शांति स्वरूप भटनागर का जीवन परिचय

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शांति स्वरूप भटनागर का जीवन परिचय

नमस्कार दोस्तों आप सभी का स्वागत है Hindi-khabri.in में। दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि शांति स्वरूप भटनागर का जीवन परिचय के बारे में जानेंगे|और नाना का प्रभाव और शिक्षा एवं शोध कार्य और रुचि एवं शोध के विभिन्न साधन के बारे में जानेंगे और इसके अलावा रुचि एवं शोधआदि के बारे में इस आर्टिकल में जानेंगे तो दोस्तों आई हम बिना देर किए शांति स्वरूप भटनागर का जीवन परिचय के इस आर्टिकल का शुरुआत करते हैं-

शांति स्वरूप भटनागर का जन्म 21 फरवरी 1894 में शाहपुर (जो अब पाकिस्तान में ) नामक एक शहर में हुआ था। शांति स्वरूप भटनागर के पिता की मृत्यु उनके 8 माह की अवस्था में हो गई थी, अतःउनका पालन पोषण उत्तर प्रदेश में उनके नाना ने किया जो एक इंजीनियर थे। इसी कारण उनका ध्यान भी विज्ञान और इंजीनियरिंग की ओर आकृष्ट हो गया।उन्हें बचपन में यांत्रिक खिलौने,इलेक्ट्रॉनिक बैटरियां,धागे के फोन बनाने में बड़ा आनंद और रुचि मिलता था।

नाना का प्रभाव

उनके नाना कविताओं के भी बड़े प्रेमी थे,जिसके कारण उनकी रुचि साहित्य में भी हो गई।उन्होंने एक एकांकी नाटक भी लिखा था जिसका नाम था- ‘करामाती।’ यह एकांकी नाटक उन्होंने उर्दू में लिखा था।इसमें उन्हें प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था।

शिक्षा एवं शोध कार्य

उन्होंने सन 1908 में लाहौर तथा सन् 1917 में यूरोप में जाकर शोध एवं अध्ययन कार्य किए। उन्होंने यूरोप से सन् 1917 में एम.एस-सी.की डिग्री प्राप्त की। इसके अलावा अनेक वैज्ञानिकों के निर्देशन में इमल्शन पर अध्ययन किए।डी.एस-सी. की डिग्री उन्होंने सन् 1921 में लंदन विश्वविद्यालय से प्राप्त की।

रुचि एवं शोध

इमल्शन,कोलाइड्स और औद्योगिक रसायन शास्त्र पर कार्य के अलावा उनके मौलिक योगदान मेगनेटो-कैमिस्ट्री के क्षेत्र में है।उन्होंने चुम्बकत्व को कुछ रसायनो और रासायनिक प्रक्रियाओं को जानने के लिए अपना उपकरण बनाया। प्रसिद्ध भटनागर-माथुर इन्टरफीयरेस बैलेंस,जो उन्होंने भौतिक विज्ञानी आर.एन.माथुर की सहायता से बनाया था,ऐसे अध्ययनों के लिए बड़े काम का है। एक ब्रिटिश कंपनी संसार भर में बेचने के लिए इस बैलेंस का उत्पादन करने लगी।

जब द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हुआ तो भारत सरकार ने भटनागर को उस संस्था का निदेशक बनाया जो बाद में काउंसिल आफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के नाम से जानी गई।काउंसिल का ध्येय था की प्रयोगशालाओं में हुए शोथ को उद्योगों में इस्तेमाल करके चीजों को अधिक अच्छे स्तर का बनाया जाए।अब समय और अवसर था कि भटनागर अपने सपनों को साकार करें।युद्ध के लिए उन्होंने अपनी प्रयोगशाला में ऐसा कपड़ा बनाया जिस पर गैस का प्रभाव नहीं होता था।उन्होंने न फटने वाले कंटेनर और व्यर्थ चीजों से प्लास्टिक भी बनाया।

सन् 1943 में वे विज्ञान में अपने योगदानों के बल पर रॉयल सोसाइटी के सदस्य चुने गए और जब भारत को स्वतंत्रता मिली तो पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रेरणा से भटनागर ने देश में विज्ञान और तकनीकी की नींव रखनी आरंभ कर दी।यह भटनागर का ही कार्य है कि उन्होंने तेल शोधन शालाएं खुलवाई।नई धातुओं जैसे टाइटेनियम और जिरकोनियम उत्पादन के कारखाने बने,परमाणु खनिजों तथा खनिज तेल (पेट्रोलियम) का सर्वेक्षण शुरू किया गया।

मृत्यु

1 जनवरी 1955 को अपनी मृत्यु से पहले भटनागर ने 12 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना की जो विश्वविद्यालय से निकलने वाले युवा वैज्ञानिकों को शोध करने की सब सुविधाएं देती है, जिससे उन्हें विदेशों में जाना न पड़े।काउंसिल आफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च हर वर्ष भटनागर के सम्मान में ‘शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार’ तकनीकी,इंजीनियरिंग और विज्ञान में असाधारण योगदान के लिए प्रदान करती है।

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