पलायन क्या है?

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पलायन क्या है?

नमस्कार दोस्तों आप सभी लोगों का Hindi-khabri.in मे आप सभी लोगो का स्वागत है। दोस्तो आज के इस आर्टिकल मे हम लोग जाने वाले है कि पलायन क्या है? पलायन के कारक कितने प्रकार के है? इस आर्टिकल में हम सभी लोग जानने वाले है पलायन क्या है? तो आइए हम इस आर्टिकल का शुरूआत करते है।

पलायन क्या है?-लोग व्यवसाय करने या नौकरी की तलाश करने या किसी अन्य उद्देश्य के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। लोगों की यह गतिविधि उनकी आर्थिक गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह उनके सामाजिक एवं राजनीतिक संबंधों को भी प्रभावित करता है जैसा की आप इस आर्टिकल में पड़ेंगे कि लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने को पलायन कहते हैं। प्रवास भी किसी देश के विकास के स्तर का एक संकेतक माना जाता है। कभी-कभी पलायन प्रवृत्तियां एवं दूसरे प्रवासियों जो लोग उसे जगह में प्रवासी नहीं है के बीच संघर्ष का कारण भी बन जाता है। पलायन चुनाव के दौरान भी राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बिंदु बन जाता है।

पलायन क्या है?(Palayan Kya Hai)

पलायन क्या है?-प्रवास या पलायन का अर्थ किसी एक भौगोलिक स्थान से दूसरे भौगोलिक स्थान पर स्थाई या आंशिक रूप से स्थाई बंदोबस्त के लिए जाना होता है|पलायन आंतरिक और बाहरी दोनों ही हो सकता है आंतरिक प्रवास से तात्पर्य किसी देश के भीतर एक राज्य से दूसरे राज्य में आवागमन करने से है। जबकि बाहरी पलायन का आज से किसी अन्य देश में स्थानांतरण से है प्रवासन के समय आंतरिक प्रवासिक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवेश करने से है जबकि अंतर राज्य पलायन का आशय है किसी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना पलायन शब्द का प्रयोग अक्सर शरणार्थी शब्द के लिए इस्तेमाल किया जाता है|

लेकिन एक प्रवासी और एक शरणार्थी के बीच अंतर होता है शरणार्थी वाले लोग हैं जो उत्पीड़न के दर से अपने मूल स्थान से दूसरे देश में जाकर बस जाते हैं वे विवादास्पद क्षेत्र को छोड़कर किसी सुरक्षित क्षेत्र की ओर जाते हैं ताकि वह अपना पुनर्वास कर सके। यहां पर उनके पलायन का प्रमुख कारण विवादग्रस्त क्षेत्र से बचकर निकलना है शरणार्थियों को अंतरराष्ट्रीय कानून द्वारा संरक्षण एवं पहचान मिली हुई है जबकि प्रवासियों को अंतरराष्ट्रीय कानून द्वारा स्पष्ट तौर पर परिभाषित नहीं किया गया है इसकी प्रवासियों की परिभाषा अभी अस्पष्ट है।

लेकिन प्रवास की पारंपरिक अवधारणा जो की संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग द्वारा प्रतिपादित की गई है,उसके अनुसार प्रवास का मतलब आजीविका या परिवार से पुनर्मिलान के लिये बाहर जाना ही प्रवास माना जाता है।शहरी क्षेत्रों में रोजगार के सबसे महत्वपूर्ण अवसर बढ़ रहे हैं,और महानगर में हाल के दिनों में बड़े पैमाने पर अंतर-राज्य और अंतर-राज्य प्रवासन बढ़ा है।ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्र की ओर जाना पलायन का सबसे प्रमुख उदाहरण है।

पलायन के पुश एवं पुल कारक

लोगों के अपने मूल स्थान से गंतव्य स्थान की ओर पलायन करने के कई कारक हो सकते हैं। जिनमें सामाजिक,सांस्कृतिक, आर्थिक,राजनीतिक या व्यक्तिगत आदि कारक शामिल है।एवरेट स्पर्जन ली,उन विद्वानों में से एक है जिन्होंने प्रवास के सिद्धांत को प्रतिपादित किया है। ली के अनुसार प्रवास के कारणो को दो प्रकार के कारकों में बांटा जा सकता है।इन्हें हम पुश(धक्का) एवं पुल (खिंचाव) कारक कहते हैं।
पुश कारक ऐसे कारक होते हैं जो लोगों को अपने मूल स्थान से अपने गंतव्य स्थान की तरफ पलायन को मजबूर करते हैं|

जबकि पुल कारक गंतव्य स्थान की तरफ प्रवास को आकर्षित करते हैं|पुश कारकों में रोजगार की कमी शिक्षा,स्वास्थ्य सेवाओं तथा आजीविका के पर्याप्त साधन उपलब्ध न होने जैसे मुद्दे शामिल होते हैं|

भारत में सामाजिक बिंदु जैसे जाति,लिंग,धर्म,क्षेत्र या विस्थापन ऐसे कारण है जो कि उसे कारकों में पलायन का कारण बनते हैं|पलायन कारकों में बेहतर रोजगार के अवसर उच्च शिक्षा स्वास्थ्य यहां तक की सामाजिक पर्यावरण जो अधिक समावेशी है,शामिल है। भारत में प्रवासन आमतौर पर कम विकसित राज्यों से विकसित राज्यों तथा गांव से शहरों की तरफ देखने को मिलता है|

इन विकसित शहरों में दिल्ली,मुंबई,गुरुग्राम और बेंगलुरु जैसे शहर शामिल है जहां पर प्रवासन के बड़े अनुपात को आकर्षित करते हैं तथा ऐसे राज्य भी है जैसे पंजाब,हरियाणा,महाराष्ट्र और गुजरात जहां पर प्रवासन को आकर्षित किया जाता है एवं पलायन के मूल राज्यों में उत्तर प्रदेश,बिहार,झारखंड, उड़ीसा,छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान शामिल है।यकीनन: यह क्षेत्र आने वाले लोगों के लिए बसने के लिए खुले हैं जो विविध सामाजिक परिप्रेक्ष्य से आते हैं|कोविड-19 के कारण लॉकडाउन (2020) के दौरान भारत में बहुत अधिक उल्टा प्रवास देखने को मिला था।यह बिल्कुल ही एकदम उल्टा था जिसमें हजारों प्रवासी श्रमिक अपने मूल स्थान की तरफ पलायन करने को मजबूर हो गए थे।

भूमन्डलीकरण और पलायन

भारत में वैश्वीकरण द्वारा सृजित अवसरों ने पलायन को बढ़ावा देने में पुश(धक्का) कारक के रूप में काम किया है।भारत में 1991 में शुरू किए गए आर्थिक सुधार वैश्वीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा थे।यह सुधार भुगतान संतुलन संकट जिसका भारत सामना कर रहा था,को दूर करने के लिए शुरू किया गया था।वैश्वीकरण ने विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ.डी.आई.) के लिए अर्थव्यवस्था खोली और व्यवसाय चलाने के लिए लाइसेंस प्राप्त करने के लिए राज्य विनियमन और नियंत्रण को कम किया।

इसने अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए बाजारी ताकतों को और अधिक स्वतंत्रता दी। इसके फलस्वरूप रोजगार के अधिक अवसर पैदा हुए और इससे पलायन को प्रोत्साहन मिला।इसने पूरे देश में कुशल मध्यम वर्ग और मजदूरों को शहरों में पलायन करने का अवसर प्रदान किया। वैश्वीकरण ने अंतर्राष्ट्रीय पलायन को भी प्रोत्साहित किया।कई भारतीयों का नौकरी एवं शिक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय पलायन हुआ जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका में सिलिकॉन वैली एवं कई अन्य पश्चिमी देशों में नौकरियों के लिए भारतीयों का पलायन हुआ।

भारतीय अर्थव्यवस्था में वैश्वीकरण द्वारा जो संरचनात्मक परिवर्तन लाया गया था वह तेजी से विकास के एजेंडे पर केंद्रित था।यह काफी हद तक बाजार से प्रेरित घटना थी जिसमें निजी क्षेत्र का तेजी से विस्तार शामिल था। आर्थिक वैश्वीकरण के तहत विशेष आर्थिक एफ.डी.आई. एफ आई.आई. बाहरी व्यापार,विशेष आर्थिक क्षेत्र,सॉफ्टवेयर के लिए प्रोत्साहन बढ़ाया गया था। प्रौद्योगिकी पार्क तथा सामान्य रूप से उद्योग और निजी वाणिज्य का तेजी से विस्तार किया गया था।प्रौद्योगिकी और संचार के विस्तार ने भी औद्योगीकरण को सुगम बनाया जिसने सेवा उद्योग के विकास के लिए रास्ते खोले।ये बाद में भारतीय अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार बन गये थे।

सेवा उद्योग की वृद्धि के साथ-साथ कुशल और अर्ध-कुशल दोनों सेगमेंट का तेजी से विकास हुआ।आई.टी. में कुशल पेशेवरों की आवश्यकता के रूप में बी.पी.ओ./के.पी.ओ. उद्योग ने बैंगलुरु,नई दिल्ली, हैदराबाद,नोएडा और गुरुग्राम जैसे आई.टी हब के लिए प्रवासन का बढ़ावा दिया,इसने इन शहरों में बेहतर आवास की सुविधाओं की मांग को उठाया।इसके कारण रियल एस्टेट उद्योग का उदय हुआ और श्रम के लिये सहवर्ती मांग में वृद्धि हुई। इसलिये वैश्वीकरण ने सीधे तौर पर कुशल श्रम की मांग को उठाया और उसने अंतर्राष्ट्रीय बाजार एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए द्वार खोल दिए।भारत में भी इसकी उपस्थिति देखी जा सकती है।

अप्रत्यक्ष रूप से इसने निर्माण श्रम को आकर्षित किया जिसने आवास की जरूरत को पूरा करने के लिये रियल एस्टेट उद्योग को बढ़ावा दिया।भारत में बड़ी निर्माण कंपनियां असली मेगा उद्यम शुरू करने में जुटी है।इन कंपनियों में मुख्य रूप से डी.एल.एफ.,लोढ़ा ग्रुप,ऐम्बसी ग्रुप,ओमेक्स लिमिटेड,अंसल ए.पी.आई,ब्रिगेड एंटरप्राइज लिमिटेड एवं इंडिया बुल्स रियल एस्टेट लिमिटेड,शामिल है।शहरों में विकास प्राधिकरण द्वारा बड़े और मध्यम स्तर की आवासीय परियोजनाओं को शुरू किया गया।

सार्वजनिक निजी संयुक्त उद्यमों ग्रह निर्माण परियोजनाओं के तहत बुनियादी ढांचे का विकास किया गया। इसने आवासीय क्षेत्र में भी प्रवासन को बढ़ावा दिया गया।इन घटनाओं से यह साबित होता है कि वैश्वीकरण ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर पलायन को प्रोत्साहित किया। वैश्विक पूंजीवाद में एक नये श्रमिक वर्ग का सृजन किया है जो अपनी बेहतर आजीविका की तलाश में गांवों से शहरों की ओर पलायन करते हैं।

हालांकि वैश्वीकरण ने रोजगार के नये अवसरों का सृजन किया है लेकिन इससे प्रवासी मजदूरों का खतरा एवं अनिश्चितता भी बड़ी है। फ्रांसीसी समाजशास्त्री गाई स्टैंडिंग ने इन खतरों एवं अनिश्चितताओ का अवलोकन किया और अपना सिद्धांत प्रतिपादित किया।इस स्टैंडिंग सिद्धांत कहा जाता है।इस सिद्धांत के अनुसार प्रवासी मजदूर विभिन्न प्रकार के संकटों का सामना करते हैं।जिसे चार (A) के रूप में चिन्हित किया जा सकता है। ये है,Anger(गुस्सा),Anxiety(चिंता),Anomic( अप्रतिमानता) और Alienation(अलगावाद) इत्यादि।

वैश्विक पूंजीवाद के तहत श्रम बाजार के लचीलेपन के कारण संकट और चिंता उत्पन्न होती है।प्रवासी कई प्रकार की सुरक्षा का सामना करते हैं जैसे आय की कमी,रोजगार की सुरक्षा जिसमें भर्ती और छटनी शामिल होती है,ऊपर की ओर गतिशीलता की कमी,कार्य करने की असुरक्षा,खतरनाक कार्य स्थिति,लंबे समय तक कार्य करने के कारण होने वाली थकान, प्रशिक्षण के अवसर की कमी तथा कौशल विकास की कमी, आय असुरक्षा और राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी।अकुशल(unskilled) सेगमेंट में प्रवासी कामगार ज्यादातर असंगठित होते हैं जिनके पास औद्योगिक नागरिकता के अधिकार की बुनियादी सुविधाओं का अभाव होता है।

इस प्रकार भूमंडलीकरण प्रवासी मजदूरों के लिए अवसरों एवं चुनौतियों से भरा होता है।पुल कारकों ने वास्तव में छोटे कस्बों एवं गांवों से लोगों को पलायन को मजबूर किया है। निर्माण उद्योग आज प्रवासन की मुख्य साइट और आधार के रूप में कार्य करता है।लेकिन चुनौतियों और पूर्ति की नई अर्थव्यवस्था में प्रवासन और भी अधिक कठिन है जैसा की गाई स्टैंडिंग ने संकेत दिया है।मजदूर असुरक्षा में फंस जाते हैं तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी के कारण एक निश्चित स्थान पर अटक जाते हैं।वे सरकारी स्तर पर अपनी समस्याओं को संबोधित करने में विफल रहते हैं।प्रवासी मजदूर अपनी शिकायतों के निवारण के लिए की सामूहिक आवाज उठाने में आमतौर पर असमर्थ होते हैं।

भारत में आंतरिक पलायन के रूप

नई सहशताब्दी में 2001 और 2011 की जनणनाएं पलायन के रूप को विस्तृत तरीके से वर्णित करती है 2001 की जनगणना के अनुसार कुल पलायन की संख्या 307.1 मिलियन थी जिनमें से 90.4 मिलियन पुरुष अलग एवं 216.7 मिलियन महिलाएं थी अंतर जिला एवं आंतरिक जिला पलायनों की संख्या 76.8 और 181.7 मिलियन थी अन्य राज्यों से आने वाले पलायनों की संख्या 42.3 मिलियन थी क्षेत्र अनुसार महाराष्ट्र में सबसे अधिक पलायन की संख्या है कल 7.9 मिलियन प्रवासी है यहां पर इसके बाद दिल्ली और पश्चिम बंगाल है जहां पर यह संख्या 5.6 मिलियन एवं 5.5 मिलियन थी जनगणना से अभी पता चलता है कि 1991 से 2001 के बीच में पलायनकी संख्या में करीब 32.9% की बढ़ोतरी हुई है।

2011 की जनगणना के अनुसार कुल प्रवासियों की संख्या 45,57,87,621 जिसमें 14,61,45,967 पुरुष थे,एवं 30,96,41,654 में महिलाएं थी|इससे यह पता चलता है कि 2001 एवं 2011 की जनगणना में भी महिला प्रवासियों की संख्या अधिक थी|इसका प्रमुख कारण शादी के बाद महिलाओं को अपने मूल स्थान को छोड़कर जाना था वहीं पर ग्रामीण एवं शहरी प्रवासियों की संख्या 27,82,03,361 एवं 17,75,84,260 थी|अंतर राज्य एवं अंतरा राज्य प्रवासियों की संख्या भी 39,56,52,669 एवं 5,42,64,749 थी| जबकि शादी के बाद हुए पुनर्स्थापना इसका प्रमुख कारण था रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों से पलायन करना भी एक महत्वपूर्ण कारण था |

1990 और 200 के दशकों के दौरान पलायन में महत्वपूर्ण इजाफा बढ़ोतरी हुई है|लेकिन पलायन का तरीका लगभग एक जैसा ही रहा है|इनमें से कुछ बिंदु नोट करने लायक है|पहला,क्षेत्रीय स्तर पर पश्चिम बंगाल आने प्रवासियों की सूची में से बाहर निकल गया है।

जबकि उत्तर प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्यों में माइग्रेशन से पलायन काफी तेजी से बड़ा है|इन दोनों राज्यों का 37 प्रतिशत है यदि इनमें राजस्थान और मध्य प्रदेश को भी जोड़ दिया जाये तो यह संख्या 50 प्रतिशत होती है। जिन राज्यों में सबसे अधिक संख्या में प्रवासी महाराष्ट्र,दिल्ली,गुजरात,उत्तर प्रदेश, हरियाणा में जाते हैं|उत्तर प्रदेश से प्रवेश तथा इसमें प्रवेश दोनों होते हैं|2001 और 2011 में अंतर-राज्यीय प्रवासियों की संख्या में 33 प्रतिशत की गिरावट आई है।जबकि अंतर-अतर-जिला स्तर में प्रवास में 50 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज है।

कई अध्ययन एवं जनगणना और रिपोर्ट से हमें पता चला कि भारत में महिला एवं पुरुष दोनों अपने मूल स्थान से दूसरे स्थान की तरफ पलायन करते हैं लेकिन उनके कारण एवं गंतव्य स्थान दोनों में अंतर होता है महिलाएं ज्यादातर अपने राज्य में ही पलायन करती है और शादी प्रमुख कारण जबकि पुरुषों ने राज्यों की तरफ पलायन करते हैं और वह मुख्य रूप से रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं।

मौसमी पलायन

मौसमी प्रवास एक वर्ष के विशिष्ट मौसमों में होता है।इस अवधि में फसलों की बुवाई और कटाई करने के लिए श्रम की जरूरत होती है और ऐसे में पलायन अधिक होता है जहां तथा जहां से पलायन होता है उन क्षेत्रों में की कृषि के काम के लिए काम न होने का मौसम होता है।मौसमी प्रवासी विशिष्ट मौसमों के दौरान रोजगार के लिए पलायन करते हैं, और कार्य पूरा करने के बाद भी वे अपने घर वापस चले जाते हैं। फिर से वह अगले मौसम में प्रवास करते हैं और काम समाप्त होने के बाद फिर वापस लौट जाते हैं।और यह मौसमी प्रवास एक परिपत्र गोलाकार रूप में जारी रहता है।

भारत में मौसमी प्रवासन को श्रम गतिशीलता एक के एक प्रमुख रूप में भी प्रलेखित किया गया है।बिहार से महिला मजदूरों का प्रवास पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद,बर्धमान और मेदिनीपुर जिलों तथा महाराष्ट्र, गुजरात एवं राजस्थान के आदिवासी चीनी मिलों में काम करने के दो प्रासंगिक उदाहरण है। 1980 के दशक तक मौसमी प्रवास कम था और 1991 के आर्थिक सुधारो की शुरुआत के बाद इसमें तेजी से वृद्धि हुई। भारत में अस्थाई श्रम प्रवास के लिए क्षेत्रीय पैटर्न देखने को मिलता है।

केसरी और भगत के अध्ययन (2012) से पता चलता है कि 1991 और 2000 के बीच यूपी में सबसे अधिक अस्थायी प्रवास देखा गया। उसके बाद मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश में प्रवास का स्थान था। इससे यह भी पता चलता है कि मौसमी प्रवास की उच्च दर वाले राज्यों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की गतिशीलता बहुत अधिक है।ऐसे राज्य है-जैसे बिहार,राजस्थान,पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और गुजरात।मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,तमिलनाडु और केरल प्रवासियों में लिंग अंतर कम है। इसके साथ-साथ अस्थायी पलायन समाज के निचले तबको में ज्यादा पाया जाता है।हमने ऊपर अभी मौसमी पलायन क्या है के बारे में जाना है।

राज्य की प्रतिक्रिया और कानूनी विकास

राज्य ने प्रवासी श्रमिकों के कल्याण के लिए कुछ कल्याणकारी उपाय किए हैं इस दिशा में पहला कदम राज्य प्रवासी कामगार अधिनियम 1979 में पारित करना था इस अधिनियम ने उन प्रतिष्ठानों के पंजीकरण को अनिवार्य बना दिया जिन्होंने प्रवासी श्रमिकों को कम पर रखा था ऐसे प्रतिष्ठानों के लिए श्रम ठेकेदारों को विश्राम भाग से भारती के लिए लाइसेंस प्रवासी श्रमिकों की पहचान विवरण प्रदान करने के लिए कानूनी तौर पर आवश्यकता थी और उनके लिए मजदूरी भुगतान के लिए भी इसकी जरूरत थी|

श्रमिकों के लिए सबसे बड़ा कानून जो लाया गया वह श्रम कानून का एक सम्मान लागू करना था जिसने उन्हें संगठित क्षेत्र में प्रवासी सभी को सम्मान लाभ पहुंचाया इस कानून ने ठेकेदारों को भी वाद्य किया कि वह श्रमिकों को विस्थापन और यात्रा भत्ता प्रदान करें एवं कार्य स्थलों पर बुनियादी सुविधाओं जैसे आवास सुरक्षा की दुर्घटना के दौरान चिकित्सा सहायता आदि की व्यवस्था करें इस अधिनियम की एक प्रमुख सीमाएं अतिथि की यह कल्याणकारी होने की वजह भी नहीं यमक अधिक था अधिनियम की शर्तें नियुक्ति और कर्तव्यों को परिभाषित करने की बजाय राज्य पर कल्याणकारी जिम्मेदारी डालने की थी।

1996 में एक विशेष कानून निर्माण श्रमिकों के लिए सुरक्षा एवं कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए पारित किया गया था इस कानून के द्वारा श्रमिक कल्याण कोष एवं कल्याण बोर्ड की स्थापना की गई इस कानून के दो प्रमुख आयाम कार्यस्थल पर नागरिक सुविधाओं की पेशकश करना तथा सुरक्षा प्रतिभूति प्रदान करना थे जिम्मेदारियां को कल्याण बोर्ड और नियुक्ति के बीच विभाजित किया गया कार्य स्थल पर 50 से अधिक महिला सैनिकों के लिए स्वच्छ पेयजल आवास स्क्रैच शौचालय और मंत्रालय और प्राथमिक चिकित्सा सेल सुविधाओं प्रदान किया गया कल्याण बोर्ड का उद्देश्य 60 वर्ष की आयु वालों को वृद्धावस्था लाभ दुर्घटना लाभ सामूहिक बीमा मातृत्व लाभ और बच्चों की शिक्षा और चिकित्सा के लिए विभिन्न सहायता उपलब्ध कराना था|

कल्याण बोर्ड को या विश्व निश्चित करना था कि वह आयत कल छुट्टियों के दौरान उचित भुगतान किया जाए अधिनियम का एक अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान नियुक्ताओं द्वारा सुरक्षा प्रदान करना था जो 500 से अधिक प्रवासी मजदूरों को कम पर रखते हैं इस समिति में भवन निर्माता एवं श्रमिकों काप्रतिनिधित्व भी था अधिनियम के अनुसार सभी राज्यों में श्रम विभाग में एक मुख्य निरीक्षक की नियुक्ति की जाएगी ताकि वह सभी गाइडलाइन का पालन करवा मुख्य निरीक्षक का कार्यकारी स्थल पर औचक निरीक्षण भी करना था ताकि सुरक्षा व्यवस्था का जायजा ले सके इस अधिनियम का पालन नहीं किया गया तो उसमें कठोरता से कार्रवाई करने का भी प्रावधान शामिल था।

राज्य द्वारा पारित कानूनो को लागू करने के लिए कई चुनौतियों का सामना किया गया।राज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम 1979 का उद्देश्य नियोक्ता की ड्यूटी को परिभाषित करना था तथा प्रवासी श्रमिकों के कल्याण के लिए लागू नीतियों की जिम्मेदारी लेना था। इन नीतियों को लागू करने में काफी कमी भी थी खासकर कानून का निर्माण करने एवं लागू करने में। फिर भी कुछ राज्य जैसे दिल्ली,छत्तीसगढ़,और तमिलनाडु में काफी अधिक पंजीकरण हुआ है। यह देखा गया है कि जिन राज्यों में अधिक पंजीकरण हुआ है वहां पर श्रमिक कल्याण पर अधिक खर्च किया गया था।

लॉकडाउन (तालाबंदी) और पलायन

पलायन क्या है यह जानने के लिए सबसे अच्छा हमारे सामने और हमारी आंखों देखी लॉकडाउन के समय बहुत अच्छे से हमने देखने को मिला की पलायन क्या है क्योंकि लॉकडाउन के समय में सभी लोग एक जगह से दूसरे जगह काम बंद हो जाने के कारण या कई सारी पाबंदियां लग जाने के कारण लोग एक जगह से दूसरे स्थान या अपने गांव की ओर पलायन कर रहे थे।

पलायन एवं प्रवासी कई अन्य कर्म से भी प्रभावित हो सकते हैं। कोविड-19 (कोरोना) महामारी भी उनमें से एक सबसे प्रमुख कारण है। महामारी को फैलने से रोकने के लिए सामाजिक दूरी बनाए रखना एक उपाय था तथा इसके लिए पूरे देश में लॉकडाउन का निर्णय लेना बेहद ही जरूरी था।भारत सरकार ने तालाबंदी की घोषणा मार्च 2020 में की थी।लाकडाउन में सभी प्रकार की आर्थिक इकाई एवं संस्थाओं को बंद किया गया,सार्वजनिक स्थानों पर इकट्ठे होने पर पाबंदी लगा दी गई थी।

लोगों को उनके घरों में ही रहने के सलाह दी गई।तालाबंदी का असर समाज के सभी वर्गों पर पड़ा लेकिन इसका सबसे बुरा प्रभाव प्रवासी मजदूरों पर पड़ा। लॉकडाउन की घोषणा के समय ज्यादातर लोगों ने औपचारिक आर्थिक गतिविधियों में काम करते थे तथा किराये के मकान में रहते थे।लाकडाउन ने उनकी आय के स्रोतों को बंद कर दिया। उनमें से अधिकांश किराये के मकान में न रहकर सार्वजनिक स्थानों जैसे पुल के नीचे या फुटपाथ पर अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर हो गए थे।

रोजगार के अवसर समाप्त होने के साथ-साथ उनके पास रहने को भी जगह नहीं थी।इसने उनके अंदर आजीविका की असुरक्षा की भावना पैदा की। देश में व्यापक लाकडाउन ने रिवर्स माइग्रेशन को पैदा किया। रिवर्स माइग्रेशन में प्रवासी उलटी दिशा में जाते हैं अर्थात इसका मतलब यह हुआ कि प्रवासी अपने जहा पर भी काम कर रहे थे उस कार्यस्थल से अपने निवास स्थान की ओर पलायन करते हैं। लॉकडाउन के कारण इनमें से कई प्रवासी लोग सैकड़ो किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर की ओर रवाना हुए थे और कई लोग अपने साइकिल के द्वारा भी गये थे।

FAQs

पलायन क्या है?-

प्रवास या पलायन का अर्थ किसी एक भौगोलिक स्थान से दूसरे भौगोलिक स्थान पर स्थाई या आंशिक रूप से स्थाई बंदोबस्त के लिए जाना होता है|

स्पर्जन ली के अनुसार प्रवास के कारकों को कितने कारको में बांटा गया है।

एवरेट स्पर्जन ली,उन विद्वानों में से एक है जिन्होंने प्रवास के सिद्धांत को प्रतिपादित किया है। ली के अनुसार प्रवास के कारणो को दो प्रकार के कारकों में बांटा जा सकता है।इन्हें हम पुश(धक्का) एवं पुल (खिंचाव) कारक कहते हैं।

पुश कारक किसे कहते हैं?

पुश कारक ऐसे कारक होते हैं जो लोगों को अपने मूल स्थान से अपने गंतव्य स्थान की तरफ पलायन को मजबूर करते हैं|

पुल कारक किसे कहते हैं?

जबकि पुल कारक गंतव्य स्थान की तरफ प्रवास को आकर्षित करते हैं|

 

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