श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय
श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय-श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के तंजोर जिले के इरोद नामक स्थान पर हुआ था।उनके पिता कपड़े की दुकान में एक मुनीम थे। उन्हें गणित से बेहद लगाव था। उनके अनेक साथी उनसे अपने सवाल हल करवाते रहते थे।चौथी कक्षा में ही त्रिकोणमिति में गहन रुचि होने के कारण वे एक पुस्तकालय से लोनी की त्रिकोणमिति की पुस्तक ले आए। इस समय वह मात्र 13 वर्ष के थे। उस पुस्तक को पड़ने पर उन्हें ज्ञान हुआ कि कई प्रमेय व फार्मूले ऐसे हैं जो उस पुस्तक में दिए ही नहीं गए हैं।उन्होंने उनका पता लगाने की कोशिश की जिसमें वह सफल हो गए।उनके एक मित्र ने उन्हें शूब्रिज कार की एक पुस्तक ‘सिनोपसिस आफ एलिमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड अप्लाइड मैथमेटिक्स’ दिखाए।
रामानुजन ने इस पुस्तक का गहन अध्ययन किया।इस पुस्तक ने उनकी गणित की प्रतिभा को प्रेरणा दी।गणित के बारे में उनके मस्तिष्क में इस तेजी से विचार आने लगे कि उन सबको लिखना भी कठिन हो गया। वे प्रश्नों को खुले पन्नों में या स्लेट पर करते और परिणाम नोटबुक में लिखते। विदेश जाने से पहले उन्होंने तीन नोटबुके भर डाली थी जो बाद में रामानुजन की ‘फ्रेयड नोटबुक्स ‘ के नाम से प्रसिद्ध हुई।आजकल भी गणितज्ञ उनका अध्ययन कर रहे हैं,जिससे उसमें दिए परिणामों को प्रमाणित या उनका खंडन कर सकें।
श्रीनिवास रामानुजन का शिक्षा
उन्होंने सन् 1930 में दसवीं की परीक्षा पास की थी,जिसमें प्रथम आने पर उन्हें सुब्रह्मणयन छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी,किंतु कॉलेज में आर्ट्स प्रथम वर्ष में ही वे दो बार फेल हुए, क्योंकि उन्होंने इतिहास,अंग्रेजी व शरीर विज्ञान विषयों पर ध्यान नहीं दिया था।वे बस गणित में ही रुचि लेते थे।
श्रीनिवास रामानुजन का विवाह
उनके पिता ने उनकी रूचि पढ़ाई में न देखकर उनका विवाह कर दिया।इस समय उनकी पत्नी की आयु मात्र 8 वर्ष थी। विवाह के पश्चात रामानुजन ने नौकरी खोजना शुरू किया।उन्हें गणित के प्रश्न भी हल करने थे, अतः कागजों के लिए पैसों की सख्त जरूरत थी।वे हर महीने लगभग दो हजार कागज गणित के प्रश्न हल करने में लगाते थे।जब किसी कार्यालय में नौकरी के लिए जाते उनके मैले-कुचैले कपड़े,खस्ता हालत एवं गंदे फटे कागज देखकर उन्हें नौकरी देने से इंकार कर दिया जाता।
श्रीनिवास रामानुजन का नियुक्ति एवं डिग्री
एक दिन उनकी मुलाकात मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के निदेशक फ्रांसिस स्प्रिंग से हुई।वह उनसे मिलकर बहुत खुश हुए। उन्होंने अपने ऑफिस में रामानुजन को एक लिपिक पद पर लगा दिये।अब उन्हें प्रतिमाह ₹25 प्राप्त होने लगा था,परंतु इससे भी गुजारा नहीं चला।उन्होंने सन 1911 में गणित पर एक लेख प्रकाशित कराया जिसे गणितज्ञों ने काफी सराहा।
इसके बाद कुछ अध्यापक और शिक्षा शास्त्री भी रामानुजन के काम में दिलचस्पी लेने लगे और उन्होंने उनके शोध शिक्षावृत्ति दिलाने का प्रयास किया।एक मई 1913 को मद्रास विश्वविद्यालय ने रामानुजन को ₹75 की शिक्षावृत्ति दे दी, यद्यपि उनके पास कोई डिग्री नहीं थी।
कुछ महीने पहले रामानुजन ने कैम्ब्रिज के प्रसिद्ध गणितज्ञ जी.एच.हार्डी को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने 120 प्रमेय(थीओरम) और फार्मूले भेजे थे।उन्हीं में वह फार्मूला भी था जिससे रेमान श्रृंखला के नाम से जाना जाता है। यह विषय डैफीनेट इन्टीग्रल कैलकुलस का है,लेकिन उन्हें पता नहीं था कि जर्मन गणितज्ञ जॉर्ज एफ. रेमान पहले ही यह श्रृंखला बना चुके थे। यह एक दुर्लभ उपलब्धि थी। पत्र में उस किस्म की इक्वेशनो के बारे में रामानुजन के अनुमान भी थे,जिन्हें मोडुलर कहते हैं।पीअरी डैलने ने हाल में ही उनके अनुमान को सही प्रमाणित कर दिया है। रामानुजन ने एक हाइपर जियोमीट्रिक श्रृंखला में एक फार्मूला भी दिया जो बाद में उनके नाम से विख्यात हुआ।
हार्डी और उनके साथी जे. ई. लिटलवुड को यह जानने मे ज्यादा देर नही लगी कि रामानुजन गणित मे दुर्लभ प्रतिभासंपन्न है। उन्होने रामानुजन के लिए कैम्ब्रिज विश्वविधालय आने और ठहरने का प्रबंध कर दिया और वे 17 मई 1914 को पानी के जहाज द्वारा ब्रिटेन के लिए रवाना हुए ।
कैम्ब्रिज में रामानुजन ने अपने आपको अजनबी पाया।कड़ी सर्दी सहना कठिन था और वे ब्राह्मण और शाकाहारी होने कारण अपना भोजन स्वयं पकाते थे। फिर भी दृढ़ निश्चयी होकर वे गणित में अपना शोधकार्य करते रहें। हार्डी और लिटिलवुड की संगति में वे अपनी कठिनाइयों को भूल जाते थे।
रामानुजन में हार्डी को एक अवस्थित गणितज्ञ मिला।ऐसा जो पायथागोरस थीयोरम तो जानता हो मगर कोनगुरन्ट त्रिकोण का उसे पता न हो।उनके शोथ में कई गलतियां इनकी औपचारिक शिक्षा पूरी ना होने के कारण थी। रामानुजन अंको से ऐसे खेलते थे जैसा बच्चा अपने खिलौने से खेलते हैं। यह उनकी शुद्ध प्रतिभा ही थी जो उन्हें गणित की सच्चाई पर पहुंचा देती थी।उन्हें प्रमाणित करना भी विज्ञान में जरूरी है और वह कार्य उन्होंने अपने से कम प्रतिभाशाली लोगों पर छोड़ दिया।
28 फरवरी 1918 को उन्हें रायल सोसाइटी का सदस्य चुन लिया गया।वे दूसरे भारतीय थे, जिन्हें इस विशिष्ट सदस्यता का सम्मान मिला था। अक्टूबर में वह ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज के सदस्य बने। वे पहले भारतीय थे जिन्हें यह सम्मान मिला।कैम्ब्रिज में उनकी उपलब्धि थी हार्डी-रामानुजन लिटलवुड सर्किल मेथड इन नंबर थीओरी,रोजर-रामानुजन आईडेंटिटीज इन पार्टीशन ऑफ इनटीगर्स,सर्वोच्च ( हाइयेस्ट) कम्पोजिट नंबरों की एक लंबी सूची इसके अतिरिक्त उन्होंने बीजगणित में अक सिद्धांत (नबर थीओरी) और असमता का एलजबरा ऑफ इनइकवलिटि ) पर भी काम किया।बीजगणित में वितित भिन्न (कन्टीन्यूड फ्रेक्शन्स) पर उनके कार्य को गणितज्ञ लियोनार्ड यूलर और जेकोबी की बराबरी पर रखा जाता है।
श्रीनिवास रामानुजन का निधन
इंग्लैंड मे रहकर उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया, डॉक्टरों ने उन्हें ‘तपेदिक’ की बीमारी बताई, जिसका उस समय में कोई इलाज ही नहीं था।वे बीमारी की हालत में ही मद्रास आ गए।यह बात सन् 1920 की है।वे रूग्णावस्था में भी गणित के अंकों में उलझे रहते थे। उन्हें 26 अप्रैल 1920 को मृत्यु ने अपने आगोश में भर लिया।
निष्कर्ष
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