सूखा किसे कहते हैं, सूखे के प्रकार और परिणाम

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सूखा किसे कहते हैं, सूखे के प्रकार और परिणाम

सूखा किसे कहते हैं?

जब किसी क्षेत्र में जल तथा नमी की मात्रा कुछ समय के लिए सामान्य से भी कम हो जाती है उसे सूखा कहते हैं। सूखा ऐसी स्थिति को कहा जाता है जब लंबे समय तक कम वर्षा,अत्यधिक वाष्पीकरण और जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग से भूतल पर जल की कमी हो जाए। सूखा एक जटिल परिघटना है जिसमें कई प्रकार के मौसम विज्ञान संबंधी तथा अन्य तत्व जैसे-वर्षा,वाष्पीकरण,वाष्पोत्सर्जन,भौम जल,मृदा में नमी,जल भंडारण,व भरण,कृषि पद्धतियां, विशेषतः उगाई जाने वाली फसलें,समाजिक आर्थिक गतिविधियां और पारिस्थितिकी शामिल है।

सूखे के प्रकार कौन-कौन से हैं?

मौसमविज्ञान संबंधी सुखा

यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें लंबे समय तक अपर्याप्त वर्षा होती है और इसका सामयिक और स्थानिक वितरण भी असंतुलित होता है।

कृषि सूखा

इसे भूमि-आर्द्रता सूखा भी कहा जाता है मिट्टी में आर्द्रता की कमी के कारण फसलें मुरझा जाती है। जिन क्षेत्रों में 30% से अधिक कुल बोये गए क्षेत्र में सिंचाई होती है उन्हें भी सूखा प्रभावित क्षेत्र नहीं माना जाता है।

जलविज्ञान संबंधी सूखा

यह स्थिति तब पैदा होती है जब विभिन्न जल संग्रहण,जलाशय, जलभूत और झिलों इत्यादि का स्तर वर्षा के द्वारा की जाने वाली जलापूर्ति के बाद भी नीचे गिर जाए।

पारिस्थितिक सुखा

जब प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में जल की कमी से उत्पादकता में कमी हो जाती है और परिणामस्वरूप पारिस्थितिक तंत्र में तनाव आ जाता है तथा यह क्षतिग्रस्त हो जाता है,तो पारिस्थितिक सुखा कहलाता है।

भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्र कौन से हैं?

भारतीय कृषि काफी हद तक मानसून वर्षा पर निर्भर करती रही है भारतीय जलवायु तंत्र में सूखा और बाढ़ महत्वपूर्ण तत्व हैं कुछ अनुमानों के अनुसार भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 19% भाग जनसंख्या का 12% हिस्सा हर वर्ष सूखे से प्रभावित होता है देश का लगभग 30% क्षेत्र सूखे प्रभावित हो सकता है 5 करोड़ लोग इससे प्रभावित होते हैं। यह प्रायः देखा गया है कि जब देश के कुछ भागों में बांढ कहर ढा रही होती है तो उसी समय देश के दूसरे भाग सूखे से जूझ रहे होते हैं यह मानसून में परिवर्तनशीलता और इसके व्यवहार में अनिश्चितता का परिणाम है। सूखे का प्रभाव भारत में बहुत व्यापक है परंतु कुछ क्षेत्र जहां ये बार-बार पड़ते हैं और जहां उनका असर अधिक है सूखे की तीव्रता के आधार पर निर्मित क्षेत्रों में बांटा गया है।-

अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र

राजस्थान में ज्यादातर भाग विशेषकर अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थली और गुजरात का कच्छ क्षेत्र अत्यधिक सूखा प्रभावित है इसमें राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर जिले भी शामिल है जहां 90 मिलीमीटर से कम औसत वार्षिक वर्षा होती है।

अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र

इसमें राजस्थान के पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के ज्यादातर भाग, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग,आंध्र प्रदेश के अंदरूनी भाग, कनार्टक का पठार,तमिलनाडु के उत्तरी भाग, झारखंड का दक्षिणी भाग और उड़ीसा का आंतरिक भाग शामिल हैं।

मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र

इस वर्ग में राजस्थान के उत्तरी भाग,हरियाणा,उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिले गुजरात के बचे हुए जिले, कोंकण को छोड़कर महाराष्ट्र,झारखंड,तमिलनाडु में कोयंबटूर पठार और आंतरिक कर्नाटक शामिल हैं। भारत के बचे हुए भाग बहुत कम या न के बराबर सूखे से प्रभावित हैं।

सुखे के परिणाम

पर्यावरण और समाज पर सूखे का सोपानी प्रभाव पड़ता है। फसलें बर्बाद होने से अन्न की कमी हो जाती है जिसे अकाल कहा जाता है चारा कम होने की स्थिति को तृण अकाल कहा जाता है।जल आपूर्ति की कमी जल अकाल कहलाती है तीनों परिस्थितियां मिल जाए तो त्रि- अकाल कहलाती है जो सबसे अधिक विध्वंसक है सूखा प्रभावित क्षेत्रों में वृहद पैमाने पर मवेशियों और अन्य पशुओं की मौत,मानव प्रवास तथा पशु पलायन एक सामान्य परिवेश है। पानी की कमी के कारण लोग दूषित जल पीने को बाध्य होते हैं। इसके परिणामस्वरूप पेयजल संबंधी बीमारियां जैसे आंत्रशोथ, हैजा और हेपेटाइटिस हो जाती है।

सामाजिक और प्राकृतिक पर्यावरण पर सूखे का प्रभाव तत्कालिक एवं दीर्घकालिक होता है। इसलिए सूखे से निपटने के लिए तैयार की जा रही योजनाओं को उन्हें ध्यान में रखकर बनाना चाहिए।सूखे की स्थिति में तात्कालिक सहायता में सुरक्षित पेयजल वितरण,दवाइयां,पशुओं के लिए चारे और जल की उपलब्धता तथा लोगों और पशुओं को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना शामिल है। सूखे से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजनाओं में विभिन्न कदम उठाए जा सकते हैं जैसे-भूमिगत जल के भंडारण का पता लगाना,जल आधिक्य क्षेत्रों से अल्पजल क्षेत्रों में पानी पहुंचाना, नदियों को जोड़ना और बांध व जलाशयों का निर्माण इत्यादि।नदिया जोड़ने के लिए द्रोणियों की पहचान तथा भूमिगत जल भंडारण की संभावना का पता लगाने के लिए सुदूर संवेदन और उपग्रहों से प्राप्त चित्रों का प्रयोग करना चाहिए।

सूखा प्रतिरोधी फसलों के बारे में प्रचार-प्रसार सूखे से लड़ने के लिए एक दीर्घकालिक उपाय है। वर्षा जल सलवन (Rain Water harvesting) सूखे का प्रभाव कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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