संवाद किसे कहते हैं, संवाद के रूप(Samvad Kise Kahate Hain)

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संवाद किसे कहते हैं, संवाद के रूप 

संवाद भी संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम है वास्तव में व्यक्ति जब प्रातः सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक कई तरह के संवादों से गुजरता है संवाद का ही एक रूप वार्तालाप भी है जो सुबह उठते ही शुरू हो जाता है और रात तक चलता रहता है साहित्यिक कृतियों में संवाद को कथन के रूप में भी व्यक्त किया जाता है लेकिन यहां जीवन के व्यापक मानवीय संप्रेषण के नीच संवाद के उदाहरण पर विचार किया जाएगा मोटे तौर पर संवाद दो या दो से अधिक व्यक्तियों में किसी विषय विशेष को लेकर किया जाने वाला बातचीत है लेकिन इस वार्तालाप के कई व्यवहार में प्रचलित है|आइए अब बिना देर किए जानते हैं कि संवाद किसे कहते हैं-

संवाद किसे कहते हैं?

संवाद दो या दो से अधिक व्यक्तियों में किसी विषय विशेष को लेकर किया जाने वाला बातचीत जो करते है उसे संवाद कहते हैं।

जैसे:-

दो देशों के बीच शिखर बातचीत (संवाद)
साहित्यिक या कला संस्कृति विषयक संवाद
साहित्यिक कृतियों या फिल्म नाटक आदि में सृजित संवाद
ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में दो या दो से अधिक विद्वानों का संवाद
व्यक्तिगत स्तर के संवाद

मुख्य रूप से संवादों की कई और किस्में भी गिनाई जा सकती है लेकिन इस आर्टिकल में वर्णन किये गए किस्मो में भी संवादों के अनेक रूप मिल जाते हैं।

दो देशों के बीच शिखर वार्ता (बातचीत)

संवादों का रूप अंतरराष्ट्रीय महत्व रखता है विश्व के दो या दो से अधिक देशों के बीच तनाव एवं संघर्ष हो तो ऐसे संबंधों की जरूरत पड़ती है और अंतरराष्ट्रीय दबावों से संघर्षरत देश ऐसे संवाद के लिए मजबूर होते हैं 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव में जुल्फिकार अली भुट्टो जो पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री थे और भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के बीच शिमला में सीधा संवाद हुआ जिसके परिणाम दोनों देश 1972 का शिमला समझौता संपन्न हुआ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैंप डेविड में अरब इजरायल संवाद व द्वितीय विश्व युद्ध के समय और आइजनहावर के बीच संवाद से दुनिया की दिशा ही बदल गई। विश्व में युद्ध या शांति की दिशा का निर्धारण ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय संवादों से होता है।

साहित्यिक या कला-संस्कृति विषयक संवाद

यह अपने आप में विशिष्ट संबाद है जिसमें दो या दो से अधिक प्रतिभागी हिस्सा लेते हैं इस प्रकार के संवाद में साहित्य कला संस्कृति से संबंधित किसी विषय पर प्रतिभागी गंभीरता से संवाद करते साहित्य जगत ने प्रेमचंद और जैनेंद्र के बीच हुए संवाद प्रसिद्ध है अनेक पत्रिकाओं में समय-समय पर ऐसे संवाद प्रकाशित होते रहते हैं रेडियो पर भी ऐसे संवाद प्रसारित होते हैं इन शब्दों पर मत इस बात में यकीन में कतिपय अरुचिकर बातें भी रोचक ढंग से कही जाती है और श्रोता या पाठक निबंधात्मक शुष्कता से बचा रहता है। रोचकता वैसे भी संवाद की पहली शर्त ही है।

साहित्यिक रचनाओं एवं फिल्म नाटक आदि के संवाद

संवाद का यह रूप सृजित है, यह जीवत संवाद ना होकर कल्पित संवाद होता है रचनाकार ऐसे संवादो की स्थिति तथा विषयानुकूल अपनी रचना में सृजीत करता है हिंदी में ही अनेक उपन्यासों/कहानियों/नाटकों आदि में और फिल्म तथा टेलीविजन के पर्दे पर इन साहित्यिक या कलात्मक संवादों का आनंद हम लेते हैं।

ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में संवाद

ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में भी संवाद के बगैर प्रगति संभव नहीं है ज्ञान विज्ञान के क्षेत्रों के अधिकारी विद्वान और शोधकर्ता अपने उपलब्ध ज्ञान के तर्क की कसौटी पर परखने के लिए साथी विद्वानों से संवाद करते हैं यह संवाद जन-सामान्य के सामने भी होता है तथा निजी स्तर पर भी। टेलीविजन रेडियो आदि पर भी इनका प्रसारण होता है और ज्ञान-विज्ञान की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में ऐसे संवाद प्रकाशित भी होते हैं।

व्यक्तिगत स्तर के संवाद

व्यक्तिगत स्तर के संवाद के अनेक रूप है जो सुबह से रात तक चलते ही रहते हैं इन व्यक्तिगत संवादों में पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका,पिता-पुत्र/पुत्री,मित्रों के बीच और कई बार विवाह के अवसर पर संबंधियों के बीच सामाजिक संवाद होते हैं यही संवाद जीवन को गतिमान रखते हैं इन संवादों के अभाव में जीवन नीरस और शुष्क हो जाता हैं। राजेंद्र यादव के एक उपन्यास में एक दंपति विवाह के नौ-दस साल तक एक दूसरे से बात तक नहीं करते और यह बात केवल औपन्यासिक नहीं है, जीवन में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जब किन्ही कारणों से घनिष्ठ से घनिष्ठ संबंधों में भी संवाद समाप्त हो जाता है संबंधों में संवाद न रहना, संबंधो के मृत्यु की ओर जाने के समान होता है।

संवाद के प्रतिभागियों में यह प्रतिभा होनी चाहिए कि वह किसी भी स्तर का संवाद हो उस में रोचकता बनाए रखें तभी संवाद के चलते रहने की संभावना रहती है यदि संवादों में रोचकता ना हो तो संवाद बहुत कम समय में समाप्त हो जाता है कई बार तो फिल्मों/नाटकों में अपने संवादो की विशिष्टता के कारण ही कुछ अभिनेता अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित कर लेते हैं हिंदी फिल्मों में पृथ्वीराज कपूर और राजकुमार (अब दोनों स्वर्गीय हो चुके हैं),अमिताभ बच्चन अपने संवादों की विशिष्ट शैली के लिए ही विख्यात माने जा रहे हैं।

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