संप्रेषण का प्रयोजन, प्रक्रिया क्या है?
संप्रेषण का प्रयोजन क्या है
नमस्कार दोस्तों आप सभी का स्वागत है Hindi-Khabri.in में.दोस्तो आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि संप्रेषण का प्रयोजन क्या है, और संप्रेषण की प्रक्रिया क्या है इसके बारे में हम इस आर्टिकल के माध्यम से जानने वाले हैं तो दोस्तों आइए हम बिना देर किए अपने आर्टिकल संप्रेषण का प्रयोजन क्या है का शुरुआत करते हैं-
संप्रेषण का प्रयोजन
संप्रेषण के विविध रूपों की जानकारी प्राप्त करने के बाद इस पर विचार करना जरूरी हो जाता है कि संप्रेषण का प्रयोजन क्या है? मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह अकेला नहीं रह सकता। वह संप्रेषण के जरिए ही समाज के अलग-अलग लोगों से जुड़ता है। दोस्तों अब हम आइए देखते हैं कि संप्रेषण मनुष्य के लिए क्यों जरूरी है?
व्यक्तिगत जरूरत
यह अपने आप में स्पष्ट है। लोग काम करने,खाने,पीने,रहने,प्यार और जीवन से जुड़े सभी व्यक्तिगत पहलुओं के लिए संप्रेषण करते हैं अपनी जरूरतें पूरी ना होने पर उसकी मांग करते हैं।
व्यक्तिगत संबंध
जब भी हम किसी रिश्तेदार मित्र या जान पहचान वाले लोगों से मिलते हैं तो सबसे पहला सवाल यही होता है कि ‘कैसे हैं आप? इसके अलावा लोग अपनी आंख,हाथ,शब्द और भाव भंगिमा से भी दूसरों से संबंध बनाने का प्रयास करते हैं।
सूचना
हमें कई प्रकार की सूचनाएं प्राप्त करनी होती है। सूचना संग्रहण का काम बचपन से ही शुरू हो जाता है। जब वह पहली बार पूछता है ‘यह क्या चीज है?’सूचना संग्रहण की यह प्रक्रिया चलती रहती है जनसंचार माध्यमों के विकसित होने से सूचना क्षणभर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक तेजी से पहुंचाना संभव हो गया है।
आपस में बातचीत
अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने और दूसरे की बात सुनने के लिए भी संप्रेषण संपन्न होता है। ‘गप्प’ संप्रेषण का एक मजेदार और मनोरंजक एक उदाहरण है। लोगों को ‘गप्प’ मारने में बड़ा मजा आता है इसके जरिए हम एक दूसरे की भावनाओं,विचारों, दृष्टिकोण को जानने समझने का प्रयास करते हैं।
आग्रह
विज्ञापन इस प्रकार के संप्रेषण का सबसे ज्वलंत उदाहरण है। विज्ञापन का निर्माण किस प्रकार किया जाता है कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को पसंद आए। रेडियो, टेलीविजन और समाचार पत्र के विज्ञापनों को याद कीजिए। याद कीजिए कि शैंपू, टूथपेस्ट,साबुन,डिटर्जेंट पाउडर आदि के विज्ञापन में किस प्रकार ग्राहकों से आग्रह किया जाता है। उसे कई तरीकों से लुभाने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार के संप्रेषण में ग्राहक की आकांक्षा,इच्छा,लोभ और अन्य व्यक्तिगत कमजोरियों का लाभ उठाया जाता है।
मनोरंजन
यदि मनुष्य की जरूरत है। हंसना हंसाना दूसरे के सुख दुख में हिस्सा लेना यह सब मनुष्य की स्वाभाविक वृत्तियों में शामिल है मनोरंजन के लिए लोग सिनेमा देखते हैं टेलीविजन देखते हैं घूमने फिरने जाते हैं सिनेमाघरों में मूवी देखने जाते हैं मनोरंजन के लिए लोग सिनेमा देखते हैं टेलीविजन देखते हैं घूमने जाते हैं ताकि कुछ लोग मनोरंजन के लिए पड़ती हैं इन सभी कारणों से भी संप्रेषण की जरूरत पड़ती है।
संप्रेषण की प्रक्रिया क्या है?
आपको हम पहले ऊपर आर्टिकल में बता चुके हैं कि संप्रेषण एक प्रक्रिया है वस्तुतः प्रेषक से प्राप्त करता तक संदेश पहुंचने की प्रक्रिया को ही संप्रेषण कहते हैं। इस इस प्रकार संप्रेषण के 3 हिस्से होते हैं-प्रेषक,संदेश, प्राप्तकर्ता। पत्र इसका सबसे उत्तम उदाहरण है। आप अपने भाई को पत्र लिखते हैं। आप प्रेषकःहुए। आप पत्र में कुछ लिखते हैं। यह संदेश हुआ। यह पत्र आपके भाई तक पहुंचता हैं। भाई उस पत्र को पड़ता है। आपका भाई प्राप्तकर्ता है। इस प्रकार संप्रेषण पूरा होता है।
संप्रेषण की प्रक्रिया में नौ तत्व प्रमुख रूप से शामिल होते हैं।-
स्रोत
वक्तृत्व क्षमता
संदेश
माध्यम
प्राप्तकर्ता
संदेश प्राप्ति
प्रतिक्रिया
संदर्भ
जीवन मूल्य और दृष्टिकोण
स्रोत
किसी भी संदेश का जन्म स्रोत से होता है। यह स्रोत कोई भी व्यक्ति हो सकता है वह स्रोत अपने विचारों को व्यक्त करना चाहता है।इसके लिए वह अपने अनुभव और भाषा ज्ञान का उपयोग करता है वह स्रोत या व्यक्ति अपने विचारों को शब्दों में ढालता है मौखिक संप्रेषण के संदर्भ में इस स्रोत को वक्ता कहते हैं।
वक्तृत्व क्षमता
विचारों को भाषागत अभिव्यक्ति देने की कला को वक्तृत्व क्षमता कहते हैं। वक्ता की भाषा ऐसी होनी चाहिए जिसके जरिए वह अपने विचारो को स्पष्टता से अभिव्यक्त कर सके और श्रोता उसके संदेश को समझ सके।
संदेश
वक्ता के विचारों की अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति को संदेश कहते हैं। यह संदेश लिखित भी हो सकता है मौखिक भी हो सकता है और गैर मौखिक या आंगिक भी हो सकता है। भाषा में शब्दों,वाक्यों, प्रतिको,बिंबों आदी के माध्यम से संदेश प्रसारित किए जाते हैं भाषा का अपना एक व्याकरण होता है राम ने श्याम को मारा और श्याम ने राम को मारा का अर्थ बिल्कुल विपरीत है व्याकरण के कारण संदेश का बिल्कुल बदल जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक भाषा का अपना मुहावरा होता है।भाषा किसी संस्कृति का हिस्सा होती है। किसी भाषा को बोलने और समझने के लिए भाषा के व्याकरण,मुहावरे और संस्कृति को समझना आवश्यक है।भाषा संदेश का आधार है।वस्तुतः भाषा के जरिए ही संदेश बनाएं और समझे जाते हैं।
परंतु संदेश केवल लिखित, मौखिक या शाब्दिक ही नहीं गैर-मौखिक,गैर शाब्दिक या आंगिक भी होते हैं। मनुष्य अपने हाव-भाव शारीरिक मुद्राओं और चेष्टाओ,आवाज के उतार-चढ़ाव, गति,सुरपरिवर्तन से भी काफी कुछ कह जाता है।अपनी भावनाओं को संप्रेषित कर देता है।कहने का तात्पर्य है कि हमारे संदेश कई बार आंगिक या गैर- शाब्दिक भी होते हैं। इसमें भाषा नहीं होती परंतु अर्थ पूरा होता है।
सुविधा की दृष्टि से मौखिक और अमौखिक संप्रेषण को अलग तो कर दिया जाता है परंतु यह विभाजन कृत्रिम है।वस्तुतः मौखिक और आंगिक अभिव्यक्ति एक दूसरे में गुथें होते हैं।जाओ एक शब्द है परंतु कहने के अंदाज से इसका अर्थ बदल जाता है यह आदेश भी हो सकता है,अनुमति भी,क्रोध की अभिव्यक्ति भी हो सकती है। स्नेह का भी हड़बड़ी का बोधक भी हो सकता है और गड़बड़ी का भी। सप्रेषक को भाषा और वाणी में तालमेल रखना चाहिए ताकि उसका संदेश सही ढंग से संप्रेषित हो सके।
माध्यम
संदेश किसी माध्यम से प्रेषक से प्राप्तकर्ता तक पहुंचता है। मौखिक संप्रेषण में हवा माध्यम होता है। वक्ता से श्रोता तक संप्रेषण हवा के माध्यम से होता है। वक्ता द्वारा बोला हुआ संदेश हवा में तैरता हुआ श्रोता तक पहुंचता है अब तो रेडियो तरंगों, सैटेलाइट आदि के माध्यम से संदेश को दूर-दूर तक फैलाया जा सकता है।जनसंचार माध्यम जैसे टेलीविजन,रेडियो,इंटरनेट द्वारा इनका इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा लिखित संप्रेषण की स्थिति में लिपि माध्यम होती है जिसे हम आंखों से ग्रहण करते हैं।
प्राप्तकर्ता
वक्ता या स्त्रोत जिस तक अपना संदेश भेजना चाहता है उसे श्रोता या प्राप्तकर्ता कहते हैं। मौखिक संप्रेषण में श्रोता ही प्राप्तकर्ता होता है जो संदेश ग्रहण करता है। यह भी हो सकता है कि संदेश जिसके लिए तैयार किया गया हो उसके अलावा दूसरे श्रोता भी उस संदेश को सुन ले और उन पर संदेश का प्रभाव पड़ सकता है मान लीजिए हम किसी दोस्त का हंसी मजाक उड़ा रहे हैं और वह हमारी बात सुन ले। जिससे हम अपना संदेश नहीं पहुंचाना चाहते हैं उस तक संदेश पहुंच गया और इससे दोस्ती खतरे में आ सकती है।
संदेश प्राप्ति
प्राप्तकर्ता द्वारा संदेश को विचारों में ढालने की प्रक्रिया को संदेश प्राप्ति कहते हैं अंग्रेजी में से Decoding कहा जाता है। सर्वोत्तम स्थिति वह होती है जिसमें श्रोता वक्ता द्वारा भेजे गए संदेश को उसी तरह समझता है जिस तरह वक्ता कहना चाहता है श्रोता एवं वक्ता की भूमिका बदलती रहती है अर्थात श्रोता वक्ता की भूमिका निभाने लगता है और वक्ता श्रोता बन जाता है टेलीफोन पर बातचीत करते समय ध्यान दीजिए जब आप वक्ता होते हैं तो दूसरे छोर पर टेलीफोन पर सुन रहा व्यक्ति श्रोता की भूमिका को निभा रहा होता है फिर जब वह आपकी बात का जवाब देने लगता है तो आप श्रोता बन जाते हैं।
प्रतिक्रिया
वक्ता और श्रोता के बीच संवाद या आपसी बातचीत से ही संप्रेषण अपनी प्रक्रिया को पूरी करता है। बड़ी मशहूर कहावत है कि एक हाथ से ताली नहीं बजती संप्रेषण या पूर्ण संप्रेषण पर भी यही बात लागू होती है श्रोता द्वारा वक्ता को भेजे गए संदेश को ‘प्रतिक्रिया’ या फीडबैक कहते हैं l आमने-सामने के संप्रेषण में जैसे कक्षा में पढ़ाते शिक्षक और व्याख्यान सुनते विद्यार्थियों के बीच यह प्रतिक्रिया तुरंत हो जाती है। दूर शिक्षा पद्धति के अध्ययन में यह प्रतिक्रिया तत्काल नहीं हो पाती है। परंतु आज दुरस्थ शिक्षा मैं टेलीकाफ्रेसिंग ई-मेल इंटरनेट आदि जैसी आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग हो रहा है जिसके जरिए दूर बैठे विद्यार्थी भी अपने शिक्षकों को अपनी प्रतिक्रिया तुरंत भेज सकते हैं।
प्रतिक्रिया शाब्दिक भी हो सकती है और गैर शाब्दिक भी। कभी प्रतिक्रिया मौखिक हो सकती है कभी श्रोता की आंखों या शारीरिक प्रतिक्रिया से भी पता चल सकता है कि वक्ता की बात का असर श्रोता पर क्या पड़ा है। इसी प्रकार प्रतिक्रिया सकारात्मक भी हो सकती है और नकारात्मक भी हो सकती है।
संदर्भ
कोई भी संप्रेषण किसी न किसी संदर्भ से जुड़ा होता है यह संदर्भ शारीरिक भी हो सकता है, मनोवैज्ञानिक भी और सांस्कृतिक भी हो सकता है। उदाहरण के लिए भी आप दीवार में कील ठोक रहे हो और हथौड़ा आपकी उंगली पर लग जाए और वहां कोई ना हो तो आपके मुंह से अपशब्द भी निकल सकता है। परंतु यदि वहां आपकी मां या पिता मौजूद हो तो शायद अपशब्द आपके मुंह से ना निकले और आप कह बैठे … ओ मा,या बाबू जी…। इस समय आप केवल अपने आप से ही बात नहीं कर रहे होते हैं।बल्कि आप अपने माता-पिता को भी संदेश पहुंचा रहे होते हैं।इसी प्रकार दोस्त से बात करते समय, सहकर्मी से बात करते समय,शहर में अपने पड़ोसी से बात करते हुए,गांव में अपने किसी संबंधि से बात करते हुए, आपके संदेश का स्वरूप एक सा नहीं रहता। हर प्रवेश में संदेश को अलग-अलग ढंग से संप्रेषित किया जाता है।
जीवन मूल्य और दृष्टिकोण
संप्रेषण की प्रक्रिया में सहायक जिन तत्वों की चर्चा की गई वे आधारभूत तत्व है। इनके अलावा वक्ता के जीवन मूल्य और दृष्टिकोण का भी उसके विषय के चुनाव,शब्दों के चुनाव आदि पर असर पड़ता है। इसी प्रकार श्रोता के जीवन मूल्य और दृष्टिकोण का असर भी उसके संदेश को समझने और व्याख्यायित करने पर पड़ता है।
इसे भी पढ़ें-समूह सखी क्या है?