिटल में नियुक्ति हुई।वे इस दौरान हिंदी भाषा भी सीखते रहें।उन्होंने कई भाषाओं को सीखने के उपरांत गणित और दर्शन-शास्त्र में भी मन लगा लिया।
सन् 1884 में वे बंगलौर में रह रहे थे,किंतु उन्हें वहां मच्छर बहुत परेशान कर रहे थे। इससे परेशान होकर उन्होंने अपना मन मच्छरों के काटने पर बने ‘ददोड़े’ के शोध में लगा दिया।डॉक्टर रोनाल्ड ने एक बर्तन में पानी भरकर रख दिया।उन्होंने उस पर अनेक मच्छरों को बैठा पाया तो उनकी कंपनी के एडजुटेट ने उन्हें बताया- ‘हर जीव-जंतु का जीवन अर्थयुक्त होता है,हमें इसमें दखल नहीं देना चाहिए।’
रोनाल्ड को उनका तर्क जरा भी पसंद नहीं आया। वे इस बारे में काफी विचारते रहे,परंतु इसी बीच उन्हे बर्मा और अंडमान द्वीप समूह के दौरों पर भेज दिया गया। वहा भी जब मच्छरों ने उन पर हमला किए तो वे अति चिंतित हो उठे।उन्होंने अपने मन ही मन विचार किया कि हो-न-हो सभी बीमारियों के जन्मदाता मच्छर ही हैं जिनका लक्ष्य जानलेवा बीमारियों का फैलाव ही है।
सन् 1857 में रोनाल्ड जब मद्रास लौटे थे तब वहा सूखा पड़ा हुआ था।यह देख वे एक वर्ष का अवकाश लेकर वापस लंदन लौट गए। वहां उन्होंने चिकित्सा एवं सफाई विषय से संबंधित शोध कार्य करने लगे।
उन्होंने लंदन के ‘रायल कॉलेज ऑफ फिजीशियंस एंड सर्जन्स’ के प्रोफेसर ‘क्लेइन’ के निर्देशन मे ‘लोक स्वास्थ्य’ में डिप्लोमा प्राप्त कर लिया।यहां उन्होंने अपना विवाह भी कर लिया।उनकी पत्नी का नाम रोजा ब्लोक्सम था।
वे दोनों सन् 1889 में बगलौर लौट आये।रोनाल्ड की नियुक्ति ‘स्टॉफ सर्जन’ के रूप में हुई थी। उनके लिए यह एक सामान्य पद था,क्योंकि उन्हें 9 वर्ष का तजुर्बा था।उनके कार्यालय में जीवाणुओं के संवर्द्धन हेतु भी सामान था । वे ड्यूटी कार्य में ही उलझे रहते थे, साथ ही उन्हें अपना परिवार भी संभालना पड़ता था।
रोनाल्ड ने मच्छरों की किस्मों के बारे में अध्ययन किया जिस पर उन्होंने बहुत अधिक धन भी खर्च कर दिया। वे मच्छरों के अन्वेषण कार्य में दिन-रात खोए रहने लगे। उस समय उन्हें अपने साथी भी बुरे लगने लगते जब उनसे उनकी चिंता का कारण पूछते।
दूसरी बार वे इंग्लैंड तब गए जब वह अपने साथियों से तंग आ गए।कहा जाता है कि एक बार डाक्टर रास चिकित्सक कार्य की नौकरी छोड़कर साहित्यिक व्यवसाय करने पर विचार करने लगे।उन्होंने दो पुस्तकें ‘द स्प्रिट ऑफ स्टॉर्म’ तथा ‘रिवील्स ऑफ आरसेरा’ लिखी थी।
उन्होंने अपने जीवन में अनेकों यात्राए की, मकान बनाया एवं सामाजिक लोगों से संपर्क स्थापित किए। उनके जीवन में साहित्य एवं चिकित्सा विज्ञान अड़चने डालने लगे जिसमें किसी एक का चयन मुश्किल था। इन दोनों में से किसे चुने,यह उनके सामने एक बड़ा संघर्ष शुरू हो गया था।
डॉक्टर रोनाल्ड उष्ण कटिबंध देशों में प्लेग,हैजा,मलेरिया आदि रोगों का प्रकोप देखकर दुखी हो गए थे,किंतु उनकी साहित्यिक कल्पना का संसार भी अपनी रचनाएं सजोने में रमा था।
निष्कर्ष
दोस्तों हम आपसे यह उम्मीद करते हैं कि आप सभी लोगों को डॉक्टर रोनाल्ड रास का जीवन परिचय बारे में समझ आ गया होगा। यदि आप सभी लोगों को इससे जुड़ा कोई भी सवाल है तो आप सभी लोग हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। यदि आप सभी लोगों को यह पोस्ट हमारी अच्छी लगी हो तो इस जानकारी को आगे शेयर जरूर करें।
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