बीरबल साहनी का जीवन परिचय
नमस्कार दोस्तों आप सभी लोगों का Hindi-khabri.in में। दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम बीरबल साहनी का जीवन परिचय के बारे में जानने वाले हैं, बीरबल साहनी का शिक्षा एवं शोध के बारे में भी जानेंगे आदि के बारे में जानेंगे तो दोस्तों आइए हम बिना देर किए बीरबल साहनी का जीवन परिचय के बारे में जानते हैं
बीरबल साहनी का जीवन परिचय
Biography Of Birbal Sahni-बीरबल साहनी का जन्म 14 नवंबर 1891 को हुआ था। पंजाब के ‘भेरा’ नामक एक नगर में रहते थे,जो अब पाकिस्तान में है।बीरबल साहनी के पिता रसायन विज्ञान के प्रोफ़ेसर रहे थे। इस कारण बीरबल साहनी की रूचि भी रसायन विज्ञान की ओर हो गई।उन्होंने अपने पिताजी के साथ अनेक यात्राएं भी की थी। उनके पिता उन्हें ‘इंडियन सिविल सर्विस’ में प्रवेश दिलाना चाहते थे।
शिक्षा एवं शोध
उन्होंने सन् 1911 में लाहौर के पंजाब विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री ली।उसके बाद में ब्रिटेन चले गए।उन्होंने सन् 1919 में लंदन विश्वविद्यालय से डी.एस-सी. की डिग्री प्राप्त की।
बीरबल साहनी ने वैज्ञानिक ए.सी. स्टुअर्ट के नेतृत्व में फर्न्स, कोनिफर्स और जीवाश्म पौधों व चट्टानों के बारे में अध्ययन किया। उन्हें सन् 1929 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय से भी डी.एस-सी. की डिग्री मिली थी।वे सन् 1936 में रॉयल सोसाइटी के सदस्य भी चुन लिए गए थे।
जीवाश्म वनस्पति विज्ञान ऐसा विषय है जिसमें वनस्पति विज्ञान और भू-विज्ञान दोनों का ज्ञान आवश्यक है।इसके लिए साहसी स्वभाव और अच्छा स्वास्थ्य चाहिए जिससे जीवाश्म वनस्पति वाली चट्टानों की खोज के लिए पहाड़ों पर लंबी पैदल यात्रा पर जाया जा सके।जब चट्टानें एकत्र करके पीस ली जाए तब जीवाश्म में उपस्थित तथ्यो से यह पता लगाना की लुप्त हुआ पौधा कैसा था,एक जासूस कि-सी दक्षता मांगता है।साहनी में यह गुण बचपन से ही आ गया था।
प्रथम वनस्पति वैज्ञानिक
बीरबल साहनी प्रथम वनस्पति वैज्ञानिक थे जिन्होंने इंडियन गोंडवाना के पेड़-पौधों का विस्तार से अध्ययन किया। उन्होंने बिहार की राजमहल पहाड़ियों की भी खोजबीन की।यह स्थान प्राचीन वनस्पतियों के जीवाश्मों का खजाना है।वहां उन्होंने पौधों के कुछ नए जीन्स की खोज की। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण है- होमोजाइलोन राजमहलीन्स,राजमहालिया पाराडोरा और विलियमसोनिया सीवारडायना। उनके कुछ आविष्कारों ने प्राचीन पौधों और आधुनिक पौधों के बीच विकासक्रम के संबंध को समझने में काफी सहायता की।
उन्होंने एक नए समूह के जीवाश्म पौधों की खोज की।ये जिम्नोस्पर्म है, चीड़ तथा उनकी जाति के दूसरे पेड़ जिन्हें पेन्टोजाइलीज कहते हैं।इससे सारे संसार का ध्यान ईश्वर आकर्षित हुआ।उनके पुरावनस्पति विज्ञान के अध्ययन ने कान्टीनेन्टल ड्रिफ्ट महाद्वीपों के एक दूसरे से दूर खिसकने के सिद्धांत को भी बल दिया है।इस सिद्धांत के अनुसार महाद्वीप पृथ्वी की सतह पर सदा उस तरह खिसकते रहे हैं जैसे कोई नाव नदी के जल की सतह पर खिसकती है।
साहनी एक भू-विज्ञानी भी थे।अपरिष्कृत उपकरणों और प्राचीन पौधों के अपने अगाध ज्ञान द्वारा उन्होंने कुछ पुरानी चट्टानों की उम्र का अनुमान लगाया।उन्होंने कहा कि नमक श्रृंखला,जो अब पाकिस्तान के पंजाब में है,करीब-करीब 4 करोड़ से 6 करोड़ वर्ष पुरानी है, न की 10 करोड़ वर्ष,जैसा कि तब तक विश्वास किया जाता था। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश में डेक्कन ट्रेप्स टरशिरी युग के थे, अनुमानतः 6 करोड़ 20 लाख वर्ष पुराने।
इसके अलावा साहनी कि पुरातत्व विज्ञान में भी बड़ी रूचि थी। उनकी एक खोज यात्रा में उन्हें सन् 1936 में रोहतक में सिक्के बनाने के सांचे मिले थे।प्राचीन भारत में सिक्के ढालने के तरीकों के अध्ययन और खोज पर उन्हें न्यूमिस्मैटिक सोसाइटी ऑफ इंडिया का नेलसन राइट मैडल भी मिला।वे चित्रकला और क्ले मॉडलिंग में भी बहुत दक्ष थे। उनके पास डाक टिकटों और सिक्कों का भी एक बहुत बड़ा संग्रह था।
मृत्यु
बीरबल साहनी 1948 मे अमेरिका से भाषण देकर जब वापस लौटे तो वो थोडा बहुत अस्वस्थ हो गये थे जिससे उन्के शरीर मे काफी कमजोरी का एहसास हो रहा था। डॉक्टरों ने उन्हें अल्मोड़ा में जाकर आराम करने की सलाह दी थी लेकिन बीरबल साहनी ने अपने संस्थान की कामयाबी का सपना पूरा करने के लिए लखनऊ से ही कामकाज करते रहे। 10 अप्रैल 1949 को दिल का दौरा पड़ने से उनका मृत्यु हो गयी।
निष्कर्ष
दोस्तों हम आपसे यह उम्मीद करते हैं कि आप सभी लोगों को बीरबल साहनी का जीवन परिचय के बारे में समझ आ गया होगा। यदि आप सभी लोगों को श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय से जुड़ा कोई भी सवाल है तो आप सभी लोग हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। यदि आप सभी लोगों को यह पोस्ट हमारी अच्छी लगी हो तो इस जानकारी को आगे शेयर जरूर करें।
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